इंडोनेशिया की नई राजधानी से पर्यावरण को हो सकता है गंभीर नुकसान
इंडोनेशिया नई राजधानी को हरित अर्थव्यवस्था और सस्टेनेबल विकास के मुताबिक बनाने की योजना बना रहा है.

इंडोनेशिया की राजधानी जर्काता में भीड़भाड़ और प्रदूषण है. यह भूकंप आशंकित क्षेत्र है और जावा समुद्र में डूबने की ओर बढ़ रहा है. अब सरकार भी जर्काता छोड़ रही है. अब बोर्नियो को देश की नई राजधानी बनाया जा रहा है.
राष्ट्रपति जोको विडोडो नई राजधानी के निर्माण में दूरदर्शिता बरतना चाहते हैं. उम्मीद है कि राजधानी को दूसरी जगह ले जाने से जर्काता की मुश्किलें कम हो सकेंगी. उस पर से जनसंख्या का दबाव घटाया जा सकेगा. साथ ही, एक नई सस्टेनेबल राजधानी के निर्माण के साथ देश को नई शुरुआत मिल सकेगी.
योजना है कि नई राजधानी में टिकाऊ विकास से जुड़े पक्षों पर ध्यान दिया जाएगा. उसका अपने पर्यावरण और स्वाभाविक आबोहवा के साथ बेहतर सामंजस्य होगा. सार्वजनिक परिवहन की अच्छी व्यवस्था होगी. साथ ही, जर्काता के मुकाबले इस नई राजधानी में प्राकृतिक आपदाओं की आशंका भी कम होगी.
कई चिंताएं भी हैं
पिछले हफ्ते नई राजधानी की योजना को संसद की मंजूरी मिलने से पहले विडोडो ने कहा, "नई राजधानी का निर्माण केवल सरकारी दफ्तरों को जर्काता से हटाकर वहां ले जाने की प्रक्रिया भर नहीं है. हमारा मुख्य लक्ष्य एक नया स्मार्ट शहर बनाना है. एक ऐसा नया शहर, जो कि अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के मुताबिक हो. जहां बदलाव की प्रक्रिया स्वचालित हो. हम ऐसे भविष्य की ओर बढ़ना चाहते हैं, जहां एक हरित अर्थव्यवस्था नई खोज और तकनीक का आधार बन सके."
बेहतर भविष्य की इन योजनाओं के बीच कई जानकार चिंतित भी हैं. कारण है, बोर्नियो द्वीप के पूर्व में स्थित पूर्वी कालीमंतान प्रांत. यह प्रांत मूलनिवासियों से जुड़ी अपनी संस्कृति और वर्षावनों के लिए जाना जाता है. यहां कई तरह के वन्यजीवों की मौजूदगी है.
जानकारों को आशंका है कि नई राजधानी के चलते यहां के पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है. साथ ही, सरकार ने नई राजधानी बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए 34 अरब डॉलर की राशि देने का ऐलान किया है. महामारी और उसके आर्थिक प्रभावों के बीच इतनी बड़ी राशि के आवंटन को लेकर भी चिंताएं हैं.
पर्यावरण और वन्यजीवन के लिए आशंका
'द इंडोनेशियन फोरम फॉर इनवॉयरनमेंट' (डबल्यूएएलएचआई) नाम की पर्यावरण से जुड़ी एक संस्था है. इसकी एक अधिकारी ड्वी सावुंग ने बताया, "नई राजधानी से जुड़ा पर्यावरणीय शोध बताता है कि इस परियोजना में कम-से-कम तीन बुनियादी दिक्कतें हैं. नदियों, उनके सहायक जल स्रोतों और पानी की व्यवस्था को नुकसान पहुंचने की आशंका है. जलवायु परिवर्तन का खतरा है. और, वनस्पति और जीव जगत के लिए जोखिम हो सकता है. इसके अलावा प्रदूषण और पर्यावरण को होने वाले नुकसान का भी खतरा है."
नई राजधानी से जुड़ा प्रस्ताव 2019 में सामने रखा गया था. इसके तहत नए सिरे से सरकारी इमारतें और आवासीय घर बनाए जाएंगे. शुरुआती अनुमान था कि करीब 15 लाख प्राशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों को नए शहर में ले जाया जाएगा. हालांकि यह संख्या तय नहीं है. मंत्रालय और सरकारी विभाग अभी भी इसपर विचार कर रहे हैं. यह नया शहर कालीमंतान के पूर्वी बंदरगाह 'बलिकपापन' के नजदीक होगा. बलिकपापन की आबादी करीब सात लाख है.
