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भारतीय सेक्स वर्कर्स की जिंदगी कितना बदल पाएगा सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृत्ति को लेकर दिए अपने आदेश में सेक्स वर्कर्स को भी सम्मान से जीने के अधिकार की वकालत की है.

भारतीय सेक्स वर्कर्स की जिंदगी कितना बदल पाएगा सुप्रीम कोर्ट का आदेश
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक पैनल ने विभिन्न दिशा-निर्देशों की सिफारिश की है, जिसमें कहा गया है, "जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाता है तो संबंधित यौनकर्मियों को गिरफ्तार या दंडित या परेशान नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि स्वैच्छिक यौन कार्य अवैध नहीं है और केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है."

सम्मान का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में वेश्यावृत्ति को "पेशे" के रूप में भी मान्यता दी है और कहा है कि सेक्स वर्कर्स "कानून के तहत सम्मान और समान सुरक्षा की हकदार हैं." वहीं अदालत ने मीडिया को हिदायत दी है कि छापे और रेस्क्यू के दौरान यौनकर्मियों की तस्वीरें नहीं प्रकाशित करनी चाहिए. अदालत ने कहा अगर मीडिया ग्राहकों के साथ सेक्स वर्कर्स की तस्वीरें दिखाता है तो आईपीसी की धारा 354 के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए. अदालत ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को कहा है कि वह मीडिया के लिए दिशा निर्देश जारी करें.

साथ ही अदालत ने पुलिस के लिए निर्देश दिया है कि उसे यौनकर्मियों के साथ सम्मान का व्यवहार करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पुलिस बलों को विशेष निर्देश जारी किए हैं कि वे यौनकर्मियों के साथ सम्मान से पेश आएं और उनके खिलाफ किसी भी तरह का मौखिक या शारीरिक शोषण न करें.

यौनकर्मियों के लिए समान अधिकार

अदालत ने कहा, "यह कहने की जरूरत नहीं है कि आप पेशे में विश्वास करते हैं या नहीं, इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है. यौनकर्मी भी कानून के तहत समान सुरक्षा की हकदार हैं."

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना ने यह निर्देश संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का इस्तेमाल करते हुए यौनकर्मियों के अधिकारों पर कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल द्वारा की गई कुछ सिफारिशों को स्वीकार करते हुए जारी किए हैं. बेंच ने कहा है कि ये निर्देश तब तक लागू रहेंगे जब तक केंद्र सरकार कानून लेकर नहीं आती है.

अदालत ने कहा कि अगर किसी यौनकर्मी का यौन शोषण होता है तो उसे भी कानून के तहत सुरक्षा मुहैया कराई जाए और ऐसी पीड़िताओं को चिकित्सा सहायता समेत अन्य सभी सुविधाएं तत्काल मुहैया कराई जाएं. अदालत ने कहा, "यह देखा गया है कि यौनकर्मियों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर हिंसक और क्रूर होता है. ऐसा लगता है कि वे एक ऐसे वर्ग से हैं जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है. पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यौनकर्मियों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए."

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यौनकर्मी के बच्चों पर कोर्ट ने क्या कहा

अदालत ने कहा कि "यौनकर्मी के बच्चों को भी मानवीय गरिमा और सम्मान की बुनियादी सुरक्षा मिलनी चाहिए." कोर्ट ने कहा, "अगर कोई सेक्स वर्कर अपने बेटे/बेटी होने का दावा करती है, तो यह पुष्टि करने के लिए परीक्षण किया जा सकता है कि दावा सही है या नहीं, लेकिन अगर यह उसका बच्चा है, तो उसके नाबालिग को उसकी मां से जबरन अलग नहीं किया जाना चाहिए."

एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 11 सौ के करीब रेड लाइट एरिया हैं और 28 लाख महिलाएं सेक्स वर्कर के तौर पर काम करती हैं.


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