बात बिगड़ेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
4 जून 2023 की बात है। कनाडा के ब्रैंपटन शहर में खालिस्तान समर्थकों ने 5 किलोमीटर लंबी एक परेड निकाली थी

- पुष्परंजन
जस्टिन ट्रूडो ने अपने इस खेल में जो बाइडेन प्रशासन को भरोसे में ले लिया है, जो उल्टा भारत को सहयोग देने की नसीहत दे रहे हैं। 18 जून को सिख चरमपंथी निज्जर की हत्या हुई। कोई खुफि या इनपुट नहीं। सब कुछ हवा-हवाई। क्या यह संभव नहीं कि स्वयं जस्टिन ट्रूडो ने इस हाई प्रोफाइल खेल को रचा हो?
4 जून 2023 की बात है। कनाडा के ब्रैंपटन शहर में खालिस्तान समर्थकों ने 5 किलोमीटर लंबी एक परेड निकाली थी। छह जून 2023 को ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी थी। मगर, उससे दो दिन पहले 'शोभा यात्रा' निकालकर माहौल गर्माने का प्रयास किया गया था। इस शोभा यात्रा में एक चलती हुई गाड़ी पर इंदिरा गांधी की हत्या का दृश्य दिखाया गया था। इसमें खून से सनी साड़ी पहने हुए इंदिरा गांधी का एक पुतला था। दो सिख जवानों के पुतले इंदिरा गांधी के पुतले पर गोलियां बरसाते दिख रहे थे। उस झांकी में एक पोस्टर भी लगाया गया था जिसमें लिखा था, 'दरबार साहिब पर हमले का बदला।'
8 जून 2023 को विदेशमंत्री एस. जयशंकर इस आपत्तिजनक झांकी के हवाले से कनाडा के विरूद्ध कड़ा प्रतिरोघ व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यहां बड़ा मुद्दा कनाडा की जमीन का भारत विरोधी चीजों के लिए इस्तेमाल का है। उन्होंने कहा कि भारत विरोध के लिए कनाडा का इस्तेमाल होना, न हमारे रिश्तों के लिए ठीक है, और न उनके लिए ठीक है। एस. जयशंकर ने एक दायित्व बोध के साथ इस विषय को उठाया था। हमारे मतभेद चाहे जितने रहे हों, मगर देश के पूर्व प्रधानमंत्री का इस तरह अपमान क्यों कोई भारतीय बर्दाश्त करे। जयशंकर ने जो किया, उसकी सराहना होनी चाहिए। लेकिन इस समय भारत और कनाडा के बीच जो कुछ चल रहा है, इंडिया गठबंधन को अपनी स्थिति साफ कर देनी चाहिए।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉडी थॉमस ने एक बयान में कहा था कि, भारत उनके देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है। वो कौन से आतंरिक मामले हैं? जस्टिन ट्रूडो की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को स्पष्ट कर देना चाहिए था। आप अतिवाद को ऊर्जा दो, और उल्टा चोर कोतवाल की तरह व्यवहार करो। कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ऐसा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी कुर्सी 2025 चुनाव तक बचानी है। पूरे देश का ध्यान उन्होंने बांट लिया है।
जस्टिन ट्रूडो के साथ मुश्किल यह है कि सरकार को सुचारू रूप से चलाने की बजाय देश का ध्यान भटकाने के लिए कभी चीन से, तो कभी भारत से कूटनीतिक संबंध बिगाड़ने में लगे हुए हैं। अक्टूबर 2025 तक सत्ता में बने रहने के लिए जस्टिन ट्रूडो एक कठपुतली प्रधानमंत्री की भूमिका में हैं। सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी को 338 सदस्यीय हाउस ऑफ कॉमंस में 170 सभासदों का समर्थन चाहिए। 2019 के आम चुनाव परिणाम के समय न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) के लीडर जगमीत सिंह किंग मेकर की भूमिका में अवतरित हुए थे। उनके कहने पर ही 18 सिख सांसदों ने जस्टिन ट्रूडो को प्रधानमंत्री स्वीकार किया था। 22 मार्च 2022 को दूसरे आम चुनाव में भी यही सीन था। एक बार फिर सिख सांसदों ने ट्रूडो की कठपुतली सरकार को समर्थन दे दिया। चार साल की यह मियाद 20 अक्टूबर 2025 को पूरी होगी
ट्रूडो ने हालिया बयान में कहा भी था कि हम 'सप्लाई एंड कान्फिडेंस' की नीतियों के साथ एनडीपी से अपने संबंध निर्वाह कर रहे हैं। कनाडा की घरेलु राजनीति में स्थिरता के लिए सिख सांसदों का समर्थन ही एकमात्र विकल्प है। ठीक से देखा जाए तो भारतीय लोकसभा से कहीं अधिक सिख सांसद कनाडा में हैं। लोकसभा में 13 तो कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स में 18 सिख सांसद हैं।
सबसे दुखद पहलू यह है कि खालिस्तान की आवाज को बुलंद कराने में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का पूरा समर्थन है। दो साल पहले खालिस्तान पर मतसंग्रह को लेकर जस्टिन ट्रूडो ने बाकायदा बयान दिया कि खालिस्तान के वास्ते मतसंग्रह जब तक शांतिपूर्ण है, हम उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं सकते। यह कनाडा के क़ानून द्वारा प्रदत अधिकार है कि किसी विषय पर आप मत संग्रह करा सकते हैं। फ्री स्पीच, असेंबली कनाडा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। कनाडा सरकार अखंड भारत के अस्तित्व को स्वीकार करती है। हमने अपने पोजिशन में कोई बदलाव नहीं किया है। हम किसी एडवोकेसी ग्रुप द्वारा मतसंग्रह को मान्यता नहीं देते, मगर हम उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं सकते हैं।
थोड़ी देर के वास्ते मान लिया कि कनाडा के प्रधानमंत्री अपने देश के क़ानून को लागू कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। लेकिन एक उदाहरण के हवाले से वह अपने कुतर्क में खु़द फंस जाएंगे। ओंटारियो गुरूद्वारा कमेटी बाकायदा आदेश जारी करती है कि हमारे धर्मस्थलों, ख़ुसूसन ब्रैम्टन के गुरूद्वारों में दूतावास या भारत सरकार का कोई अधिकारी प्रवेश नहीं करेगा। अब कोई जस्टिन ट्रूडो से पूछे कि कनाडा की धरती पर यह आदेश कैसे लागू हो सकता है?