डूब रहा है जर्काता
इंडोनेशिया एक द्वीपीय देश है. इसमें 17 हजार से ज्यादा द्वीप हैं. लेकिन देश की 27 करोड़ से अधिक की आबादी का करीब 54 प्रतिशत हिस्सा जावा में है. यह इंडोनेशिया का सबसे घनी आबादी वाला द्वीप है. जर्काता भी यहीं है. अकेले जर्काता में लगभग एक करोड़ लोग रहते हैं. इसके आसपास के शहरी इलाकों में इससे तीन गुना आबादी बसी है.
जर्काता को सबसे तेजी से समुद्र में समाता जा रहा शहर बताया जाता है. मौजूदा रफ्तार के मुताबिक, 2050 आते-आते जर्काता के एक तिहाई हिस्से के समुद्र में डूब जाने की आशंका है. भूमिगत जल का अनियंत्रित दोहन इसकी एक बड़ी वजह है. जलवायु परिवर्तन के चलते जावा सी के बढ़ते जलस्तर से समस्या और गंभीर हो गई है.
निर्माण समिति में कई अंतरराष्ट्रीय नाम
इन परेशानियों के अलावा एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि यहां की हवा और पानी बहुत प्रदूषित हैं. यहां लगातार बाढ़ आती रहती है. इसकी गलियां और सड़कें बहुत बंद और संकरी हैं. अनुमान है कि इसके चलते इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था को सालाना 4.5 अरब डॉलर का नुकसान होता है. ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए एक नई सुनियोजित राजधानी बसाने का फैसला करने वाला इंडोनेशिया पहला देश नहीं है. पाकिस्तान, ब्राजील और म्यांमार भी ऐसा कर चुके हैं.
नई राजधानी के निर्माण की निगरानी कर रही समिति का नेतृत्व अबु धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मुहम्मद बिन जायद अल नहयान कर रहे हैं. उनके पास संयुक्त अरब अमीरात में हुए कई महत्वाकांक्षी निर्माण परियोजनाओं का अनुभव है. इस समिति में मसायोशी सोन भी शामिल हैं. वह जापानी कंपनी सॉफ्टबैंक के प्रमुख हैं. इसके अलावा ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी इस समिति का हिस्सा हैं. वह 'टोनी ब्लेयर इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल चेंज' चलाते हैं.
कहां से आएगा फंड?
इस परियोजना की कुल लागत का 19 फीसदी हिस्सा सरकारी कोष से आएगा. बाकी रकम सरकार और कारोबारी कंपनियों के सहयोग से आएगी. इसके अलावा निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा किए गए सीधे निवेश से भी फंड जमा किया जाएगा.
इंडोनेशिया के 'पब्लिक वर्क्स ऐंड हाउसिंग' मंत्री बासुकी हादिमुलजोनो ने बताया कि शुरुआती योजना के मुताबिक, राष्ट्रपति आवास बनाने के लिए 56,180 हेक्टेयर की जमीन साफ की जाएगी. इसमें राष्ट्रपति आवास, संसद और सरकारी दफ्तर जैसी इमारतें बनेंगी. इनके अलावा राजधानी को पूर्वी कालीमंतान प्रांत के बाकी शहरों से जोड़ने के लिए सड़कें भी बनाई जाएंगी.
कब तक पूरा होगा काम?
योजना है कि सरकारी कामकाज के लिए जितनी जगह चाहिए, वहां 2024 तक काम पूरा कर लिया जाए. इस समय तक लगभग 8,000 नौकरशाहों और सरकारी अधिकारियों को यहां ले जाने की योजना है.
विडोडो ने कहा था कि वह चाहते हैं, 2024 में उनका दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही राष्ट्रपति आवास को नई राजधानी में स्थानांतरित कर दिया जाए. इसके अलावा गृह, विदेश और रक्षा मंत्रालय और सचिवालय भी 2024 तक स्थानांतरित कर लिया जाए. नई राजधानी का तबादला 2045 तक पूरी कर लिए जाने का अनुमान है.
जर्काता पर क्या असर पड़ेगा?
इस स्थानांतरण से जर्काता और वहां छूटे लोगों पर क्या असर पड़ेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है. 'यूनिवर्सिटी ऑफ इंडोनेशिया' में पब्लिक पॉलिसी के विशेषज्ञ अगुस पंबागियो ने कहा कि वह चाहते हैं कि इस मुद्दे पर विस्तृत अध्ययन के लिए मानवविज्ञानियों की मदद ली जाए.
उन्होंने कहा, "इसके चलते काफी बड़े सामाजिक बदलाव होंगे. इन बदलावों का असर सरकारी कर्मचारियों के तौर पर काम करने वाले लोगों, स्थानीय आबादी और पूरे समाज पर पड़ेगा."


