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भारतीय भाषाओं को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ेगा आईआईटी मद्रास

अंग्रेजी और कुछ अन्य भाषाओं के लिए भाषा प्रौद्योगिकी में बहुत प्रगति हुई है

भारतीय भाषाओं को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ेगा आईआईटी मद्रास
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नई दिल्ली। अंग्रेजी और कुछ अन्य भाषाओं के लिए भाषा प्रौद्योगिकी में बहुत प्रगति हुई है। हालांकि भारतीय भाषाओं के क्षेत्र में यह प्रगति नहीं हो सकी। भाषा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय भाषाएं अभी पीछे हैं। यही कारण है कि भारतीय भाषाओं को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ने के लिए आईआईटी मद्रास ने अब एक नई पहल की है। इसके लिए यहां आईआईटी मद्रास में एक विशेष केंद्र स्थापित किया गया है जहां इस कमी को दूर करने पर केंद्रित होगा। इस प्रयास में आईआईटी मद्रास के साथ नंदन नीलेकणी भी शामिल है। आईआईटी मद्रास ने एआई 4 भारत में नीलेकणी केंद्र शुरू किया है जो भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी को बेहतर बना कर लाभदायक सामाजिक प्रभाव उत्पन्न करेगा। इस केंद्र के लिए नीलेकणी फिलेंथ्रोपीज के माध्यम से रोहिणी और नंदन नीलेकणी ने 36 करोड़ रुपयों का अनुदान दिया है।

भारतीय भाषाओं के लिए ओपन सोर्स लैंग्वेज एआई के विकास के लिए आईआईटी मद्रास की एक पहल के रूप में एआई 4 भारत का गठन किया गया। पिछले दो वर्षों में डॉ. मितेश खपरा, डॉ. प्रत्यूष कुमार और डॉ. अनूप कुंचुकुट्टन के मार्गदर्शन में कार्यरत टीम ने भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी में कई योगदान दिए हैं जिनमें मशीनी अनुवाद और बोली पहचानने के लिए अत्याधुनिक मॉडल आदि शामिल हैं।

नया केंद्र भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी के बेहतर विकास का कार्य करते हुए व्यापक प्रभाव उत्पन्न करेगा। 28 जुलाई को नंदन नीलेकणी ने संस्थान के परिसर में इसका उद्घाटन किया। इसके तहत विद्यार्थियों, शोधकतार्ओं और स्टार्टअप के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें भारतीय भाषा प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए उपलब्ध संसाधनों पर चर्चा हुई।

केंद्र के उद्घाटन के अवसर पर नंदन नीलेकणी ने कहा, डिजिटल इंडिया भाषीणी मिशन लोगों को उनकी भाषा में सभी सेवाएं और सूचनाएं उपलब्ध कराने के लक्ष्य से शुरू किया गया है। इसके डिजाइन के केंद्र में 'कोलैबरोटिव एआई है। एआई4भारत इसके अतिरिक्त भारत मूल की भाषा से जुड़े एआई कार्य के लिए सार्वजनिक हित में योगदान और प्रोत्साहन देगा और यह पूरी तरह भाषीणी मिशन के लक्ष्यों के अनुरूप है।

आईआईटी मद्रास के निदेशक प्रो वी कामकोटी ने एआई4भारत में नीलेकणी केंद्र बनाने में समर्पित टीम को बधाई देते हुए कहा, मुझे खुशी है कि आईआईटी मद्रास राष्ट्रीय महत्व के भारतीय भाषा एआई के विकास में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। मैं एआई4भारत के अत्याधुनिक शोध को वास्तविक दुनिया के व्यावहारिक उपयोग को लेकर उत्साहित हूं।

नीलेकणी सेंटर के बारे में विस्तार से बताते हुए डॉ. मितेश एम. खपरा, एसोसिएट प्रोफेसर, कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी मद्रास ने कहा, समृद्ध भारतीय भाषाओं की विविधता के साथ तेजी से प्रगतिशील डिजिटल दुनिया के मद्देनजर भाषा प्रौद्योगिकी में यह विकास उल्लेखनीय प्रगति है जिसका आम आदमी को लाभ मिलेगा। अंग्रेजी और कुछ अन्य भाषाओं के लिए भाषा प्रौद्योगिकी में बहुत प्रगति हुई है लेकिन भारतीय भाषाएं अभी पीछे हैं। यह केंद्र इस कमी को दूर करने पर केंद्रित होगा।

केंद्र ने कई अत्याधुनिक संसाधनों के ओपन सोर्स बनाए हैं जो कोई भी उपयोग कर सकता है। ये मॉडल निशुल्क उपलब्ध हैं और उनके वेबपेज से डाउनलोड किए जा सकते हैं।

डॉ. प्रत्यूष कुमार, शोधकर्ता, माइक्रोसॉफ्ट रिसर्च और एडजंक्ट फैकल्टी, आईआईटी मद्रास ने विस्तार से इस केंद्र की जानकारी देते हुए कहा, यह केंद्र शिक्षा जगत, उद्योग जगत और जन कल्याण संगठनों के संगम पर स्थित है जिसका सभी लाभ ले सकते हैं। इसलिए केंद्र का योगदान व्यापक है। अत्याधुनिक एआई अनुसंधान, बतौर इन्फ्रास्ट्रक्च र ओपन डेटासेट और लोगों के उपयोग के लिए एप्लीकेशंस में इसका अहम योगदान है।

माइक्रोसॉफ्ट के शोधकर्ता डॉ. अनूप कुंचुकुट्टन ने कहा, भारत के विविधतापूर्ण भाषा समूह के लिए एआई प्रौद्योगिकियों का विकास करना महंगा है क्योंकि इसके लिए बड़े डेटासेट और कंप्यूट पावर की आवश्यकता होती है। इसके मद्देनजर हम ओपन सोर्स एआई के विकास में विभिन्न संगठनों के सहयोग के लिए उनके आभारी हैं।


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