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'इंडिया' गठबंधन है विपक्षी एकता की पहली झलक

विपक्षी पार्टियों ने गठबंधन के ढांचे का प्रारूप दे कर विपक्षी एकता का एक संकेत दिया है. 'इंडिया' गठबंधन को नेतृत्व, साझा कार्यक्रम और सीटों के बंटवारे की चुनौतियों का सामना करना होगा. क्या कहते हैं जानकार इस बारे में.

इंडिया गठबंधन है विपक्षी एकता की पहली झलक
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महीनों तक एकता का संदेश देने की कोशिश करने के बाद 26 विपक्षी पार्टियां इस पड़ाव तक पहुंच गई हैं कि गठबंधन के नाम को लेकर तो उनके बीच सहमति बन ही गई. बेंगलुरु में हुई इन पार्टियों की दूसरी बैठक में 'इंडिया' यानी 'इंडियन नैशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायन्स' के नाम की घोषणा को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

और इतना ही नहीं, इससे पहले कि सत्तारूढ़ बीजेपी की तरफ से इंडिया बनाम भारत की बातें कही जातीं, विपक्ष ने नाम के साथ "जीतेगा भारत" टैगलाइन की घोषणा भी कर दी. बीजेपी ने इस नाम पर सीधे प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन कई बीजेपी नेताओं ने इशारों में इसकी आलोचना की.

साझा मंच को जितना हो सके उतना वृहत बनाने की कोशिश में बैठक के बाद जारी किये गए साझा बयान में मुद्दों की एक लंबी सूची गिनाई गई है. इनमें सेक्युलर डेमोक्रेसी, सामाजिक न्याय और फेडरलिज्म से लेकर एजेंसियों के दुरुपयोग, नोटबंदी, बेरोजगारी, जातिगत जनगणना और नफरत आधारित हिंसा तक शामिल हैं.

एकजुटता का संदेश

बैठक में मौजूद सभी पार्टियों ने एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की. कई पार्टियों के अलग अलग कदमों को लेकर कई सवाल उठाए गए लेकिन सभी पार्टियों ने बैठक के बाद भी बयानों में और सोशल मीडिया पर गठबंधन के नए नाम और टैगलाइन का बिगुल बजाया.

कुछ आलोचकों ने सवाल जरूर उठाये हैं कि जून में पटना में हुई बैठक में तय हुआ था कि अगली बैठक में गठबंधन का नाम, संयोजक का नाम और सीटों के बंटवारे के फॉर्मूला पर फैसला ले लिया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इनमें से सिर्फ एक ही फैसला, यानी गठबंधन का नाम, संभव हो पाया.

लेकिन कई जानकारों का मानना है कि कुल मिलाकर बेंगलुरु बैठक सकारात्मक रही. वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन कहती हैं कि साझा कार्यक्रम की घोषणा होना बेहद जरूरी है, लेकिन दो बैठकों में उसका तय न हो पाना कोई बड़ी समस्या नहीं है.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अगर तीन-चार बैठकों के बाद भी साझा कार्यक्रम की घोषणा नहीं हो पाई, तब मैं कहूंगी कि समस्या है." वहीं वरिष्ठ पत्रकार और हार्ड न्यूज पत्रिका के संपादक संजय कपूर का मानना है कि यह गठबंधन काफी उम्मीद भरा है क्योंकि यह पार्टियां कुल मिला कर 11 राज्यों में सत्ता में हैं.

कपूर ने डीडब्ल्यू से कहा कि अगर यह पार्टियां साथ बनी रहीं तो इनके पास इसे एक कड़ी टक्कर में बदलने के लिए संसाधन और नारे भी होंगे. उनका मानना है कि आने वाले दिनों में तीन राज्यों के विधान सभा चुनावों में पता चल जाएगा कि यह गठबंधन काम कर रहा है या नहीं.

समझौतों की जरूरत

गठबंधन में कांग्रेस की भूमिका पर भी चर्चा हो रही है. विपक्ष में अभी भी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ही है, गठबंधन में अब इस बात की स्वीकृति नजर आने लगी है. साथ ही कांग्रेस भी दूसरी पार्टियों के हित में कुछ समझौते करते हुई नजर आ रही है.

मिसाल के तौर पर विपक्ष के अभियान में आम आदमी पार्टी का शामिल होना हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने के लिए लाए गए अध्यादेश को प्रति कांग्रेस के रुख को लेकर टिका था.

बैठक से कुछ ही दिन पहले कांग्रेस ने स्पष्ट शब्दों में अध्यादेश का विरोध व्यक्त किया और उसके बाद 'आप' बैठक में शामिल होने के लिए राजी हो गई.

राधिका रामाशेषन कहती हैं, "कांग्रेस इस गठबंधन के केंद्र में है. मुझे लगता है करीब 190 सीटों पर बीजेपी की सीधी टक्कर कांग्रेस से है और कांग्रेस को इनमें से कम से कम 130 जितनी पड़ेगी. लेकिन अपने आप में कांग्रेस इतने बुरे हाल में थी कि वो अकेले चुनावों में बड़ी सफलता हासिल नहीं कर सकती थी."

उन्होंने आगे बताया कि इसी वजह से यह गठबंधन होना जरूरी था, जिसके लिए बाकी पार्टियों को साथ लेकर चलने के प्रति कांग्रेस की प्रतिबद्धता नजर आ रही है. लेकिन संजय कपूर का कहना है कि पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में समस्या है.

उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश में अगर समाजवादी पार्टी कांग्रेस और आरएलडी के साथ हाथ नहीं मिलाती है तो गठबंधन बिखरा हुआ नजर आएगा. बंगाल की समस्या की तरफ भी ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा कि वहां तृणमूल कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ना चाहती है और सीपीएम भी तृणमूल के साथ हाथ नहीं मिलाना चाहती.

गठबंधन का नेता या चेहरा कौन होगा इस सवाल पर राधिका रामाशेषन कहती हैं कि विपक्ष को इस सवाल पर सबसे आखिर में आना चाहिए, बल्कि वो कोई नेता ना ही सामने लाएं तो अच्छा होगा.

उन्होंने कहा कि ऐसा करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम उस नेता का सीधा पर्सनालिटी कांटेस्ट हो जाएगा और यह शायद विपक्ष के लिए उल्टा पड़ जाए क्योंकि मोदी अभी भी देश में सबसे विश्वसनीय चेहरा हैं.


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