किसानों को पानी देने में आनाकानी,उद्योगों पर मेहरबानी
ल दर साल बढ़ती पानी की समस्या और लगातार गिरते जल स्त्रोत के मद्देनजर शासन-प्रशासन को गंभीर होने की जरूरत महसूस की जा रही थी
जांजगीर। साल दर साल बढ़ती पानी की समस्या और लगातार गिरते जल स्त्रोत के मद्देनजर शासन-प्रशासन को गंभीर होने की जरूरत महसूस की जा रही थी, जिस पर अमल करते हुये प्रशासन ने अन्नदाता किसानों के हक के पानी में कटौती कर हालात सुधारने का मन बना लिया है। यही वजह है कि अल्पवर्षा के कारण इस बार रबी फसल में धान को प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके लिए किसानों को पानी नहीं देने का फैसला लिया गया है। नहर से तो पानी मिलेगा ही नहीं और जो किसान बोर या अन्य निजी साधनों से भी धान की सिंचाई करेंगे उन पर भी कार्रवाई की बात सामने आ रही है। बताया जा रहा है कि ऐसे बोर और पंप कनेक्शन काटने की कार्रवाई की जाएगी। किसानों को इस बार धान की बजाए दलहन और तिलहन फसल लेने कहा जा रहा है, क्योंकि इसमें कम पानी की जरूरत होती है। ये पूरी कवायद जल संरक्षण के लिए की जा रही है। लेकिन दूसरी ओर बड़ी मात्रा में भूमिगत जल का दोहन करने वाले उद्योगों की ओर जिम्मेदार अधिकारियों का ध्यान नहीं जा रहा। जिले में आधा दर्जन पावर प्लांट संचालित हैं, जो बिजली का उत्पादन करते हैं। जिसमें भरपूर मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। कई उद्योग बिजली पैदा करने के लिए भूमिगत जल का दोहन कर रहे है।
जांजगीर- चांपा जिला 90 फीसदी सिंचित है और इसी का परिणाम है कि धान उत्पादन के मामले में जिला अव्वल है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है और यह कटोरा भरने में जांजगीर-चांपा जिले का अहम योगदान है। यहां के किसान नहर और निजी सिंचाई के साधन की मदद से रिकार्ड धान का उत्पादन करते हैं। जिससे अन्नदाता किसान के परिवार का पेट भरता है। दलहन और तिलहन उत्पादन के लिए न तो जिले की परिस्थितियां अनुकूल है और न ही इसके लिए बाजार उपलब्ध है। ऐसे में धान की फसल नहीं लेने का फरमान किसानों को नागवार गुजर रहा है। खासकर उन किसानों को जिनके पास खुद के सिंचाई संसाधन उपलब्ध है, बावजूद इसके वे अपने मन पसंद उत्पाद लेने के बजाय प्रशासन द्वारा थोपे गये उत्पाद लेने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है।
जिले में एथेना, आरकेएम, डीबी पावर, अमझर, मडवा, केएसके महानदी पावर प्लांट है। इनके अलावा पीआईएल, एमबीपीएल, लाफार्ज संयंत्र भी अपने लिए बिजली का उत्पादन करता है। बिजली पैदा करने के लिए पानी का भरपूर उपयोग किया जा रहा है। जानकारों की मानें तो 1000 मेगावाट वाली यूनिट को साल में 2.80 करोड क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होती है। इतने पानी से 5600 एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई के साथ ही 5 लाख घरों में पानी की आपूर्ति की जा सकती है। जिले में देखें तो विद्युत संयंत्रों द्वारा हजारों मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है और इनमें कई करोड क्यूबिक मीटर पानी का उपयोग हो रहा है। इसके लिए प्राकृतिक स्त्रोत के अलावा भूमिगत जल का भी भरपूर दोहन किया जा रहा है। इस पर लगाम लगाने की बजाए शासन-प्रशासन के नुमाइंदों द्वारा किसानों के हक के पानी पर नजर टेढी की जा रही है।
पहले सरकार करे पर्याप्त इंतजाम
जिले के किसानों का कहना है कि पहले यहां दलहन, तिलहन की भी खेती बडे पैमाने पर होती थी। लेकिन बाद में सरकारी नुमाइंदों ने ही धान की खेती के लिए प्रोत्साहित किया। धान के लिए बाजार सुलभ है, जबकि दलहन- तिलहन के लिए ऐसा नहीं है। धान की समर्थन मूल्य पर खरीदी की जाती है, जबकि गेहू या अन्य दलहन- तिलहन की समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं होती। यही वजह है कि समय के साथ अब जिले के किसान पूरी तरह से ही धान की फसल लेने लगे हैं। दलहन और तिलहन के उत्पाद सीधे व्यापारियों के पास औने पौने दाम पर बेचना किसानों की मजबूरी होती है। ऐसे में अगर इक्का दुक्का किसान ये फसल लें तो नुकसान ही नुकसान है। अगर मंडी के माध्यम से समर्थन मूल्य पर खरीदी हो तो किसान इसकी ओर आकर्षित हो सकते हैं।
किसानों से पहले उद्योगों पर दें ध्यान: दुष्यंत
कृषक कल्याण समिति के सचिव दुष्यंत सिंह का कहना है कि फसल चक्रण तो अच्छी बात है लेकिन इसके लिए सरकार को पर्याप्त इंतजाम करना चाहिए। किसानों को समय पर दलहन-तिलहन के बीच वितरण और समर्थन मूल्य पर खरीदी की व्यवस्था भी बनानी चाहिए। दुष्यंत सिंह का कहना है कि अगर भूजल के संरक्षण के लिए धान की फसल को प्रतिबंधित किया गया है तो इससे पहले उद्योगों में होने वाले पानी के दोहन पर शासन-प्रशासन को लगाम लगाना चाहिए।
संयंत्रों में जलस्त्रोतों की जांच के लिए बनी टीम: सिंह
इस संबंध में अपर कलेक्टर डीके सिंह का कहना है वर्तमान हालात को देखते हुए पानी के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उद्योगों में होने वाली पानी की खपत पर भी नजर रखी जाएगी। संयंत्रों में जलस्त्रोतों की जांच के लिए अलग-अलग टीम गठित की गई है। सभी एसडीएम की अगुवाई में अलग-अलग टीम अपने-अपने क्षेत्र में संचालित उद्योगों में जांच करेगी और उसके आधार पर आगे की कार्रवाई होगी।


