'इंडिया' से भारत की अपेक्षाएं
मंगलवार को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों ने इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूज़िव एलाएंस- इंडिया के नाम से गठबन्धन बनाकर जहां अगले लोकसभा चुनाव में इकठ्ठे उतरने की तैयारी कर ली है

मंगलवार को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों ने इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूज़िव एलाएंस- इंडिया के नाम से गठबन्धन बनाकर जहां अगले लोकसभा चुनाव में इकठ्ठे उतरने की तैयारी कर ली है, वहीं दूसरी ओर उसी दिन सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में सहयोगी दलों की बढ़ी हुई संख्या (38) के साथ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एनडीए) ने भी 2024 के महासमर के लिये कमर कस ली है। एनडीए का उद्देश्य डिफेंडर के रूप में अपनी केन्द्र की सरकार को बचाये रखना है, तो वहीं दूसरी तरफ चैलेंजर के रूप में उतरा नवनिर्मित गठजोड़ इंडिया उससे सत्ता छीनकर नयी सरकार बनाने का दृढ़ निश्चय कर चुका है। पिछले लगभग एक साल के दौरान पुनर्जीवित हुई कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे (यूपीए) में शामिल कई नयी-पुरानी साथी पार्टियां क्षेत्रीय संकीर्णताओं व व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को परे रखकर लोकतंत्र के व्यापक हित में संयुक्त शक्ति बनने के उत्साह से लबरेज़ दिख रही हैं।
इंडिया बनाम एनडीए में कौन किसे पटकनी देता है यह तो अगले साल के मध्य में होने वाला चुनाव ही बतलाएगा, लेकिन यही वह समय है जब इस बात को समझना होगा कि लोकतंत्र में भरोसा रखने वाली जनता और परिवर्तन का आतुरता से इंतज़ार कर रहा जनमानस इंडिया से कौन सी उम्मीदें लगाये बैठा है। पहले तो यह समझना होगा कि वे कौन से तत्व और कारक हैं जिनके कारण भारत के अधिसंख्य लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दो बार बनी सरकार से निराश हो गये हैं।
पहला तो यह कि आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार बेहद असफल रही है। विभिन्न गलत वित्तीय फैसलों ने भारत को गरीबी व बेरोजगारी के गहरे कुंए में ढकेल दिया है। विकास के विभिन्न पैमानों पर देश अंतरराष्ट्रीय सूची में लगातार फिसड्डी साबित हो रहा है। नोटबन्दी व जीएसटी के गलत फैसलों ने देश की आर्थिक तबाही का रास्ता पहले ही खोल दिया था, जिसके कारण कोरोना काल में हुई करोड़ों लोगों की और भी दुर्गति हुई। ऐसे में भी मोदी के कारोबारी मित्रों का सतत अमीर होते जाना भी लोगों ने देखा था।
जैसी आर्थिक असमानता देश में अभी बनी हुई है वैसी पहले कभी भी नहीं देखी गई। यूपीए सरकार ने 2004 से लेकर 2014 तक देश के करोड़ों गरीबों का जैसा विकास किया था, वह सारा मोदी सरकार ने निष्फल कर दिया। शिक्षा व स्वास्थ्य के गिरे हुए स्तर के साथ भारत के 80 करोड़ से ज्यादा लोग आज सरकारी अनाज पर जीवित हैं।
उत्तरदायित्वहीनता और अपारदर्शिता के साथ मोदी की पहचान आज एक निरंकुश राष्ट्राध्यक्ष के रूप में विश्व भर में होती है जो अपनी आलोचना को कतई बर्दाश्त नहीं करते। सरकार की आलोचना करने वाले विरोधी दलों के नेता, पत्रकार, बुद्धिजीवी, सामाजिक संगठनों के लोग या तो कानूनी कार्रवाई झेल रहे हैं या फिर प्रताड़ित हो रहे हैं। लोकतंत्र के चारों स्तम्भों को मोदी राज में एक-एक कर कमजोर कर दिया गया है। केन्द्रीय जांच एजेंसियों का बेछूट इस्तेमाल विरोधी दलों के नेताओं के लिये किया जा रहा है या फिर विपक्ष की सरकारों को गिराने में होता है। भ्रष्टाचार व वंशवाद को मिटाने के नाम पर पहले तो मोदी, भाजपा व उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ करता रहा। लोगों के ब्रेन वॉश करने से सरकार को अपनी कार्रवाई का औचित्य सिद्ध करने में मदद मिली। हालांकि अब जनता इस खेल को समझ गई कि राष्ट्रवाद व देशभक्ति के नाम पर ये संगठन केवल धन कमाने में लगे हैं- वह भी जनता की जेब से पैसे उगलवा कर।
देश के वे लोग जो भारत को एक समावेशी समाज के रूप में देखते हैं, वे विशेष तौर पर निराश हैं क्योंकि देश का सामाजिक ताना-बाना पिछले 9 साल में पूरी तरह से तार-तार हो गया है। साम्प्रदायिकता, जातिवाद, अगड़े-पिछड़ों की लड़ाई, परस्पर नफ़रत, अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा की खुले आम वकालत आदि के चलते देश में कानून-व्यवस्था का राज ढह गया है। सत्ता से जुड़े लोग कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं और न्याय गरीबों, वंचितों, शोषितों की पहुंच से दूर है।
एक ओर तो आम जनता के अपने दुख-दर्द बढ़े हैं वहीं भाजपा विरोधी राजनैतिक दल व सरकारें देश में संघीय ढांचे के ध्वस्त हो जाने से परेशान हैं। 'कांग्रेस मुक्त' या 'विपक्ष मुक्त भारत', 'डबल इंजन सरकार' आदि जैसी लोकतंत्र विरोधी अवधारणाओं को लोकप्रिय नारों में बदला गया। विरोधी दलों की सरकारों को गिराने के लिये 'ऑपरेशन लोटस' जैसे कुत्सित अभियान चलाए गए। इन गैर-लोकतांत्रिक तरीकों से देश के सभी राज्यों में भाजपा की अपने एकाधिकार की बढ़ती मंशा ने विभिन्न विरोधी दलों को एक मंच पर खड़ा कर दिया है। ऐसे में उन्हें भी यह जानना होगा कि जनता भाजपा के खिलाफ इस गठबन्धन की एक स्थिर सरकार तो चाहती ही है, आने वाले समय में उसे 2014 के पहले वाला वही समावेशी व न्यायपूर्ण भारत चाहिये जो महात्मा गांधी की अहिंसा, नेहरू के विकासवाद तथा संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर की समरसता व धर्मनिरपेक्षता में यकीन रखता हो। 'इंडिया' को यही सुनिश्चित करना होगा।


