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एकल महिलाओं की मदद की पहल

हमारी आधी दुनिया महिलाओं से बनी है। उनके लिए काफी योजनाएं और कार्यक्रम हैं, और नए बन रहे हैं

एकल महिलाओं की मदद की पहल
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- बाबा मायाराम

एक साल से एकल महिलाओं के लिए भी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके माध्यम से ऐसी महिलाओं की पहचान की गई है। महासमुंद, बस्तर और गरियाबंद में ऐसी महिलाओं की संख्या 813 है। इनमें तलाकशुदा, विधवा, अलग रहने वाली, अविवाहित व अकेली वृद्ध महिलाएं शामिल हैं। इन महिलाओं के साथ सामाजिक स्तर पर भेदभाव तो होता ही है, साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है।

हमारी आधी दुनिया महिलाओं से बनी है। उनके लिए काफी योजनाएं और कार्यक्रम हैं, और नए बन रहे हैं। पंचायतों व स्थानीय निकायों में आरक्षण दिया जा रहा है। शिक्षा में भी वे आगे बढ़ी हैं। सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति देखी जाती है। यानी पहले की स्थिति में काफी बदलाव आया है। लेकिन अभी भी कई स्तरों पर उनसे भेदभाव की खबरें आती रहती हैं। उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता है। इन सबमें विशेष तौर पर एकल महिलाएं सबसे ज्यादा उपेक्षित हैं। न्याय और समानता के लिए उनकी लड़ाई जारी है। छत्तीसगढ़ में उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की पहल की जा रही है। आज इस कॉलम में इस मुद्दे पर बातचीत करना चाहूंगा।
हम छुटपन से देखते आ रहे हैं कि महिलाओं के साथ कई स्तरों पर भेदभाव होता है। बचपन से लेकर बुजुर्ग होने तक उन्हें इसका शिकार होना पड़ता है। अगर मैं मेरे स्कूल के दिनों को याद करूं तो उस समय स्कूलों में बहुत कम लड़कियां पढ़ती थीं। महिलाओं का घरों से निकलना कम होता था। नौकरियों में उनकी संख्या बहुत कम थी। धीरे-धीरे इस स्थिति में बदलाव आया है। लेकिन एकल महिलाओं की स्थिति कई कारणों से अब भी बहुत अच्छी नहीं है।

हाल ही मुझे छत्तीसगढ़ में एकल महिलाओं से रूबरू होकर उनके दुख-दर्द जानने का मौका मिला। इस मुद्दे पर छत्तीसगढ़ में प्रेरक संस्था काम कर रही है। महासमुंद, बस्तर और गरियाबंद जिले में एकल महिलाओं के लिए संस्था का डेयर टू ट्रस्ट कार्यक्रम चल रहा है। जिसके तहत इन महिलाओं के लिए कई स्तरों पर मदद की जा रही है।

संस्था के प्रमुख रामगुलाम सिन्हा ने बताया कि उनकी संस्था पिछले 35 सालों से समाज के सबसे वंचित तबकों के बीच काम कर रही है। कमार आदिवासियों के बीच काम की शुरूआत हुई थी। कमार, विशेष रूप से कमजोर जनजाति समूह ( पीवीटीजी) है। इस आदिवासी समुदाय का प्रकृति से गहरा जुड़ाव है। इनकी मुख्य आजीविका जंगल पर निर्भर है, लेकिन जंगलों में कमी व मौसम बदलाव के कारण कमारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए उन्हें खेती की ओर मोड़ा। देसी बीजों की खेती-बाड़ी को बढ़ावा दिया और उनकी आजीविका व खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने का प्रयास किया।

इसी प्रकार, वन अधिकार कानून, 2006 के क्रियान्वयन में आदिवासियों की मदद की जा रही है। सामुदायिक वन संसाधन अधिकार ( सीएफआर) के दावा फार्म की औपचारिकताएं पूरी करवाने में मदद करना, और सामुदायिक वन अधिकार मिलने के बाद जंगल का संरक्षण व संवर्धन की योजना बनवाने में सहयोग करना इत्यादि, संस्था के कामों में शामिल है। इसके अलावा, संस्था का बुजुर्गो के लिए सियान सदन है, जहां 25 वृद्धजन रहते हैं, जिनमें निराश्रित शामिल हैं। दिव्यांग बच्चों के लिए भी आवासीय स्कूल संचालित किया जा रहा है।

इसी कड़ी में पिछले एक साल से एकल महिलाओं के लिए भी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके माध्यम से ऐसी महिलाओं की पहचान की गई है। महासमुंद, बस्तर और गरियाबंद में ऐसी महिलाओं की संख्या 813 है। इनमें तलाकशुदा, विधवा, अलग रहने वाली, अविवाहित व अकेली वृद्ध महिलाएं शामिल हैं। इन महिलाओं के साथ सामाजिक स्तर पर भेदभाव तो होता ही है, साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है।

इनमें से सबमें विधवा महिलाओं की संख्या ज्यादा है। ये पूरी तरह अकेली पड़ जाती हैं। ऐसी महिलाओं को समाज व परिवार में तिरस्कार या अपमान झेलना पड़ता है। यह सब उन गरीबों परिवारों में और भी कष्टदायक हो जाता है, जहां बुनियादी जरूरतों का अभाव है। अत: अन्य समस्याओं के साथ उन्हें भोजन, दवा, वस्र, उचित आवास की कमी का सामना करना पड़ता है।

