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अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च मामले की उच्च स्तरीय जांच हो : सीपीआई (एम)

सीपीआई (एम) ने अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोप मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च मामले की उच्च स्तरीय जांच हो : सीपीआई (एम)
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नई दिल्ली, 31 जनवरी: सीपीआई (एम) ने अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोप मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। पार्टी की केंद्रीय समिति ने मसले को बेहद गंभीर करार दिया है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) ने अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों पर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिन-प्रतिदिन के आधार पर निगरानी की जानी चाहिए। इसकी उच्च स्तरीय जांच जरूरी है, देश में असमानता में भारी वृद्धि के साथ अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है।

सीपीआई (एम) केंद्रीय समिति अपना बयान जारी कर कहा कि अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों पर एक उच्च-स्तरीय जांच आवश्यक है, जिसकी निगरानी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिन-प्रतिदिन की जाती है। जब तक यह जांच पूरी नहीं हो जाती और सच्चाई सामने नहीं आ जाती, तब तक भारत और हमारे लोगों के हितों की रक्षा की जानी चाहिए।

पार्टी ने अपने बयान ने कहा कि अडानी ओ कंपनियों में एलआईसी के 80,000 करोड़ रुपये का निवेश किया जाता है और समूह द्वारा राष्ट्रीय बैंकों से लिए गए सभी ऋणों का 40 प्रतिशत एसबीआई के माध्यम से होता है। एलआईसी और एसबीआई दोनों ऐसी संस्थाएं हैं जहां करोड़ों भारतीय अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए अपनी जीवन भर की बचत को निवेश करते हैं। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद से शेयर बाजार में अडानी समूह का पूंजीकरण 50 बिलियन डॉलर से अधिक कम हो गया। इससे सार्वजनिक क्षेत्र के इन संस्थानों में लोगों की जीवन भर की बचत बर्बाद नहीं हो सकती।

पार्टी ने दावा किया कि सीपीआई (एम) अन्य धर्मनिरपेक्ष विपक्षी दलों के साथ समन्वय करेगी और संसद के आगामी बजट सत्र में उनका मुद्दा उठाएगी। मंदी की स्थिति तेज होने के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार लड़खड़ा रही है। आर्थिक सुधार पर सरकार द्वारा किए गए सभी प्रचार और दावों के बावजूद, भारत की उत्पादक क्षमताओं को बढ़ाने में निवेश नहीं बढ़ रहा है। इसका मतलब यह है कि रोजगार सृजन स्थिर है, अगर कम नहीं हो रहा है, तो अधिक गरीबी और दुख में योगदान दे रहा है।

पार्टी ने अनुसार ऑक्सफैम की रिपोर्ट 'सरवाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया सप्लीमेंट' शीर्षक से पता चलता है कि भारत की 40 प्रतिशत से अधिक संपत्ति पर इसकी आबादी का केवल 1 प्रतिशत का स्वामित्व है। 10 सबसे अमीर भारतीयों की कुल संपत्ति 2022 में 27.52 लाख करोड़ रूपए है और साल 2021 से अब तक 32.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, सबसे नीचे की 50 प्रतिशत आबादी का हिस्सा 3 प्रतिशत है। भारत में अरबपतियों की कुल संख्या से बढ़ी है साल 2020 में 102 से 2022 में ये 166 हो गई। इसके विपरीत लगभग 23 करोड़ लोग दुनिया में सबसे ज्यादा - गरीबी में रहते हैं।

भारत में प्रतिगामी कराधान शासन को ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि हमारे नीचे के 50 प्रतिशत लोग अप्रत्यक्ष कराधान पर शीर्ष 10 प्रतिशत की तुलना में आय के प्रतिशत के रूप में 6 गुना अधिक भुगतान करते हैं। खाद्य और गैर-खाद्य आवश्यक वस्तुओं से एकत्र किए गए कुल करों में से 64,3 प्रतिशत नीचे के 50 प्रतिशत लोगों द्वारा खर्च किया गया।

यह सही समय है कि अमीरों के लिए मोदी सरकार द्वारा दी जाने वाली कर रियायतों को उलट दिया जाए, एक संपत्ति कर और एक विरासत कर पेश किया जाए और सभी आवश्यक वस्तुओं पर विशेष रूप से भोजन पर को जीएसटी लगाया गया है, इसको समाप्त किया जाना चाहिए।


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