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पाकिस्तान में सिख श्रद्धालुओं से मिलने से रोका गया, भारत ने जताया विरोध 

विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "भारत ने पाकिस्तान सरकार से कड़ा विरोध जताया है

पाकिस्तान में सिख श्रद्धालुओं से मिलने से रोका गया, भारत ने जताया विरोध 
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नई दिल्ली। भारत ने शुक्रवार को गुरु नानक देव की 549वीं जयंती (गुरु पर्व) के अवसर पर पाकिस्तान के दो गुरुद्वारों में मत्था टेकने गए सिख श्रद्धालुओं से भारतीय उच्चायोग के राजनयिक अधिकारियों को मिलने की इजाजत नहीं देने पर इस्लामाबाद से कड़ा विरोध जताया है। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "भारत ने पाकिस्तान सरकार से कड़ा विरोध जताया है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से पहले ही यात्रा इजाजत दिए जाने के बावजूद, इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के राजनयिक अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार किया गया और द्विपक्षीय प्रोटोकोल के तहत यहां आए श्रद्धालुओं से मिलने के लिए गुरुवार व शुक्रवार को गुरुद्वारा ननकाना साहिब और गुरुद्वारा सच्चा सौदा में जाने की इजाजत नहीं दी गई।"

बयान के अनुसार, "इस तरह के दुर्व्यवहार के बाद, वे भारतीय तीर्थयात्रियों के साथ बिना कूटनीतिक और दूतावास कर्तव्यों को निभाए ही वापस इस्लामाबाद लौट आए।"

बयान के अनुसार, "हमने इस बाबत अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है कि यह भारतीय सिख श्रद्धालुओं का लगातार तीसरा दौरा है, जब भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को वहां गए भारतीय नागरिकों से मिलने से रोका गया है।"

इस वर्ष अप्रैल में और फिर जून में, पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया और अन्य राजनयिक अधिकारियों को गुरुद्वारा पंजा साहिब गए सिख श्रद्धालुओं से मिलने से रोका गया था।

बयान के अनुसार, यह 1974 में दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षरित धार्मिक स्थलों का दौरा करने संबंधी द्विपक्षीय प्रोटोकोल की भावना और भारत व पाकिस्तान में राजनयिक व दूतावास संबंधी अधिकारी के साथ व्यवहार के आचार संहिता(1992) का उल्लंघन है।

बयान के अनुसार, पाकिस्तान ने इस बाबत भारत के आचरण के विपरीत काम किया है। भारत ने कलयार शरीफ आए पाकिस्तानी श्रद्धालुओं से उनके उच्चायुक्त और राजनयिक अधिकारियों से मुलाकात करने की इजाजत दी है।

भारत ने गुरुवार को गुरु नानक जी की 550वीं जंयती से पहले पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब के लिए कॉरिडोर बनाने की घोषणा की थी, जिसके बाद यह घटना सामने आई है।

करतारपुर साहिब वह जगह है, जहां गुरुनानक जी ने 1539 में अपनी अंतिम सांसे ली थी।


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