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निजी विश्वविद्यालयों में अयोग्य प्राध्यापक: सीएजी

सीएजी की रपट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश के 17 में से 15 निजी विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्य, खासतौर से प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर, न्यूनतम वांछित योग्यता नहीं रखते हैं।

निजी विश्वविद्यालयों में अयोग्य प्राध्यापक: सीएजी
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शिमला। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक(सीएजी) की रपट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश के 17 में से 15 निजी विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्य, खासतौर से प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर, न्यूनतम वांछित योग्यता नहीं रखते हैं। विश्वविद्यालयों की शासकीय कार्यप्रणाली में उच्च शिक्षा मानक और विनियामक प्रक्रिया के निर्धारण को लेकर सीएजी के प्रदर्शन अंकेक्षण में यह तथ्य प्रकाश में आया है।

इसके अलावा, प्रोफेसरों की 38 फीसदी और एसोसिएट प्रोफेसरों की 61 फीसदी कमी के साथ संकाय सदस्यों का काफी अभाव पाया गया है। सीएजी ने बताया कि पिछले साल मार्च तक सिर्फ तीन विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय मूल्यांकन व प्रमाणन परिषद से मान्यता मिली थी।

अंकेक्षक ने बताया कि वर्ष 2002 से लेकर 2014 तक राज्य में 17 निजी विश्वविद्यालय स्थापित हुए, जबकि निजी विश्वविद्यालयों की आवश्यकता का आकलन नहीं किया गया था। सिर्फ सोलन में 10 निजी विश्वविद्यालय हैं और चार एक ही ग्राम पंचायत में हैं, जोकि यह दर्शाता है कि इस संबंध में क्षेत्रीय जरूरतों और प्राथमिकताओं पर विचार नहीं किया गया।

निजी विश्वविद्यालयों के विनियमन के लिए प्रदेश की विधायिका के एक अधिनियम के जरिए वर्ष 2011 में हिमाचल प्रदेश निजी शैक्षणिक संस्थान विनियामक आयोग की स्थापना की गई।

विनियामक आयोग की खामियों का जिक्र करते हुए सीएजी ने बताया कि आयोग में श्रमशक्ति का अत्यधिक अभाव पाया गया है। वर्ष 2011-17 के दौरान निजी विश्वविद्यालयों में 1,394 पाठ्यक्रमों को आयोग की ओर से मंजूरी दी गई, मगर इसके लिए बुनियादी ढांचा व स्टाफ की उपलब्धता का पता लगाने के लिए कोई जांच नहीं की गई।

यहां तक कि लागत के तत्वों पर विचार किए बगैर प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालयों द्वारा प्रस्तावित शुल्क का अनुमोदन कर दिया। सीएजी ने कहा है, "भारत यूनिवर्सिटी, चितकारा यूनिवर्सिटी और जेपी यूनिवर्सिटी ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलोजी ने बिना किसी औचित्य के बीटेक पाठ्यक्रम के शुल्क में 2017-18 में पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले क्रमश: 21 फीसदी, 23 फीसदी और 58 फीसदी की वृद्धि कर दी, जोकि शुल्क वसूलने में मनमानी का परिचायक है।"


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