भारत-कनाडा सम्बन्ध सुधरें
कनाडा में एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या और उसे लेकर दिये गये वहां के प्रधानमंत्री के बयान को लेकर भारत-कनाडा के बीच कटुता बढ़ चली है जिसका कई तरह से असर पड़ सकता है

कनाडा में एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या और उसे लेकर दिये गये वहां के प्रधानमंत्री के बयान को लेकर भारत-कनाडा के बीच कटुता बढ़ चली है जिसका कई तरह से असर पड़ सकता है। इससे जहां एक ओर दोनों देशों के बीच परस्पर व्यापार पर प्रभाव पड़ेगा वहीं इसके चलते दोनों देशों में रहने वाले सिखों और हिंदुओं के बीच भी रिश्ते खराब हो सकते हैं। इसके लिये बहुत ज़रूरी है कि भारत और कनाडाई सरकारें आपस में बात कर मुद्दों को सुलझाए।
दरअसल ब्रिटिश कोलंबिया में एक कनाडाई सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत और कनाडा के राजनयिक सम्बन्ध खराब हो चले हैं। सोमवार को अपनी संसद को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हत्या को भारत सरकार से जोड़ा। इतना ही नहीं, कनाडा ने भारत के राजनयिक को निष्कासित कर दिया। जवाबी कार्रवाई करते हुए भारत ने भी उनके समकक्ष कनाडाई अधिकारी को देश छोड़ने को कह दिया। इसके कारण दोनों देशों के राजनयिक रिश्ते कटु हो गये हैं जिसे सुधारे जाने की आवश्यकता है क्योंकि वहां रहने वाले हिन्दुओं को कनाडा छोड़ने की धमकियां भी मिलने लग गई हैं। हिन्दुओं को यह भी लगता है कि कनाडाई सरकार का झुकाव सिखों की तरफ़ ज्यादा है।
भारत और कनाडा के बीच 8.16 अरब डॉलर का व्यापार होता है। बड़ी संख्या में भारतीय मूल के परिवार वहां बसे हुए हैं। वर्ष 1900 के आसपास से बड़ी संख्या में लोगों का भारत से वहां जाकर बसना प्रारम्भ हुआ था। ज्यादातर लोग पंजाब प्रांत से गये थे और ब्रिटिश सैनिकों के तौर पर उनका जाना हुआ था। बाद के वर्षों में जब कनाडा शिक्षा का एक बेहतरीन हब बना तथा वहां रहन-सहन का स्तर बेहतरीन होने पर लोगों ने पहले तो वहां शिक्षा पाई और बाद में वे वहीं बस गये। 2021 की जनसंख्या के मुताबिक कनाडा में 7.70 लाख सिख और 8.28 लाख हिन्दू हैं जो कुल आबादी का क्रमश: 2.0 एवं 2.3 फीसदी है। सिख बड़े व्यवसायी एवं खेतों के मालिक हैं तो वहीं हिन्दू ज्यादातर नौकरीपेशा हैं। आज भी पंजाब से जाने वालों का वह उच्च वरीयता वाला देश है, चाहे वे हिंदू हों या सिख। कनाडा में दोनों समुदायों के सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहे हैं। भारतीयों की यहां की राजनीति में अच्छी भागीदारी है और भारतीय मूल के कई लोग सरकार में मंत्री रहे हैं, जिनमें सिख काफी हैं।
1980 के दशक में भारत के खालिस्तानी आंदोलन को कनाडा के सिखों द्वारा मदद करने की बात सामने आती रहती थी। वहां के कई अलगाववादी सिख नेता इस आंदोलन को निर्देशित भी करते थे। कहा तो यहां तक जाता है कि भारत में अब यह आंदोलन चाहे समाप्त हो गया हो परन्तु कनाडा से इसकी सुगबुगाहटें अक्सर सुनाई दे जाती हैं। पिछले दिनों ब्रिटिश कोलम्बिया राज्य में एक गुरुद्वारे के बाहर कुछ नकाबपोशों ने अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कर दी जिस पर बयान देते हुए कनाडाई पीएम ने इसमें भारत सरकार की संलिप्तता बतलाकर मामले को गरमा दिया। एक दूसरे के राजनयिकों के निष्कासन ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है। बात यहीं तक नहीं रुकी। एक अन्य खालिस्तानी चरमपंथी गुरुपतवंत सिंह पन्नू का ऐसा वीडियो वायरल हुआ है जिसमें वे हिन्दुओं को कनाडा छोड़ देने की चेतावनी देते हुए देखा गया है। पन्नू ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि निज्जर के मारे जाने पर हिन्दुओं ने जश्न मनाया था। पन्नू का हिन्दुओं पर आरोप था कि वे न केवल भारत सरकार का समर्थन करते हैं बल्कि कनाडा में रहने वाले खालिस्तानियों की अभिव्यक्ति के अधिकार को कुचलने का पक्ष भी लेते हैं।
इस वीडियो से वहां के हिन्दुओं में दहशत का माहौल है। हिन्दुओं का मानना है कि जस्टिन ट्रूडो के बयान से खालिस्तानी समर्थकों का हौसला बढ़ा है। एक हिन्दू संगठन के विजय जैन के अनुसार 'इस माहौल में हिन्दुओं के जीवन को खतरा है। वे कहते हैं कि ट्रूडो के रुख से खालिस्तानियों के हौसले बढ़ गये हैं। साफ है कि कनाडा में जो कुछ हो रहा है उससे अगर दोनों समुदायों के बीच तनाव और बढ़ता है तो इसका असर भारत पर भी पड़ेगा।Ó यह सच है कि भारत ने बड़ा नुकसान उठाकर और पीड़ा सहकर खालिस्तान आंदोलन से निजात पाई है। इसके कारण देश को अपनी एक प्रधानमंत्री को तक गंवाना पड़ा है। देश इस आंदोलन के नये आघात सह नहीं पायेगा। बहुत से छात्र-छात्राएं हैं जो कनाडा के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत हैं। अगर वहां का सामाजिक सौहार्द्र बिगड़ता है तो इसका बड़ा खामियाजा दोनों पक्षों को भुगतना पड़ सकता है। भारत सरकार को इस दिशा में तत्काल पहल करनी चाहिये क्योंकि हिन्दू हों या सिख, दोनों ही समुदायों में भारत के अपने लोग हैं।
माना जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बड़े पैमाने पर कनाडा में खालिस्तानियों को आर्थिक मदद दे रही है और वह इस बात की कोशिश कर रही है कि खालिस्तान आंदोलन फिर से उभरे। उसके द्वारा की जा रही फंडिंग का उपयोग खालिस्तान के समर्थन में जुलूस निकालने, प्रदर्शन करने, पोस्टर, बैनर आदि के लिये किया जा सकता है जिससे वहां युवा सिख इससे प्रभावित हों। ऐसा होने पर खालिस्तानियों की हरकतें भारत में भी बढ़ सकती हैं। भारत सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिये। इसके अलावा भारत और कनाडा के बीच सम्बन्धों को तत्काल सुधारने की ज़रूरत है। अगर यह आंदोलन कनाडाई सिखों के बीच उभरा तो उन देशों में भी फैल सकता है जहां खालिस्तान समर्थक सिख रहते हैं।


