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देश में संवैधानिक मूल्यों पर खतरा बढ़ा : येचुरी

माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने यहां शुक्रवार को कहा कि संवैधानिक मूल्यों पर खतरों का बढ़ता जाना देश के हर व्यक्ति के सामने खड़ा सवाल है और ये सवाल बड़ी प्रमुखता से से उभरा है

देश में संवैधानिक मूल्यों पर खतरा बढ़ा : येचुरी
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भोपाल। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने यहां शुक्रवार को कहा कि संवैधानिक मूल्यों पर खतरों का बढ़ता जाना देश के हर व्यक्ति के सामने खड़ा सवाल है और ये सवाल बड़ी प्रमुखता से उभरा है। राज्यसभा सांसद ने कहा, "हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक ढांचे को बेहतर बनाने के लिए सिर्फ एक ही शर्त है और वह है धर्मनिरपेक्ष और जनतांत्रिक मूल्यों का शक्तिशाली होना, जिसे कमजोर करने वाली ताकतें बढ़ी हैं।"

स्थानीय गांधी भवन में आयोजित शैलेंद्र शैली व्याख्यानमाला के अंतर्गत 'संवैधानिक मूल्यों पर खतरे और सिकुड़ता जनतंत्र' विषय पर व्याख्यान देते हुए येचुरी ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्यधारा से भी यही बात उभरी कि धर्मनिरपेक्ष और गणतंत्र के मूल्यों के अलावा देश की उन्नति का कोई और रास्ता नहीं है। इससे जो राजनीतिक ढांचा बनता है, उसकी मजबूती के लिए आर्थिक आजादी बहुत जरूरी है।

उन्होंने कहा, "आर्थिक आजादी बिना समाजवादी मूल्यों के संभव नहीं है। यह बात भगत सिंह ने भी कही थी। बिना आर्थिक समानता के धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र का ढांचा भी टिकाऊ नहीं रहने वाला है, और आज यह साबित भी हो रहा है।"

येचुरी ने कहा, "अगर हिंदू राष्ट्र का ढांचा बनाया जाता है, तो हमारे ये संवैधानिक मूल्य कायम नहीं रह सकते। इसलिए आज वैचारिक संघर्ष भी बढ़े हैं और संविधान व लोगों की संप्रभुता पर भी हमले बढ़े हैं।"

उन्होंने कहा, "हमारे संविधान का बुनियादी स्तंभ सामाजिक न्याय, आर्थिक आत्मनिर्भरता, संघवाद और धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र हैं और इन चारों के समक्ष गंभीर चुनौतियां उभरी हैं। मुक्ति, समानता और बंधुता जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को बचाने की आज बहुत ज्यादा जरूरत है।"

वामपंथी सांसद ने आगे कहा, "आज समानता की बात करें, तो दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले बेतहाशा बढ़े हैं। आज सड़क पर न्याय दिलाने का भ्रम पाले कई लोग पैदा हुए हैं, जो बहुत गलत है और इनको मानने वाले हमारे देश के पुलिस व न्यायतंत्र में भरोसा नहीं रखते और ये समानता के हत्यारे हैं।"

येचुरी ने कहा, "जहां तक बंधुता का प्रश्न है, तो इसको तोड़ने की घटनाएं बहुत बढ़ी हैं। जब समानता व बंधुता ही खतरे में होगी, तो मुक्ति कैसे संभव होगी? इस बिगड़े माहौल के खिलाफ एक बेहतर माहौल देश में बने, ये हम सभी की जिम्मेदारी हैं।"

उन्होंने संसदीय सत्रों में दिनों का कम होते जाने और सांसदों द्वारा संसद के कार्यो के प्रति 'अगंभीर' होते जाने पर भी चिंता प्रकट की और कहा कि एक ऐसा कानून बनाने की जरूरत है जो सांसदों के लिए संसद में कम से कम 100 दिन की सक्रिय उपस्थिति को अनिवार्य करे। संसदीय कार्यो के प्रति अरुचि व लापरवाही का खत्म होना आज बहुत ही जरूरी बन पड़ा है। संसदीय कार्यवाहियां सुचारु रूप से इसलिए चल नहीं रही हैं।

येचुरी ने कहा कि मोदी सरकार को यदि हर जगह 'आधार' अनिवार्य करना है, तो इसको मतदाता पहचानपत्र से जोड़ते हुए इसका उपयोग मतदान के दौरान भी क्यों नहीं करना चाहते? लेकिन यह नहीं किया जाएगा, क्योंकि इनको फर्जी मतदान की जरूरत जो है।

माकपा महासचिव ने कहा कि आज अल्पमत का राज ही बहुमत का राज साबित किया जा रहा है। जो सरकार केंद्र में है, उसको कुल मतदान करने वालों में से 63 प्रतिशत ने नकारा था, लेकिन वो सरकार बना लिए और इसको बहुमत की सरकार कहते हैं, जो हास्यास्पद है।

उन्होंने आगे कहा, "आज ऐसे माहौल में विचार और व्यक्ति दोनों स्तर पर वोटिंग कराने की जरूरी है, जो हमारे जनतंत्र की मजबूती के लिए बहुत जरूरी है। आज कई माध्यमों से राजनीतिक भ्रष्टाचार को न्यायसंगत बना दिया गया है, जिससे जनतंत्र कमजोर हुआ है।"

येचुरी ने कहा कि मौजूदा सरकार असमानता फैलाने वाली आर्थिक नीतियों को यूपीए सरकार से भी तीव्रतम ढंग से लागू कर रही है। मोदी सरकार ने हर साल दो करोड़ नौकरी देने का वादा किया था। इस लिहाज से अब तक छह करोड़ लोगों को नौकरी मिल जानी चाहिए थी, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि नौकरियों में सतत रूप से भारी कमी देखी जा रही है। किसानों का जो हाल है, वो किसी से छिपा नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि पूंजीपति लोग 11 लाख करोड़ रुपये का कर्ज चुका नहीं रहे हैं, लेकिन उस पर कोई बात नहीं, बल्कि उनके कर्ज को माफ किया जाता है, वहीं किसानों को छोटे-छोटे कर्ज के लिए परेशान किया जा रहा है और वे आत्महत्या करने को मजबूर हैं।

येचुरी ने देश में वैकल्पिक राजनीति के उभार की जरूरत बताई और कहा कि यह केवल जनसंघर्ष से ही संभव है।

व्याख्यान में विषय प्रवर्तन सीटू के राज्य महासचिव प्रमोद प्रधान ने किया, अध्यक्षता वरिष्ठ कवि राजेश जोशी ने की और संचालन राम प्रकाश त्रिपाठी ने किया।


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