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एटीआर में बढ़ी बाघ, तेंदुओं की संख्या

अचानकमार टाइगर रिजर्व में बाघ व तेन्दुओं की गतिविधियां अब तेज होने लगी है.......

एटीआर में बढ़ी बाघ, तेंदुओं की संख्या
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2014 में हुई गणना के अनुसार राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की रिपोर्ट

बिलासपुर। अचानकमार टाइगर रिजर्व में बाघ व तेन्दुओं की गतिविधियां अब तेज होने लगी है। वर्ष 2014 में हुई गणना व राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर पूरे प्रदेश में सबसे अधिक बाघ, तेन्दुएं एटीआर में है। वर्तमान में इनकी संख्या लगभग 28 है और इनकी संख्या बढ़ रहा है। वहीं इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान का प्रदेश में दूसर स्थान है। एटीआर प्रबंधन का दावा है कि वन्यप्राणियों को पर्याप्त सुविधाएं दी जा रही है। जंगल के भीतर भोजन पानी की व्यवस्था के साथ उनके विचरण क्षेत्र को सुरक्षित कर दिया गया है।
गौरतलब है कि अचानकमार टाइगर रिवर्ज में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2009 में हुई गणना के अनुसार लगभग 18 टाइगर थे। वातावरण, जलवायु अनुकूल होने व जंगल के भीतर ही पर्याप्त व्यवस्था होने के कारण इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है। वर्ष 2014 में हुई गणना के अनुसार यहां लगभग 28 टाइगर हैं जिसकी रिपोर्ट राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा तैयार की गई है। प्राधिकरण ने अचानकमार को टाइगर विकास के लिए उपयुक्त पाया है और वर्तमान में पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा बाघों व तेन्दुओं की संख्या एटीआर में ही है। कटघोरा वनमंडल से एटीआर व कान्हाकिसली तक कारिडोर बना हुआ है जिसमें वन्यप्राणियों द्वारा विचरण किया जा रहा है।

एटीआर में सौ से ज्यादा जलस्त्रोत
अचानकमार टाईगर रिजर्व में पानी की कमी से वन्यप्राणियों को जंगल छोड़कर पानी की तलाश में गांव की ओर आना पड़ता था। इससे अब बहुत राहत मिल गई है। एटीआर में लगभग 100 से ज्यादा जलस्त्रोत बनाए गए हैं। जिसमें अभी भी पर्याप्त पानी है। यह जल स्त्रोत जंगल के भीतर ही है। वन्यप्राणियों को अब पानी के लिए भटकना नहीं पड़ता है। भीषण गर्मी में पानी के लिए हर जगह मारामारी रहती है। इससे वन्यप्राणी भी अछूते नहीं रहते थे। अचानकमार टाइगर रिजर्व की जीवन रेखा माने जाने वाली मनियारी नदी भी गर्मी में सूख जाती है। जिससे पूरे जंगल में पानी की कमी हो जाती थी जो अब नहीं हो रही है और वन्यप्राणियों को लमनी, सुरही, छपरवा व अन्य जगह में पर्याप्त पानी मिल रही है।

वन्यप्राणियों के लिए सुरक्षित
अचानकमार अभ्यारण्य की स्थापना सन् 1975 में हुई। बाघों की घटती संख्या से चिंतित शासन ने इसमें समाहित वनक्षेत्र के कुछ परिक्षेत्रों को मिलाकर इसे प्रोजेक्ट टाइगर परियोजना के अंतर्गत बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है। अचानकमार अभ्यारण्य सफारी पर्याप्त का प्रमुख केन्द्र भी है। अवैध शिकार पर कड़े दंड का प्रावधान से शिकार की घटनाओं में भी कमी आई है। आज के तारीख में वन्यप्राणी एटीआर को ही सबसे सुरक्षित स्थान मान रहे हैं और इनकी कुनबा भी बढ़ रही है। एटीआर प्रबंधन द्वारा जंगल के भीतर ही वन्यप्राणियों के लिए भोजन, पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवा रहा है।


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