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चीन और पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास करेगा भारत

चीन और पाकिस्तान की ओर से अपनी सीमाओं पर संभावित खतरों को विफल करने के लिए भारत लगातार प्रयास कर रहा है

चीन और पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास करेगा भारत
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नई दिल्ली। चीन और पाकिस्तान की ओर से अपनी सीमाओं पर संभावित खतरों को विफल करने के लिए भारत लगातार प्रयास कर रहा है। इस बीच भारत के जवान अब इन दोनों देशों के सैनिकों के साथ रूस में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के एक बड़े आतंकवाद विरोधी अभ्यास में भाग लेने के लिए तैयार है। इस सैन्य अभ्यास का उद्देश्य आतंकवाद और उग्रवाद के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए सहयोग का विस्तार करना है।

एससीओ पहल के हिस्से के रूप में, सदस्य राष्ट्रों के लिए शांति मिशन अभ्यास आयोजित किया जाता है।

पीस मिशन-2021 सदस्य देशों का एक आतंकवाद विरोधी कमांड और स्टाफ अभ्यास है। इस अभ्यास में 3,000 से अधिक सैनिकों के भाग लेने की उम्मीद है।

भारतीय सेना चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और पाकिस्तान सेना के साथ संयुक्त अभ्यास के दौरान हवाई टोही और सुरक्षा सुविधाओं का संचालन करेगी।

संयुक्त अभ्यास रूस के केंद्रीय सैन्य आयोग द्वारा 11 सितंबर से 25 सितंबर तक उरल्स के ऑरेनबर्ग क्षेत्र में डोंगुजस्की प्रशिक्षण मैदान में आयोजित किया जाएगा।

इस ड्रिल में एससीओ चार्टर के तहत अंतराष्र्ट्ीय आतंकवाद विरोधी या आतंकवाद विरोधी माहौल में सामरिक स्तर के संचालन शामिल होंगे। संयुक्त अभ्यास आपसी विश्वास, अंतरसंचालनीयता को मजबूत करेगा और एससीओ देशों के सशस्त्र बलों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने में सक्षम करेगा।

भारत जून 2017 में एससीओ का पूर्ण सदस्य बन गया था। एससीओ की स्थापना 2001 में शंघाई में हुई थी, जिसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान इसके संस्थापक सदस्य थे।

सूत्रों ने कहा कि भारतीय दल में 200 सैन्य कर्मी होंगे, जिनमें मुख्य रूप से थल सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के सैनिक शामिल होंगे।

पिछले साल, भारत इस बहुपक्षीय युद्धाभ्यास से पीछे हट गया था, क्योंकि उसके सैनिक पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ कई क्षेत्रों में चीनी पीएलए के साथ एक तीखे गतिरोध में लगे हुए थे, जबकि पाकिस्तान लगातार संघर्ष विराम समझौते का उल्लंघन कर रहा था।

पहले तो इसके लिए भारत राजी हो गया था, लेकिन बाद में वह पिछले साल बहुपक्षीय अभ्यास से हट गया। आधिकारिक तौर पर कोई कारण नहीं बताया गया कि भारत ने अपने फैसले को क्यों उलट दिया था।


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