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भारत और पाकिस्तान की राजनीति पर विवाद का असर

अब जब भारत और पाकिस्तान ने कई दिनों तक चले मिसाइल और ड्रोन हमलों के बाद संघर्षविराम पर सहमति बना ली है. तो दोनों देशों में कुछ ऐसे नेता भी है, जो इस आपदा को अवसर समझ देश में जनसमर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं

भारत और पाकिस्तान की राजनीति पर विवाद का असर
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अब जब भारत और पाकिस्तान ने कई दिनों तक चले मिसाइल और ड्रोन हमलों के बाद संघर्षविराम पर सहमति बना ली है. तो दोनों देशों में कुछ ऐसे नेता भी है, जो इस आपदा को अवसर समझ देश में जनसमर्थन पाने की कोशिश कर रहे हैं.

अभी तक पाकिस्तान की सेना को देश की राजनीति में दखल देने के आरोपों को लेकर काफी आलोचना झेलनी पड़ रही थी. कई पाकिस्तानी लोगों का कहना था कि सेना ने पिछले साल के आम चुनावों में हेरफेर की थी ताकि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को सत्ता से दूर रखा जा सके. खासतौर पर सेना प्रमुख जनरल, आसिम मुनीर पर आरोप लगे थे कि उन्होंने खान को जेल भिजवाने में भूमिका निभाई थी. हालांकि पाकिस्तान की सेना इन आरोपों से इनकार करती रही है.

करीब एक महीने पहले कराची के एक टैक्सी ड्राइवर ने डीडब्ल्यू से कहा था, "सेना की वजह से हमे कई परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं. उन्होंने खान को भी जेल में इसलिए डाला है क्योंकि, उसने सेना के दबदबे को चुनौती दी थी.”

हालांकि 22 अप्रैल को भारत शासित कश्मीर के पहलगाम में हुए हमलेके बाद सब कुछ बदल गया. वहां 26 लोगों मारे गए थे, जिसमें से अधिकतर हिंदू पुरुष थे. इस हमले की जिम्मेदारी "कश्मीर रेजिस्टेंस” नाम के एक गुट ने ली. भारत का कहना है कि यह वही संगठन है जिसे "द रेजिस्टेंस फ्रंट” के नाम से भी जाना जाता है और इसका संबंध लश्कर-ए-तैयबा से है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है.

भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया लेकिन पाकिस्तान ने इन आरोपों से साफ इनकार कर दिया. परमाणु हथियार से लैस दोनों देशों के बीच यह तनाव जल्द ही एक बड़े सैन्य संघर्ष में बदल गया. 7 मई को भारत की वायुसेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तानी नियंत्रण वाले कश्मीर में कई ठिकानों पर मिसाइल से हमला किया. भारत ने इन्हें आतंकवादी ठिकाने बताया.

इन हमलों में दर्जनों लोगों की मौत हुई. जब पाकिस्तान ने दो दिन बाद जवाबी हमला किया तो मरने वालों की संख्या और बढ़ गई.

पाकिस्तानी सेना ने फिर कमान संभाली

इस्लामाबाद के राजनीतिक विश्लेषक, नाजिर महमूद ने डीडब्ल्यू से कहा, "इस तरह के सैन्य संघर्षों से अलोकप्रिय शासन को फायदा मिलता है. भारत के हमले के बाद से जो लोग आमतौर पर पाकिस्तानी सेना की आलोचना करते थे और उदार और धर्मनिरपेक्ष सोच का दावा करते थे. वह भी कह रहे हैं कि पाकिस्तान को भारत को सबक सिखाना चाहिए.”

हाल की झड़प में भारत और पाकिस्तान दोनों देश खुद को विजेता बता रहे हैं और दोनों देशों के नागरिक भी अपनी-अपनी सरकार का समर्थन करते दिख रहे हैं.

पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर सेना की जमकर तारीफ हो रही है और राष्ट्रवाद की भावना खूब झलक रही है. कुछ शहरों में तो लोग सड़कों पर उतर आए है और पाकिस्तानी सेना की "सफलता का जश्न” मनाया. लाहौर की 36 वर्षीय डॉक्टर, मरियम हसन ने डीडब्ल्यू से कहा कि उन्हें देश की सेना पर गर्व है.

पाकिस्तान के दावों का हवाला देकर उन्होंने कहा, "हमने अपने देश की रक्षा की है और कहीं से भी कमजोर नजर नहीं आए हैं. हमने भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराया और भारत पर कई जवाबी हमले भी किए हैं.”

विश्लेषक नाजिर महमूद मानते हैं कि सेना ने अब देश के अंदर अपनी स्थिति फिर से मजबूत कर ली है. उन्होंने कहा, "हालांकि सेना पहले से ही शासन को काफी हद तक नियंत्रित कर रही थी, लेकिन अब यह पकड़ और मजबूत हो गई है.”

