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भारत ने बैन किए पुराने तेल टैंकर, उत्सर्जन कम करने पर नजर

भारत सरकार ने 25 साल से ज्यादा पुराने हो चुके तेल के टैंकरों और थोक वाहकों के लाइसेंस रद्द कर दिये हैं. पुराने वाहनों से ग्रीन हाउस गैसों का ज्यादा उत्सर्जन होता है और भारत इनकी जगह नए वाहकों का इस्तेमाल करना चाहता है.

भारत ने बैन किए पुराने तेल टैंकर, उत्सर्जन कम करने पर नजर
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इस समय भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक देश है लेकिन उत्सर्जन कम करने के लिए वह कई कदम उठा रहा है. इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत अपने जहाजी बेड़ों की औसत उम्र घटाने जा रहा है. देश के जहाजरानी महानिदेशालय ने इस बारे में जानकारी दी है. साथ ही 20 साल से ज्यादा पुराने वाहकों की खरीद पर पर भी बैन लगा दिया गया है.

महानिदेशालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए इस आदेश के मुताबिक, "भारतीय बेड़े को आधुनिक बनाने की जरूरत है, जिसके जहाजों के पंजीकरण और परिचालन की अनिवार्यताओं की व्यापक समीक्षा की जरूरत है."

मौजूदा दिशानिर्देशों के तहत 25 साल से कम पुराने वाहकों को बिना किसी तकनीकी मंजूरी के खरीदा जा सकता है. हाल के सालों में भारत के जहाजों की औसत आयु काफी बढ़ गयी है, जो कि वैश्विक स्थिति के उलट है. जहाजरानी महानिदेशालय के आदेश में कहा गया है कि "उम्र के ऐसे मानक जीवाश्म ईंधनों से चलने वाले जहाजों को धीरे धीरे पूरी तरह से हटाना और वैकल्पिक/कम कार्बन ऊर्जा वाले कुशल जहाजों को लाना सुनिश्चित करने में सहायक होंगे."

नए नियमों के तहत 15 साल से पुराने तेल टैंकरों की हालत में सुधार लाना होगा और थोक वाहकों का अतिरिक्त निरीक्षण किया जाएगा ताकि उनका उच्च अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार होना सुनिश्चित किया जा सके. अगर इन आदेशों का पालन नहीं किया गया तो जहाज का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है.

ये मानक भारत में काम करने वाले विदेशी जहाजों पर भी लागू होंगे. नए नियमों से प्रभावित होने वाले मौजूदा जहाजों को तीन साल तक काम करने की इजाजत दी जाएगी, चाहे वो कितने भी पुराने हों.

जहाज निर्माण उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार की नकद सब्सिडी देने, टैक्स की दरें कम करने और दूसरे कदम उठाने की योजना है. नए जहाज बनाने के लिए सब्सिडी दी जाएगी, छोटे जहाज बनाने के लिए प्रोत्साहन और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए बैटरी से चलने वाले छोटे जहाज बनाने के काम को बढ़ावा दिया जाएगा.

भारत में जहाज बनाने वाली करीब 35 कंपनियां हैं, जिनमें कुछ सरकारी भी हैं. उत्पादन की लागत कम होने के बावजूद, स्थानीय टैक्स नियमों की वजह से निवेशक इस उद्योग में निवेश करने से हिचकिचाते हैं.


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