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अंतिम चरण में चंदौली में प्रतिष्ठा की जंग

उत्तर प्रदेश में वाराणसी के बाद, यदि किसी अन्य लोकसभा सीट को लेकर चर्चा की जा सकती है तो वह है चंदौली

अंतिम चरण में चंदौली में प्रतिष्ठा की जंग
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चंदौली। उत्तर प्रदेश में वाराणसी के बाद, यदि किसी अन्य लोकसभा सीट को लेकर चर्चा की जा सकती है तो वह है चंदौली।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली से दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं और इसी के कारण सीट का महत्व बढ़ जाता है।

चंदौली में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की बड़ी आबादी है, जो ओबीसी के बाद दूसरे स्थान पर है। ओबीसी में मुख्य रूप से यादव हैं। मुसलमानों की भी यहां अच्छी संख्या है, जबकि ब्राह्मण और ठाकुर आबादी की कोई खास भूमिका नहीं है।

मोदी लहर में पांडेय ने 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां जीत दर्ज की थी। इस बार वह मुख्य रूप से 'उज्ज्वला', 'सौभाग्य', 'स्वच्छ भारत कार्यक्रम', 'प्रधानमंत्री आवास योजना' और 'किसान आय सहायता योजना' जैसी सरकारी योजनाओं पर वोट मांग रहे हैं।

जिले में भाजपा कार्यकर्ता लाभार्थियों की सूची से लैस हैं और इसका उपयोग जातिगत बाधाओं को पार करने के लिए कर रहे हैं।

संयोग से चंदौली एक नक्सल प्रभावित जिले के रूप में जाना जाता है और यहां पुलिस का अत्याचार नाराजगी का एक प्रमुख कारण रहा है।

समाजवादी पार्टी (सपा) ने यहां से जनवादी पार्टी के संजय चौहान को मैदान में उतारा है। संजय ओबीसी के अंतर्गत आने वाले लोनिया समुदाय से हैं। सपा का यहां से चौहान को टिकट देने के पीछे विचार गैर-यादव मतदाताओं को लुभाना है।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन ने संजय चौहान की स्थिति को और मजबूत कर दिया है।

चंदौली में कुर्मी मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है, लेकिन अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल चंदौली में ज्यादा समय नहीं दे सकीं, क्योंकि वह मिर्जापुर में अपने स्वयं के अभियान में व्यस्त हैं।

पांडे के सामने जातीय समीकरण की कड़ी चुनौती है, जो उनके पक्ष में नहीं है। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वारणसी से लगे होने के कारण वह दूसरी बार भी यहां से जीत जाएंगे।

पांडे ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रदर्शन और करिश्मा मुझे चुनाव जीतने में मदद गरेगा।"


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