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एलओसी से सटे गांवों में अब कल की बात हो गई है चहलकदमी कर पाना

जम्मू कश्मीर में एलओसी रेखा से सटे गांवों में दिन के उजाले में तो क्या रात के अंधेरे में भी चहलकदमी कर पाना अब कल की बात हो गई

एलओसी से सटे गांवों में अब कल की बात हो गई है चहलकदमी कर पाना
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--सुरेश एस डुग्गर--

जम्मू । जम्मू कश्मीर में एलओसी रेखा से सटे गांवों में दिन के उजाले में तो क्या रात के अंधेरे में भी चहलकदमी कर पाना अब कल की बात हो गई है। खेतों में गए हुए किसानों को कई-कई दिन बीत जाते हैं। ऐसा वे सब अपनी मर्जी से नहीं करते बल्कि पाकिस्तानी सेना की गोलियों व गोलों की बौछार से घबराते हुए वे ऐसा करने पर मजबूर हैं।

पांव से लेकर सिरों तक पाक सैनिकों की गोलियां आम जनता को भेद्यने लगी हैं। गोद में दूध पीते बच्चे पाक गोलियों का शिकार हो रहे हैं। सबसे अधिक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पाक गोलीबारी लाचार, बूढ़े बीमारों का ही नहीं बल्कि मुर्दों का भी ख्याल नहीं रखती है जो उन्हें छलनी कर देती है।

कुछ दिन पहले राजौरी जिले के मेंढर कस्बे में एक मुर्दे के शरीर को गोलियां छलनी कर गईं। मृतक का अंतिम संस्कार करने के लिए साथ जा रहे लोग बाल-बाल बच गए थे जब उनके पास मोर्टार के दो गोले आ गिरे थे। यह सब आतंकियों द्वारा नहीं किया जा रहा था बल्कि उन पाक सैनिकों द्वारा किया जा रहा था जो पिछले 70 सालों से बंटवारे की रेखा को आग उगलने वाली रेखा में तब्दील किए हुए हैं और सीजफायर के बावजूद अपने तोपखानों के मुंह को खुला रखे हुए हैं।

नतीजतन एलओसी से सटे राजौरी तथा पुंछ के जुड़वा जिलों में किसी की शव यात्रा में शामिल होना खतरे से खाली नहीं है। शव यात्राओं में शामिल होने वालों के दिलोदिमाग में यही भय रहता है कि कहीं उनकी भी शव यात्रा साथ ही में न निकालनी पड़े। लेकिन उनकी मजबूरी है। उन्हें शव यात्राओं में सिर पर कफन बांध कर शामिल होना पड़ता है क्योंकि कब्रिस्तान तथा शमशान घाट पूरी तरह से पाक सैनिकों की गोलीबारी की रेंज में हैं।

ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ था कि पाक सैनिकों ने शव यात्रा पर गोले बरसा कर मुर्दे को भी छलनी किया हो बल्कि अब यह सब इन दोनों जिलों में रहने वाले लाखों लोगों की दिनचर्या का एक अंग बन कर रह गया है। इस पर दलान का रहने वाला शम्सद्दीन कहता हैः‘मुर्दे को भी न बख्शने वाले पाक फौजियों को खुदा कभी नहीं बख्शेगा।’

असल में भारतीय क्षेत्रों में घूमने वाले सभी लोग पाक सेना की नजर में अब सैनिक हैं। वह समझती है कि सादा लिबास में भारतीय सैनिक एलओसी के क्षेत्रों में घूम रहे हैं। जरा सी भीड़ देखी नहीं कि गोलियों की बरसात आरंभ कर दी जाती है जबकि अगर दो चार वाहनों का काफिला दिख जाए तो फिर तो उनमें बैठे लोगों की शामत आ जाती है।

यह इसी से स्पष्ट है कि पिछले कुछ माह के भीतर पुंछ सेक्टर के कई उन क्षेत्रों में पाक गोलियों ने कई वाहनों तथा मासूमों को गोलियों से छलनी कर दिया जो पूरी तरह से एलओसी पर स्थित हैं। जबकि ऐसे नामों की सूची दिनोंदिन बढ़ती जा रही है जिनके शरीरों पर पाक गोलियों के निशान अपनी ही कहानी कहते हैं।

इससे और अधिक शर्म की बात क्या हो सकती है कि पाक सैनिकों ने कुछ महीनों के भीतर हताशा और बौखलाहट मंे भर कर सीमांत क्षेत्रों में करीब चार जनाजों पर भी गोलियों की बरसात कर दी। शायद उन्हें यह भ्रम हो गया था कि इसमें भी भारतीय सैनिक शामिल होंगें जो क्षेत्रों की टोह ले रहे हैं।

स्थिति यह है कि उसके लिए सीमा क्षेत्रों में घूमने वाला प्रत्येक भारतीय आज दुश्मन है। लेकिन इतना अवश्य है कि पाक सेना कभी कभार उन लोगों पर गोलियां नहीं बरसाती जो सलवार-कमीज अर्थात खान सूट पहन कर इन क्षेत्रांे में घूमते हैं। ऐसा इसलिए है क्यांेकि वह समझती है कि ऐसे कपड़े पहनने वाले पाक समर्थक होते हैं। यही कारण है कि अब लोग अपने परिधान को इन क्षेत्रों में बदलने लगे हैं मगर यह इतनी संख्या में नहीं हो पाया है।


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