इसी प्रकार, इनमें से ऐसी महिलाएं भी हैं, जिनके पति गुजर जाने के बाद, उन पर बच्चों की या बुजुर्ग परिवारजनों की जिम्मेदारी आ गई है। लेकिन आर्थिक अभाव के कारण उन्हें जीविका चलाने में और बच्चों की पढ़ाई जारी रखने में भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

रामगुलाम सिन्हा बताते हैं कि 20 से 25 उम्र की आयु में किसी महिला का विधवा हो जाना, बहुत बड़ी त्रासदी है। उनके सामने पूरी जिंदगी होती है, और कदम-कदम पर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पति की संपत्ति से बेदखल करने की कोशिश, घरेलू हिंसा और कई तरह सामाजिक तिरस्कार को झेलना पड़ता है। ऐसी महिलाओं को मदद की जरूरत होती है।

इसके अलावा, ऐसी कई बुजुर्ग महिलाएं हैं, उनके गिरते स्वास्थ्य और थकान के कारण रोजाना के काम नहीं कर पाती हैं। संयुक्त परिवार टूटने से भी महिलाओं की समस्याएं बढ़ जाती हैं। कुछ ऐसी अकेली महिलाएं भी हैं, जिन्हें खुद के लिए घर की जरूरत हैं, लेकिन उन्हें न तो जगह मिल पा रही है और न ही उसे बनाने के लिए आवास योजनाओं से राशि।

रामगुलाम सिन्हा ने बताया कि प्रेरक संस्था ने इन महिलाओं की मदद के लिए चार स्तरों पर हस्तक्षेप किया है। सबसे पहले उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सब्जी बाड़ी (किचिन गार्डन) के लिए देसी सब्जियों के बीज वितरित किए हैं। जिससे उन्हें परिवार के लिए ताजी सब्जियां मिल सकें। और अतिरिक्त होने पर कुछ आमदनी भी हो सके। सुरक्षित व पौष्टिक भोजन मिल सके। मुर्गीपालन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो। इन सबसे उनकी टिकाऊ आजीविका की रक्षा के साथ देसी बीजों की विरासत, जैव विविधता व पर्यावरण का भी संरक्षण होगा। वे आत्मनिर्भर बनेंगी।

इसके अलावा, शासकीय कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए राशन कार्ड, आधार कार्ड, बैंक खाता खुलवाने इत्यादि के काम किए जा रहे हैं। ऐसी पात्र महिलाओं को विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, विकलांग पेंशन, महतारी वंदन योजना, मनरेगा जैसी योजनाओं से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। जिससे इन योजनाओं का उन्हें लाभ मिल सके।

महिला और पुरूषों की बराबरी के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाना, जिसमें महिला दिवस मनाना भी शामिल है। इसके अलावा, सामाजिक लिंग भेद पर कार्यशालाएं आयोजित करना। इसमें किशोरी लड़कियों व बच्चों को भी जोड़ना। पर्यावरण व स्वच्छता के प्रति भी लोगों को सजग बनाना। महिलाओं के घरेलू व अदृश्य अवैतनिक कामों का भी सम्मान करना।

साथ ही ऐसी महिलाओं के लिए ऐसा मंच उपलब्ध कराना जिसमें वे एक साथ आ सकें, उनका दुख-दर्द बांट सकें, एक दूसरे से जुड़ सकें, खुलकर बात कर सकें और आपस में अनुभव साझा कर सकें। कोई महिला सहज महसूस कर सके, चाहे वह अकेली हो।इसके अलावा, जिन महिलाओं को कानूनी सहायता की जरूरत है, उन्हें ये सुविधाएं उपलब्ध कराना। इसके लिए वरिष्ठ महिलाओं से परामर्श व कानूनी सहायता लेना और उनके अधिकारों के लिए लड़ना।

कुल मिलाकर, इन पहलों का असर यह हो रहा है कि ये महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। सब्जी बाड़ी लगाने से उन्हें ताजी हरी सब्जियां मिल रही हैं, कुछ आमदनी भी हो रही है। पेंशन, विधवा और वृद्धावस्था जैसी योजनाओं का लाभ मिलने लगा है। राशन कार्ड से अनाज मिल रहा है। महिलाओं के समूह में जुड़ने से उनकी एक साथ आवाज उठ रही है। लेकिन इस दिशा में अभी काफी कुछ करने की जरूरत है। यह तो अभी शुरूआत भर है।

उनके लिए बच्चों को निशुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, आवास योजनाओं को लाभ, भूमिहीन महिलाओं को किचिन गार्डन के लिए भूमि के साथ ही विवाह संस्था से बाहर वाली महिलाओं को योजनाओं में प्राथमिकता मिलना चाहिए। इसके साथ ही समाज का भी उनके प्रति नजरिया बदलना जरूरी है। उनके साथ न्याय व समानता का व्यवहार होना चाहिए। लेकिन क्या हम अपनी सोच में बदलाव करने के लिए तैयार हैं?


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