लाहौर के पत्रकार और विश्लेषक, फारूक सुलेहरिया बताते है कि यह पता लगाना तो मुश्किल है कि हालिया लड़ाई के बाद सेना की लोकप्रियता कितनी बढ़ी है. लेकिन सोशल मीडिया और मीडिया में आ रही खबरों से यह साफ है कि लोकप्रियता काफी हद तक बढ़ी है.

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "हमें यह समझना होगा कि सेना के लिए जो समर्थन दिख रहा है, वह असल में भारत-विरोधी भावना से आता है. सेना इस छोटे से युद्ध को अपनी जीत की तरह पेश करेगी और इसका इस्तेमाल अपनी छवि बनाने के लिए करेगी.”

'हिंदुओं के रक्षक'

भारत के राष्ट्रवादी भी इस पूरी घटना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए एक ‘जीत' के रूप में पेश कर रहे हैं.

पहलगाम में हुए हमले ने मोदी सरकार पर जबरदस्त दबाव डाला था कि वह इसका बदला ले और हमले के दोषियों और उनका समर्थकों करने वालो को सजा दे.

सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी, सी उदयभास्कर ने डीडब्ल्यू से कहा, "भारत और प्रधानमंत्री मोदी के लिए 22 अप्रैल का हमला ऐसा था, जिसका जवाब देना जरूरी हो गया था. खासतौर पर तब जब विपक्ष और सोशल मीडिया पर लोग 2008 के मुंबई हमलों के बाद मोदी के उस बयान की क्लिप चला रहे थे, जिसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कमजोर प्रतिक्रिया देने के आरोप में घेरा था. इसलिए मोदी के लिए यह साबित करना आवश्यक हो गया था कि वह ऐसे भारत का नेतृत्व कर रहे है, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के अंदर मुरिदके और बहावलपुर तक 'घुस कर मारने' की क्षमता रखता है.”

उदयभास्कर ने यह भी कहा, "यह मोदी-नेतृत्व वाले भारत की एक सख्त, आत्मविश्वासी और आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस वाली छवि बनाती है. और यह सीधे 'हिंदुओं के रक्षक' की छवि से जुड़ा है, जिसका चुनावी फायदा मिलता है. आने वाला बिहार विधानसभा चुनाव में इसका टेस्ट होगा.”

मांत्रया इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज की अध्यक्ष, शांति मारियेत डीसूजा का कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच अमेरिका की मध्यस्थता से हुआ संघर्षविराम कई हिंदू राष्ट्रवादियों को पसंद नहीं आ रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मुझे नहीं लगता कि भारत के राष्ट्रवादी इस सीजफायर से खुश हैं क्योंकि यह पाकिस्तान को सबक सिखाने की उनकी उम्मीदों के अनुसार नहीं है.”

उन्होंने आगे कहा, "पाकिस्तान को लेकर बीजेपी की नीति में कोई बड़ा बदलाव आने की उम्मीद नहीं है. खासकर जब तक पाकिस्तान कश्मीर पर अपना दावा नहीं छोड़ देता है और आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद नहीं कर देता है. बीजेपी की तरह ही बाकी पार्टियों की भी यही नीति रही है.”

भारत और पाकिस्तान दोनों में सख्ती बढ़ने की आशंका

विशेषज्ञों का मानना है कि हालिया संघर्ष के बाद भले ही भारत और पाकिस्तान में देशभक्ति की लहर तेज हो गई हो, लेकिन इसका असली खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ेगा. विश्लेषक महमूद ने कहा, "पाकिस्तानी सेना का राजनीति में दखल और बढ़ेगा, और राजनेताओं के लिए जगह और कम हो जाएगी.”

उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि इस टकराव की आर्थिक कीमत भी आम पाकिस्तानियों को चुकानी पड़ेगी, "सरकार जून में नया बजट पेश करने वाली है. उसने पहले ही कह दिया है कि रक्षा बजट में भारी इजाफा किया जाएगा. ऐसे में विकास कार्यो के लिए आवंटित होने वाली रकम और कम हो जाएगी. मुझे महसूस हो रहा है कि आने वाले समय में सेना का सख्त शासन देखने को मिल सकता है.”

पत्रकार, फारूक सुलेहरिया ने कहा कि मौजूदा हालात पाकिस्तान में नागरिक अधिकारों के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं. वह मानती हैं, "अब बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में जनता के आंदोलनों पर सख्ती और बढ़ जाएगी. इस कारण पूरे देश में दबाव बढ़ सकता है.”

जब भारत की भूमिका पर सवाल उठाया गया कि क्या भारत सरकार इस टकराव का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों और अल्पसंख्यकों को किनारे लगाने के लिए कर सकती है? जवाब में उदयभास्कर ने कहा कि "सोशल मीडिया पर पाबंदियों” में इजाफा हो सकता है. हालांकि उन्हें उम्मीद है कि भारत ऐसा कुछ नहीं करेगा


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