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सपा और बसपा में बढ़ी नजदीकियां, आरक्षण को लेकर राजनीति तेज

 उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की बढ़ी नजदीकियों से आरक्षण को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी हैं।

सपा और बसपा में बढ़ी नजदीकियां, आरक्षण को लेकर राजनीति तेज
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की बढ़ी नजदीकियों से आरक्षण को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी हैं।

योगी सरकार जहां अतिपिछडों और अति दलितों को आरक्षण देने की घोषणा कर रही है, वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने को ‘बैकवर्ड हिन्दू’ कहने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। सरकार में रहते हुए भी पिछडा कल्याणमंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर अति पिछडों और अति दलितों के आरक्षण की मांग को लेकर लोकतांत्रिक ढंग से संघर्ष करने को तैयार दिखते हैं।

सत्तारुढ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बहराइच (सु़) सीट से सांसद साध्वी सावित्रीबाई फुले ने आरक्षण का कोटा भरे जाने के लिये लखनऊ के कांशीराम स्मृति उपवन में आगामी एक अप्रैल को विशाल रैली करने की घोषणा कर दी है। वह इसकी तैयारी में व्यापक पैमाने पर दौरा कर खासतौर पर अति पिछडों और अति दलितों को एकजुट कर रैली में पहुंचने की अपील कर रही हैं।

आरक्षण को लेकर यह सरगर्मी हाल ही में सम्पन्न लोकसभा की दो सीटों फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव के बाद अचानक बढ़ गयी। योगी सरकार ने पिछडों के 27 फीसदी आरक्षण में से अति पिछडों और दलितों के लिये 22 फीसदी आरक्षण में से अति दलितों को कोटा दिये जाने की घोषणा की है। सरकार ने इसके लिये कमेटी बनाने की भी घोषणा की थी।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती भी आरक्षण का कोटा भरे जाने के साथ ही प्रोन्नति में आरक्षण चाहती हैं। वह इस बारे मेें लगातार बोल रही हैं। वह कहती हैं कि उनकी सरकार बनी तो समाज के पिछड़ों और दलितों को उनका पूरा हक दिलाया जायेगा।

आरक्षण की मांग को लेकर राजनीतिक आंदोलन तेज करने का सबसे दिलचस्प मामला भाजपा सांसद साध्वी सावित्रीबाई फुले का है। वह तो इस हद तक आ गयी हैं कि भले ही उनकी पार्टी या सरकार नाराज हो लेकिन एक अप्रैल को लखनऊ में आयोजित ‘भारतीय संविधान और आरक्षण बचाओं आंदोलन’ विषय पर रैली अवश्य होगी।

फुले का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद आरक्षण का कोटा पूरी तरह नहीं भरा गया। पदोन्नति आरक्षण विधेयक लटका हुआ है। आरक्षण के कोटे को भरे जाने के साथ ही निजी क्षेत्र में भी इसका लाभ मिलना चाहिये। लोकसभा में वह इस मामले को कई बार उठा चुकी हैं, लेकिन अभी तक कोई लाभ नहीं मिला। उनका कहना था कि भारतीय संविधान इतना बढ़िया है कि यदि इसे नौकरी के क्षेत्र में पूरी तरह लागू कर दिया जाये तो चिराग लेकर खोजेंगे तब भी शायद कोई गरीब न मिले। विडम्बना है कि वंचितों की आबादी करीब 85 फीसदी है, लेकिन सबसे ज्यादा गरीबी इसी वर्ग में है। आरक्षण का कोटा भरा ही जाना चाहिये। गरीबी मिटने पर ही जातिवाद जैसी सामाजिक बुराई खत्म हो जायेगी।

उन्होंने कहा कि वह आरक्षित सीट से चुनाव जीती हैं इसलिये पिछडों और दलितों के हितों की लड़ाई लड़ना उनका पहला कर्तव्य है। संविधान के तहत लोकतंत्र में हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके बावजूद यदि उन पर पार्टी कार्रवाई करती है तो यह संविधान का विरोध होगा।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश विधान सभा की सदस्य बनने और 2014 में लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद से वह लगातार सदनों में इस वर्ग के हक की लड़ाई लड़ रही हैं।

उन्होंने कहा कि लखनऊ के डा़ भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय की हालत खराब है। उसकी जांच क्यों नहीं करवाई जाती। उसमें सुधार क्यों नहीं किया जाता।

सरकार में शामिल ओम प्रकाश राजभर भाजपा से गठबंधन चलाने की बात तो करते हैं, लेकिन अति पिछड़ा और अति दलित को उनका हक दिलाने की मांग पर वह सरकार से भी दो- दो हाथ करने में पीछे नहीं हैं।

राजनीतिक प्रेक्षक राजेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर इस तरह की गतिविधियां बढ़ना स्वाभाविक है। सपा और बसपा की नजदीकियों की काट भाजपा की मजबूरी है। सपा, बसपा के एक साथ आने पर इनके साथ मुस्लिम भी आ सकते हैं। तीनों का वोट प्रतिशत साठ से अधिक हो जायेगा।

सिंह का कहना है कि एेसे में राज्य से लोकसभा की 80 सीटों में से ज्यादातर इसी गठबंधन के खाते में जाने की संभावना बढ़ जायेगी। इसकी काट के लिये भाजपा अति दलितों और अति पिछड़ों को ‘कोटे में कोटा’ दिये जाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, वर्ष 2002 में इस तरह का प्रयोग तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह कर चुके हैं।

बहरहाल, लोकसभा चुनाव के नतीजे चाहे जो हों लेकिन उत्तर प्रदेश में जीत हासिल करने के लिये सभी दलों ने गोटियां बिछानी शुरु कर दी हैं।


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