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परिवारों में एकता और राष्ट्रीय भावना से शक्तिशाली बनेगा भारत : भागवत

भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को श्रेष्ठ बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि परिवारों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत होने पर राष्ट्र शक्तिशाली बनेगा

परिवारों में एकता और राष्ट्रीय भावना से शक्तिशाली बनेगा भारत : भागवत
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बरेली। भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को श्रेष्ठ बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि परिवारों में एकता और राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत होने पर राष्ट्र शक्तिशाली बनेगा।

एमजेपी रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय स्थित अटल सभागार में रविवार को परिवार मिलन समारोह में श्री भागवत ने व्यक्ति को सामाजिक इकाई मानने की बात को भ्रांति बताते हुए कहा कि असल में कुटुम्ब ही समाज आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक इकाई है। संघ कुटुम्ब प्रबोधन माध्यम से समाज के विभिन्न परिवारों के बीच बेहतर तालमेल, परस्पर सहयोग और सौहार्द कायम करने का प्रयास करके समाज और देश को मजबूत करने का प्रयास करता रहा हैै।

उन्होने कहा कि व्यक्ति को सबसे पहले संस्कार अपने परिवार से ही मिलते हैं। समाज को सुसंस्कृत, चरित्रवान, राष्ट्र के प्रति समर्पित और अनुशासित बनाने में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका है। संघ का प्रयास है कि स्वयंसेवकों के परिवारों को भारतीय संस्कृति की मूल अवधारणाओं से जोड़कर समाज को सशक्त बनाया जाए।

सरसंघचालक ने कहा कि लोगों को अपनी परम्पराओं और संस्कृति से जुड़े रहने के लिए अपनी मूल भाषा, वेश भूषा, भजन, भवन भ्रमण और भोजन को अपनाना होगा। विगत लगभग एक सौ वर्ष में संघ का काफी विस्तार हुआ है। उन्होंने कहा कि संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर देश के लोग अब इस संगठन की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे हैं। लोग अपनी मूल परम्पराओं और संस्कृति से जुड़े रहकर प्रगति करना चाहते हैं। संघ की समाज में छवि स्वयंसेवकों के आचरण से ही बनी है।

आरएसएस प्रमुख ने स्वयंसेवकों से कहा कि आचरण जितना अच्छा होगा संघ की छवि उतनी अच्छी बनेगी। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों को सप्ताह में कम से कम एक दिन अपने परिवार और मित्र परिवारों के साथ बैठकर भोजन करने के अलावा राष्ट्र और सांस्कृतिक विरासत से जुड़कर विषयों पर चर्चा अवश्य करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों के परिवारों को विभिन्न जातियों, पंथ, भाषाओं और क्षेत्रों के परिवारों के साथ मित्रवत संबन्ध बनाकर उनके साथ नियमित रूप से मिलन, भोजन और चर्चा के कार्यक्रम करने चाहिए। विभिन्न आर्थिक स्तरों के परिवारों के बीच भी सौहार्दपूर्ण और परस्पर सहयोग बनाने के स्वयंसेवक कुटुम्बों केा प्रयास करने चाहिए। सक्षम, सम्पन्न और वंचित परिवारों के बीच परस्पर सहयोग होने पर कई सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का स्वतः निराकरण हो जाएगा। स्वयंसेवक परिवारों के जीवन का मंत्र देशार्चण, सद्भाव, ऋणमोचन और अनुशासन होना चाहिए।


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