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इंडिया बनाम भाजपा

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 2024 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हराने के उद्देश्य से कांग्रेस की अगुवाई में 26 विपक्षी दल एकत्र हुए और अब इस मोर्चे का नाम इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया रखा गया है

इंडिया बनाम भाजपा
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कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 2024 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को हराने के उद्देश्य से कांग्रेस की अगुवाई में 26 विपक्षी दल एकत्र हुए और अब इस मोर्चे का नाम इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया रखा गया है। वहीं अपने किले को प्रतिपक्षी आक्रमण से बचाने के लिये भाजपा ने छोटी-बड़ी 38 सियासी पार्टियों को अपने पक्ष में लामबन्द किया है। विपक्षी दलों के मुकाबले 12 अधिक दलों का समर्थन जुटाकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा (एनडीए) ने खुद की छतरी बड़ी दिखलाने की कोशिश की है परन्तु दोनों के बीच के अंतर को समझना आवश्यक है तभी इस परिघटना के महत्व और भावी राजनैतिक परिदृश्य को गहराई से समझा जा सकता है।

वैसे तो एक लम्बे समय से यह माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का न तो कोई विकल्प है और न ही भाजपा को हराया जा सकता है। पिछले साल की मई के दूसरे हफ्ते में कांग्रेस की उदयपुर में हुई संकल्प बैठक में देश की सबसे पुरानी पार्टी ने खुद को रिचार्ज किया। इस बैठक में लिये गये निर्णय के ही मुताबिक राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से 7 सितम्बर, 2022 को एक लम्बी दूरी की पैदल यात्रा प्रारम्भ की जिसके 30 जनवरी, 2023 को कश्मीर (श्रीनगर) पहुंचते-पहुंचते भारत की राजनैतिक तस्वीर बदलने लगी। यात्रा के दौरान व संसद में और तत्पश्चात इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में जिस प्रकार से राहुल ने मोदी पर हमला बोला, उन्हें पहले अवमानना के एक छोटे से मामले में सज़ा दिलाई गई।

बुलेट ट्रेन की गति से उनकी सांसदी छिन गई तथा उनका शासकीय बंगला खाली कराया गया। इसके बाद तो देश की फ़िज़ा ही बदल गई। जो कांग्रेस पहले कई दलों के लिये अस्वीकार्य ही नहीं त्याज्य भी थी, उसमें उन्हें भाजपा के खिलाफ़ लड़ाई की रहनुमाई के तत्व दिखने लगे।
बेंगलुरु में विपक्षी दलों के इस महाजुटान में परस्पर विमर्श कर भाजपा को अगले साल के आम चुनाव के जरिये सत्ताच्युत करने सम्बन्धी कार्यक्रम की रूपरेखा बनाई गई। अब इंडिया की एक और बैठक महाराष्ट्र में होगी। जिसमें चुनाव की रणनीति तैयार की जाएगी। गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, अग्निवीर, पुरानी पेंशन योजना जैसे जन सरोकार के मुद्दों पर केन्द्र के खिलाफ सामूहिक आंदोलन तय हो सकते हैं जो पहले इंडिया का न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनेंगे एवं आने वाले समय में उसके संयुक्त चुनावी घोषणापत्र के विभिन्न विषय भी।

विपक्ष की इस सामने दिख रही आंधी को रोकने के लिये भाजपा ने न केवल एनडीए को पुनर्जाग्रत किया है वरन ऐसे-ऐसे दलों को भी अपने खेमे से जोड़ा है जो या तो अल्प ज्ञात हैं अथवा जिनके बारे में ज्यादातर ने पहले कभी सुना भी नहीं था। उससे नये जुड़े कुछ दल ऐसे हैं जिनका न कोई विधायक है और न सांसद। कुछ दलों की विधायिकाओं में बेहद क्षीण उपस्थिति है। पिछले दो लोकसभा चुनावों के भाजपा के अनेक सहयोगी पार्टियां एनडीए से कुछ समय पहले पल्ला झाड़ चुकी थी, उन्हें भी बुलाया गया है। कुछ तो वे दल हैं जिनके नेताओं के साथ भाजपा के कटु सम्बन्ध रहे हैं। अपमान का घूंट सहकर भाजपा इन्हें अपनी बगल में बैठाने पर मजबूर है।

यह सत्तारुढ़ दल की बेचैनी और घबराहट का ही परिचायक है क्योंकि मोदी ब्रांड पर पूर्णत: आश्रित एनडीए को जमीनी हकीकत का एहसास होते ही इल्म़ हुआ कि अकेले दम उसके लिये अगला चुनाव जीतना सम्भव नहीं है। जहां एनडीए का खेमा परिस्थितिजन्य व स्वार्थपरक गठजोड़ है वहीं पहले यूपीए और अब इंडिया लोकतंत्र को बचाने के व्यापक प्रयोजन और जनहित के लिये बना स्वस्फूर्त गठबन्धन है। यह भी अंतर स्पष्ट है कि एनडीए को मजबूत बनाने के लिये भाजपा छोटे-छोटे दलों के पास जा रही है जबकि इंडिया से जुड़ने स्वयं बड़ी पार्टियां आ रही हैं। इनमें वे दल भी हैं जो कभी कांग्रेस को गरियाते थे या उसे कमजोर मानकर खारिज करते रहे हैं।

इंडिया और एनडीए के शिविरों का बड़ा फर्क यही है कि इंडिया में ज्यादातर ऐसे दल व नेता हैं जिनकी अपने-अपने राज्यों में मजबूत स्थिति है। कई ने भाजपा को अपने राज्यों में हराया भी है या दूसरे क्रमांक पर हैं। आधा दर्जन से अधिक मुख्यमंत्रियों और कई कद्दावर नेताओं की मौजूदगी के कारण इंडिया के प्रभाव को फ़ीका करने के लिये भाजपा ने अपना पुराना खेल खेला है जिसे 'हेडलाइन मैनेजमेंटÓ कहा जाता है। विपक्ष की पूर्व निर्धारित इस बैठक का (जो पहले शिमला में 12 जुलाई को होनी तय थी) जवाब देने के लिये आनन-फानन में मंगलवार की शाम को दिल्ली में भाजपा ने एनडीए की बैठक बुला ली।

2024 के चुनावों के मद्देनज़र होने वाली इस सियासी हलचल की थाह लेने के लिये दोनों मोर्चों के स्वरूपों व प्रयोजनों को समझे बिना इसका सही विश्लेषण नहीं हो सकेगा और न ही मतदाता उपयुक्त फैसला ले सकेंगे।


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