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इमरान की बढ़ी मुश्किलें ; जिसने बिठाया तख्त पर, अब वो भी हुए खफा

दोनों पक्ष इस बात से इनकार करते रहे हैं लेकिन सत्ता के गलियारों में यह चर्चा हमेशा रही कि इमरान खान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाने में सेना और आईएसआई का हाथ रहा था

इमरान की बढ़ी मुश्किलें ; जिसने बिठाया तख्त पर, अब वो भी हुए खफा
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इस्लामाबाद। दोनों पक्ष इस बात से इनकार करते रहे हैं लेकिन सत्ता के गलियारों में यह चर्चा हमेशा रही कि इमरान खान को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाने में सेना और आईएसआई का हाथ रहा था। अब लेकिन बाजी पलट गयी है। इमरान खान केवल बेआबरू होकर सत्ता से बाहर नहीं हुये बल्कि ऐसी रिपोर्टे आ रही हैं कि वह सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी खफा कर बैठे हैं।

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पाक सेना अच्छा शासन न कर पाने के कारण खासकर पंजाब में इमरान की नाकामी से बहुत निराश थी। सेना इस बात से भी खफा हो रही थी कि विपक्षी दल इमरान को सत्ता में लाने के लिये उन्हें दोषी ठहरा रहे थे।

इमरान खान की कुर्सी छीनने से पहले पाकिस्तान में इन दिनों यह चर्चा हो रही थी कि वह सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की जगह पेशावर कोर कमांडर और आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को देना चाह रहे थे। इससे जनरल बाजवा और लेफ्टिनेंट जनरल के बीच की दरार सार्वजनिक होने लगी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक लेफ्टिनेंट जनरल हमीद सैन्य प्रमुख के रूप में अपनी नियुक्ति के प्रति इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने अफगानिस्तान में अधिकारियों को भी इस बारे में बताया था।

सेना के एक सूत्र ने हालांकि बताया कि दरअसल लेफ्टिनेंट जनरल हमीद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता रहा है, जो गलत कामों को अंजाम देते, जैसे

नेताओं को पक्ष में करना और आलोचकों को चुप कराना। वह संस्थान का नेतृत्व करने के लायक नहीं माने जाते थे।

बीबीसी का कहना है कि पाकिस्तान के दो शीर्ष पदों पर बैठे जनरल बाजवा और तत्कालीन आईएसआई प्रमुख हमीद के बीच की खटास तब सार्वजनिक हुई, जब पिछले साल एक पत्रकार के सवाल पूछने पर हमीद ने कहा कि समय समाप्त हो गया है।

इस पर जनरल बाजवा ने तल्खी से कहा, ''मैं प्रमुख हूं और यह निर्णय मैं करूंगा कि समय खत्म हुआ है या नहीं।'' इसके बाद उन्होंने पूरे इत्मीनान के साथ उस सवाल का जवाब दिया।

गत साल अक्टूबर में यह विवाद इतना बढ़ गया कि इमरान खान भी इसके लपेटे में आ गये। ऐसा माना जाता है कि जनरल बाजवा आईएसआई प्रमुख के रूप में दूसरे व्यक्ति को चाहते थे और फिर सेना ने हमीद की जगह लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम को आईएसआई प्रमुख घोषित कर दिया।

इमरान खान, जो उस वक्त तक लेफ्टिनेंट जनरल हमीद के साथ करीबी रिश्ता रखते थे, उन्होंने इसका विरोध किया। इमरान खान शायद यह दांव खेलना चाहते थे कि हमीद एक बार फिर उन्हें सत्ता पर बिठाने में मददगार साबित होंगे।

इमरान खान तीन सप्ताह तक नियुक्ति की आधिकारिक अधिसूचना को दबाकर बैठे रहे लेकिन उन्होंने अंतत: जनरल बाजवा के सामने घुटने टेक दिये। इसी के साथ सेना और इमरान खान की सरकार के बीच दरार भी उभर गयी।

इसी तरह इमरान खान ने भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को ठीक करने की कोशिशें को भी प्रभावित किया जबकि जनरल बाजवा ऐसा चाहते थे और इमरान खान राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं करना चाहते थे।

आश्चर्य की बात यह है कि पाकिस्तान में पहले की सरकारों और सेना के बीच दरार इसी बात से आती थी कि सेना भारत के साथ संबंधों में सुधार के पक्ष में नहीं थी लेकिन सरकारें सुधार चाहती थीं।

पत्रकार कामरान युसूफ ने बीबीसी को बताया कि सेना इमरान खान के गठबंधन सहयोगियों के प्रबंधन में शामिल थी, जिसके कारण वह कुर्सी पर बैठ पाये थे। अब जैसे ही वह समर्थन हट गया तो इमरान का जाना तय था।


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