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न्याय की आस में भारत की "हनीमून दुल्हनें"

नीलम रानी और गौरव कुमार की शादी को 45 दिन हुए थे. डेढ़ महीने बाद गौरव जर्मनी के लिए निकला

न्याय की आस में भारत की हनीमून दुल्हनें
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नीलम रानी और गौरव कुमार की शादी को 45 दिन हुए थे. डेढ़ महीने बाद गौरव जर्मनी के लिए निकला. वह नीलम की सारी नगदी और गहने भी साथ ले गया. ये आठ साल पहले हुआ. तब से 37 साल की नीलम, पंजाब के गुरदासपुर में अपने घरवालों के साथ रह रही हैं. परिवार में बुजुर्ग पिता और छोटी बहन हैं.

नीलम के मुताबिक गौरव ने वादा किया था कि शादी के बाद दोनों जर्मनी में साथ रहेंगे. डीडब्ल्यू से बातचीत में नीलम ने कहा कि पति उनके साथ मारपीट करता था. नीलम का आरोप है कि "पर्याप्त दहेज" न देने के कारण ससुरालवालों ने उन्हें परेशान किया. नीलम के मुताबिक ससुराल वालों ने इतना तंग किया उनका "गर्भपात" हो गया.

भारत में अब भी कायम हैं दहेज प्रथा के वीभत्स परिणाम

कई साल बाद, नीलम ने अपने पति और उसके परिवार वालों के खिलाफ केस दर्ज करने का फैसला किया. अपने पिता की मदद से वह कई पुलिस स्टेशनों और अदालतों के चक्कर लगा चुकी हैं. लेकिन सफलता नहीं मिल रही है. नीलम कहती हैं, "मुझे अभी तक न्याय नहीं मिला है. हर दिन की हिंसा और प्रताड़ना से मेरा शरीर कमजोर हो चुका है. मेरा एक ही लक्ष्य है कि कानून की अदालत मेरे गुनाहगार को दंड दे और मैं अपनी पुरानी जिंदगी वापस चाहती हूं."

डीडब्ल्यू ने नीलम के पति प्रतिक्रिया के लिए संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

छोड़ी गई दुल्हनें

पंजाब के कई शहरों और कस्बों में ऐसी कई महिलाएं हैं, जो नीलम की तरह उत्पीड़न, हिंसा और अलगाव झेल रही हैं. लुधियाना में एक छोटे से घर में रह रहीं संतोष कौर का पति, शादी के 15 दिन बाद ही अमेरिका चला गया. फिर पति कभी संतोष के पास नहीं लौटा. शादी और दहेज के लिए संतोष के घरवालों ने मकान गिरवी रखा था. अब एक एक किस्त भारी पड़ रही है. दिल की बीमारी झेल रही संतोष कहती हैं, "मेरा पूरा परिवार डिप्रेशन में चला गया. लोग, मेरा मजाक उड़ाते हुए पूछने लगे कि मेरा पति कब आ रहा है और मैं कब उसके साथ जा रही हूं."

दुल्हन की तरह बिकने वालीं लड़कियों ने कहा 'हम जानवर नहीं हैं'

भारत में 40 हजार से ज्यादा ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें उनके एनआरआई पति छोड़ चुके हैं. ज्यादातर मामले ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और कनाडा में रहने वाले प्रवासी भारतीयों से जुड़े हैं. भारत का पंजाब राज्य तो ऐसे मामलों का केंद्र माना जाता है. छोड़ी गई दुल्हनों के प्रति समाज का रवैया भी ठीक नहीं है.

शादी के बाद विदेशी पार्टनर की एंट्री रोकता जर्मनी

हर साल हजारों भारतीय मर्द बेहतर जिंदगी की तलाश में विदेश जाते हैं. लेकिन घरवाले उन पर भारत आकर शादी करने का दबाव भी डालते हैं. भारत में अब भी ज्यादातर शादियां परिवार वाले तय करते हैं. ऐसे में कई लोगों को लगता है कि एनआरआई से शादी करके उनकी बेटी को विदेश में एक बेहतर जिंदगी मिलेगी. लेकिन हर मामले में ऐसा नहीं होता.

छोड़ी गई दुल्हनों की मदद

सतविंदर कौर "अब नहीं सोशल वेलफेयर" नामक एनजीओ चलाती हैं. एनजीओ, छोड़ी गई दुल्हनों की कानूनी और वित्तीय मदद करता है. सतविंदर खुद भी इस अनुभव से गुजर चुकी हैं. 2015 में उन्हें पति ने छोड़ दिया. कुछ समय बाद ससुराल वालों ने भी सतविंदर को घर से निकाल दिया.

अब सतविंदर और उनकी टीम 400 से ज्यादा महिलाओं की कानूनी मदद कर रही हैं. वे उनके पतियों के खिलाफ केस लड़ रहे हैं. हो सकता है कि ऐसी शादी करने वाले पुरुषों का पासपोर्ट रद्द हो जाए. सतविंदर कहती हैं, "हमारे एनजीओ ने ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या देखी है और हर दिन अलग अलग राज्यों से हमें फोन आते हैं."

वह कहती हैं, "और सरकार इन महिलाओं की मदद नहीं कर रही है. अगर वे मदद करते तो आप बुजुर्गों के साथ इन महिलाओं को हर दिन अदालतों और पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते हुए नहीं देखते."

सरकार की उदासीनता

इन मामलों से निपटने के लिए पंजाब सरकार ने स्टेट कमीशन ऑफ एनआरआईज बनाया है. इसकी मदद से महिलाएं अपने भागे हुए पति को ट्रैक कर सकती है और उनका पासपोर्ट भी रद्द किया जा सकता है.

राकेश गर्ग इस कमीशन के हेड रह चुके हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि इन मामलों में न्याय पाने में कई बाधाएं हैं. कई देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि न होने की वजह से आरोपी पतियों को वापस नहीं लाया जा सकता है. गर्ग इन मामलों के लिए कड़े कानून बनाने की वकालत करते हैं. लेकिन सच्चाई यह भी है कि बीते दो साल से इस कमीशन के चैयरमैन का पद खाली पड़ा है.

गर्ग कहते हैं, "भारत सरकार और राज्य सरकारें इन चिंताओं पर काम करने के लिए कदम उठा रही हैं लेकिन जांच की प्रक्रिया में कमियां हैं. हमें इसे बेहतर करने करने की जरूरत है."

फिलहाल न्याय का इंतजार कर रही इन महिलाओं का एक एक दिन संघर्ष और निराशा में कटता है. न्याय पाने की राह में उन्हें लगातार रुकावटें मिलती हैं. नीलम और संतोष जैसी कई महिलाएं कर्ज में डूब चुकी हैं. वे सरकार से उम्मीद कर रही हैं, लेकिन सरकार उनके दुख के प्रति उदासीन दिखती है.


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