धर्म-राजनीति को अलग करने की पहल
विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को निर्भीकता एवं मुखरता के साथ रखने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती शंकराचार्य ने एक महत्वपूर्ण बयान देकर समाज के समक्ष यह सोचने का अवसर और चुनौती दोनों ही पेश कर दी है

विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को निर्भीकता एवं मुखरता के साथ रखने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती शंकराचार्य ने एक महत्वपूर्ण बयान देकर समाज के समक्ष यह सोचने का अवसर और चुनौती दोनों ही पेश कर दी है, जिसमें उन्होंने कहा है कि 'राजनीतिज्ञों को धर्म के बारे में बात करनी छोड़ना चाहिये तभी उनके जैसे धार्मिक लोग राजनीति पर बोलना छोड़ेंगे।' पिछले कुछ समय से भारतीय जनता पार्टी सरकार के खिलाफ कई बयान देकर चर्चा में रहने वाले अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने ताज़ा बयान में साफ किया है कि 'वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शत्रु नहीं वरन हितैषी हैं।'
उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उनसे पूछा गया था कि क्या धर्माचार्य को राजनीति पर बात करना उचित है? इस पर उन्होंने कहा कि 'राजनीति में रहने वाले धर्म पर बात करना छोड़ दें, धर्माचार्य भी राजनीति के बारे में बात करना छोड़ देंगे।' उनका केवल इशारा मात्र मोदी या भाजपा पर नहीं था, बल्कि उन्होंने यह कहने में भी कोई परहेज नहीं किया कि 'जब मोदी यमराज के सामने खड़े होंगे तो वे उन्हें क्या जवाब देंगे?' उन्होंने साफ किया कि वे मोदी की मदद कर रहे हैं ताकि वे अपने कर्म सुधार सकें। अविमुक्तेश्वरानंद पिछले कुछ समय से भाजपा पर जैसे प्रहार कर रहे हैं, उनमें यह कठोरतम टिप्पणी कही जा सकती है। देखना होगा कि इसका जवाब भाजपा के प्रचार विभाग से क्या आता है। जो भी हो, उनके इस बयान से देश के अनेक धर्माचार्य मोदी-भाजपा के खिलाफ खुलकर सामने आ सकते हैं। पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से मोदी राजनीतिक लाभ लेने के लिये जिस प्रकार से धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे शंकराचार्य भी अनेक धार्मिक संगठनों एवं धर्माचार्यों की तरह ही व्यथित हुए होंगे। सम्भवत: यही कारण है कि वे पिछले कुछ समय से मोदी एवं भाजपा सरकार के खिलाफ जमकर हमले बोल रहे हैं। चूंकि वे कोई छोटे-मोटे साधु-संत, बाबा या कथावाचक नहीं हैं इसलिये उन पर भाजपा पलटवार नहीं कर रही है। वैसे अविमुक्तेश्वरानंद साफ करते हैं कि शंकराचार्य होने के नाते किसी भी अधर्म की ओर ध्यान दिलाना उनका कर्तव्य है।
अविमुक्तेश्वरानंद हाल ही में देश के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी के पुत्र अनंत की शादी में भी गये थे, जहां उन्होंने मोदी को भी आशार्वाद दिया था। इस बाबत पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 'वे मोदी के कोई दुश्मन नहीं हैं। उल्टे वे तो मोदी के हितैषी हैं परन्तु जो गलत होता है, उसका वे विरोध करते हैं।' मोदी-भाजपा के खिलाफ यह शंकराचार्य का कोई पहला हमला नहीं है। वे पहले प्रमुख धर्माचार्य थे जिन्होंने अयोध्या के आधे-अधूरे रामलला मंदिर की मोदी द्वारा प्राणप्रतिष्ठा का यह कहकर खुला विरोध किया था कि ऐसा करना शास्त्रसम्मत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि मंदिर रामानंद सम्प्रदाय को सौंप दिया जाना चाहिये क्योंकि उस पर उसी का अधिकार है। हाल ही में उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि केदारनाथ मंदिर से 228 किलो सोना गायब हो गया है। उनका इशारा मंदिर की प्रबन्ध समिति के सदस्यों की ओर सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की ओर था जिसका समिति पर तो वर्चस्व है ही, प्रदेश में भी सरकार है। हालांकि उनके इस बयान से प्रबन्ध समिति ने नाराज़गी जतलाते हुए कहा कि 'अविमुक्तेश्वरानंद को विवाद खड़ा नहीं करना चाहिये बल्कि कोर्ट में सबूत पेश करना चाहिये।' समिति के अध्यक्ष अजेन्द्र अजय ने तो यहां तक कह दिया कि यदि वे कांग्रेस के एजेंडे को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं तो यह दुर्भाग्यजनक है। वे इस बात से भी खफ़ा हैं कि दिल्ली में भी केदारनाथ मंदिर बनाया जा रहा है जिससे केदारनाथ की गरिमा व महत्व घटेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि 'भाजपा सरकार ने केदारनाथ के मूल मंदिर में घोटाला (सोना गायब होना) कर लिया और अब वह दिल्ली में मंदिर बनाकर घोटाला करना चाहती है।'
उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस नेता राहुल गाधी के उस बयान का भी बचाव किया था जिसमें उन्होंने मोदी और भाजपा पर हिंसक होने का आरोप लगाया था। इसे तोड़-मरोड़कर मोदी ने यह कहकर प्रचारित किया कि राहुल हिन्दुओं को हिंसक बतला रहे हैं। इसे लेकर भाजपा ने देश भर में राहुल व कांग्रेस के खिलाफ़ प्रदर्शन कर माहौल बनाने की कोशिश भी की थी। शंकराचार्य ने साफ़ किया कि उन्होंने राहुल का लोकसभा का पूरा बयान देखा है और राहुल ने कहीं भी हिन्दुओं को हिंसक नहीं कहा है। उन्होंने इस बयान को गलत ढंग से पेश करने की जमकर आलोचना की थी।
यहां तक तो फिर भी ठीक था, अविमुक्तेश्वरानंद ने भाजपा को महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पक्ष में बड़ा बयान देकर बहुत मुश्किल में डाल दिया है। उन्होंने कहा है कि 'ठाकरे के साथ विश्वासघात हुआ है और वे उन्हें फिर से सीएम के पद पर देखना चाहते हैं।' उल्लेखनीय है कि दो दिन पूर्व ही वे मुंबई में थे जहां उन्हें ठाकरे ने अपने निवास स्थान मातोश्री में आमंत्रित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी। उन्होंने वहां बयान दिया कि 'असली हिन्दू विश्वासघात नहीं कर सकता और ठाकरे के साथ विश्वासघात हुआ है।' उनके इस बयान का महाराष्ट्र में जबर्दस्त प्रभाव पड़ा है जहां अक्टूबर में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। वहां पहले से ही भाजपा अपने सहयोगियों- शिवसेना (शिंदे गुट) तथा एनसीपी (अजित पवार) के साथ संकट में है जिसकी बानगी लोकसभा चुनाव में दिख गई है। वैसे अविमुक्तेश्वरानंद के बयानों का महत्व महाराष्ट्र की राजनीति के परिप्रेक्ष्य में ही न होकर देश की हालिया सियासत से भी है। भाजपा को सही रास्ते पर लाने में उनके बयान कितनी भूमिका निभा पायेंगे, यह देखना होगा।


