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ब्राजील की सत्ता में बढ़ी महिलाओं की भागीदारी

ब्राजील में राष्ट्रपति लुई इनासियो लूला दा सिल्वा की जीत में महिलाओं ने निर्णायक योगदान दिया था. अब उनकी कैबिनेट में करीब एक तिहाई महिलाएं हैं. आइए एक नजर डालें राष्ट्रपति लूला की जीत को पक्का करने वाली महिलाओं पर.

ब्राजील की सत्ता में बढ़ी महिलाओं की भागीदारी
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यदि राजनीतिक इच्छा मौजूद हो तो सब कुछ मुमकिन है. महिलाओं की राजीनिक भागीदारी भी. स्वास्थ्य, समानता, जेंडर और पर्यावरण नीति, ब्राजील की नई सरकार में महिलाओं के बिना कोई भी महत्वपूर्ण फैसला संभव नहीं होगा. वे सरकार में महत्वपू्र्ण पदों पर काबिज हैं और पर्दे के पीछे भी अहम फैसले ले रही हैं.

ब्राजील में 52 प्रतिशत वयस्क आबादी के साथ महिलाएं मतदाताओं का बहुमत हैं. उनमें से आधी से ज्यादा महिला मतदाताओं ने राष्ट्रपति चुनाव में लूला दा सिल्वा को समर्थन दिया है. राष्ट्रपति लूला ने भी अपनी 37 सदस्यों वाली कैबिनेट में 11 महिलाओं को जगह दी है.

जांजा की भावनात्मक ताकत

लूला की सरकार में सबसे बड़ा राजनीतिक प्रभाव उनकी पत्नी रोजांगेला का है. 56 साल की समाजशास्त्री रोजांगेला को हालांकि कैबिनेट में जगह नहीं मिली है, लेकिन वह पर्दे के पीछे काम करती हैं. महिलावादी रोजांगेला कुछ हफ्तों के अंदर देश की नई राजनीतिक सुपरस्टार बन गई हैं. ब्राजील की राजनीतिक समीक्षक वेरा इयाकोनेली का कहना है, "महिलाओं ने लूला को जिताने में मदद दी है क्योंकि उन्हें लूला और जांजा की जोड़ी पसंद आई."

लेकिन जांजा ऐसी फर्स्ट लेडी होंगी, जिनके लिए शायद देश अभी तैयार नहीं है. जांजा 1983 से लूला की लेबर पार्टी की सदस्य है और लूला को 30 साल से जानती हैं. उनके रिश्ते 2018 में लूला की दूसरी पत्नी मारिसा लेटिसिया की मौत के एक साल बाद शुरू हुए. और अब लूला के राष्ट्रपति बनने के बाद शपथग्रहण समारोह के आयोजन की जिम्मेदारी उन्हीं के हाथों थी.

देश में पहली आदिवासी मंत्री

पिछले राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो की अमेजन को नष्ट करने की नीति के विपरीत राष्ट्रपति लूला पर्यावरण सुरक्षा को काफी प्राथमिकता दे रहे हैं. पर्यावरण और जलवायु सुरक्षा की जिम्मेदारी दो महिला मंत्रियों को दी गई है. मारीना सिल्वा को फिर से पर्यावरण मंत्री बनाया गया है जबकि आदिवासी कार्यकर्ता सोनिया ग्वाजाजारा आदिवासी मामालों का मंत्री बनाया गया है.

अमेरिका की टाइम मैगजीन के अनुसार ग्वाजाजारा 2022 में विश्व के 100 सबसे प्रभावी लोगों में शामिल थी. 1979 में मारान्हेयो प्रांत में जन्मी ग्वाजाजारा पिछले दस सालों से देश के आदिवासी आंदोलन की समन्वयक थीं और संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलनों में भाग लेने के कारण अंतरराष्ट्रीय मंच पर जाना माना नाम हैं.

नस्लवाद के खिलाफ साफ संदेश

अनिएले फ्रांको और अपरेसीदा गोंजाल्वेस को मंत्री बनाकर राष्ट्रपति लूला ने नस्लवाद और महिला विरोधी हिंसा के खिलाफ एक राजनीतिक संदेश भी दिया है. ब्राजील में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में 2015 से लगातार वृद्धि हुई है. अनिएले फ्रांको की राजनीतिज्ञ बहन मारिएले फ्रांको की 2018 में हत्या कर दी गई थी. अब उन्हें जातीय समानता मंत्रालय का जिम्मेदारी दी गई है. उन्होंने कहा है, "हमें ऐसी सरकार की जरूरत है जो देश के 11.5 करोड़ अश्वेत लोगों की हिफाजत करे."

नारीवादी कार्यकर्ता अपरेसीदा गोंजाल्वेस देश की नई महिला मामलों की मंत्री हैं. लूला की पिछली सरकार में वह राज्य मंत्री के रूप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए जिम्मेदार थीं. 60 वर्षीया गोंजाल्वेस लेबर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल हैं. ब्राजील के समाज में नस्लवाद और भेदभाव की कितनी गहरी जड़ें हैं, यह बोल्सोनारो के बयानों में झलकता है. उन्होंने कई बार कहा है कि उनके बेटों के अश्वेत महिलाओं या समलैंगिकों के संपर्क में आने का खतरा नहीं है क्योंकि उनकी अच्छी परवरिश हुई है.

पार्टी सदस्यता से अहम महिलाओं के अधिकार

लूला की नई योजना मंत्री सिमोने टेबेट भी खुद को नारीवादी बताती हैं. उदारवादी चुनावी मोर्चे की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार ने राष्ट्रपति चुनाव के दूसरे चरण में लूला दा सिल्वा का समर्थन किया था. समाजशास्त्री निसिया त्रिनदादे को देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया है. लोक स्वास्थ्य की विशेषज्ञ त्रिनदादे रियो के प्रसिद्ध शोध संस्थान की प्रमुख थीं और कोरोना महामारी के दौरान वायरस से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

तत्कालीन राष्ट्रपति बोल्सोनारो कोरोना को मामूली फ्लू बता रहे थे और उसके खिलाफ टीके गैरजरूरी बता रहे थे. वहीं त्रिनदादे फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ सहयोग कर रही थीं. इसकी वजह से ब्राजील में टीके बन पाए और लोगों को लग पाए. राजनीतिक प्रेक्षक इस पर एकमत दिखते हैं कि लूला के मौजूदा शासन में महिलाओं का राजनीतिक प्रभाव बढ़ा है. भले ही कैबिनेट में पहली बार इतनी ज्यादा महिलाओं को जगह मिली है, लेकिन अभी भी 70 फीसदी मंत्री पुरुष ही हैं. फिर भी शुरुआत तो हुई ही है.


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