टोरंटो स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास के आगे जो कुुछ उपद्रव हुआ उसके पीछे की कथा यह है कि ओंटारियो के अंतर्गत आने वाले केल्डोन शहर में किसी इंडो-कैनेडियन नागरिक ने भिंडरावाला का बैनर फाड़ दिया था, जिसे बाद ने पुलिस ने हिरासत में ले लिया था। इस घटना की प्रतिक्रिया में कोई पांच सौ सिखों का हुजूम टोरंटो स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास के आगे प्रदर्शन करने पहुंच गया। उनका आरोप था कि यह सब दूतावास के उकसावे पर हुआ है। वो बोल रहे थे, 'जनरैल सिंह भिंडरावाला शहीद हैं, संत हैं, खालिस्तान आंदोलन के आइकॉन हैं, हम उनका अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे।' इस तरह का कांड करके उत्तर अमेरिका में हिंदू-सिखों को विभाजित करने की चेष्टा पहले से हो रही है, इस सच से हम इंकार नहीं कर सकते। ऐसे खेल में न सिफ़र् प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो व उनके शैदाई सिख सांसद शामिल हैं, बल्कि पाकिस्तान का दूतावास भी अहम भूमिका अदा कर रहा है।
यह एक ख़तरनाक पहलू है कि इस इलाकेे में रहने वाले भारतवंशियों को बांटने की साजिश चल रही है। 2021 में प्रवासी भारतीयों के बारे में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में जानकारी दी गई कि विदेश रहने वाले भारतीयों की संख्या 18 करोड़ है। हर साल प्रवासी भारतीयों की संख्या में दस लाख का इजाफा होता गया है। 2010 से 'एनआरआई-पीआईओ' की आबादी में 17. 2 प्रतिशत की दर से बढ़त हो रही है। ये कहने को प्रवासी हैं, मगर इनमें खेमे बंटे हुए हैं। एक, भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान का समर्थक और दूसरा विरोधी। कुछ ऐसे भी हैं, जो इस खेमेबाजी से दूर अपने काम और परिवार से सरोकार रखते हैं।
इंडियन डायसपोरा में यह खेमेबाजी मई 2014 के बाद से व्यापक रूप से दिखी है। जो लोग दुनियाभर में डायसपोरा को मॉनिटर करते हैं, उन्हें भी इस नये ट्रेंड पर हैरानी है। आज की जमीनी हकीकत यह है कि उत्तर अमेरिका जैसे इलाक़े में धर्म, समुदाय, प्रांतवाद के आधार पर एनआरआई-पीआईओ देश में मौजूदा नेतृत्व के प्रति अपनी निष्ठा बदलने लगे हैं। क्या इसके लिए दोषी वो लोग नहीं हैं, जो भारतीय विदेश नीति तय करते हैं। यदि पीएम मोदी के भाषणों में प्रतिपक्ष पर कटाक्ष विदेशी मंचों पर होता है, तो भारतीय समुदाय में विभाजन का दोषी कौन है?
विगत एक दशक में सिख चरमपंथ लंदन, पाकिस्तान से लेकर उत्तर अमेरिका तक अपनी जड़ें गहरी कर गया है, उसकी ज़िम्मेदारी देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार क्यों नहीं लेते? देश के गृहमंत्री भी नहीं स्वीकारते कि सिख अतिवाद को जड़ से मिटाने में हम विफल रहे हैं। चार-छह कौवे मारकर टांग दो, तो अतिवाद समाप्त हो जाएगा, ऐसा कोई रणनीतिकार सोचता है, तो अपने नेतृत्व को भ्रम में रखता है। इस पूरे प्रकरण में ट्रूडो जैसा शातिर प्रधानमंत्री कोई भी खेल कर सकता है। 2018 में कनाडा की खुफि या सेेवा के हवाले से सरकार ने पांच सिख अतिवादियों की सूची जारी करते हुए सचेत किया था कि ये देश के लिए ख़तरा हैं। अब भी कनाडा सरकार की 'पब्लिक सेफ्टी' वेबसाइट में बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई), इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन (आईएसवाईएफ) बतौर आतंकी संगठन सूचीबद्ध हैं।
क्या बीकेआई और आईएसवाईएफ के सदस्य कनाडा के ब्रैंपटन शहर में खालिस्तान समर्थकों की रैलियों में होते हैं? जस्टिन ट्रूडो सरकार को चाहिए कि सही तरह गेहूं में घुस आये घुन को खोज ले। ये घुन इस देश के लिए कभी भी ख़तरनाक साबित हो सकते हैं। कनाडा और अमेरिका में जिस तरह का भारत-विरोधी उत्पात होता है, उनमें सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) का नाम सबसे आगे दीखता है।
न्यूयार्क में 'एसएफजे' सरगना गुरूपतवंत सिंह पन्नू का मुख्यालय है। तो क्या जो बाइडन प्रशासन खालिस्तान की रचना के वास्ते पन्नू जैसे लोगों की आर्थिक-राजनीतिक मदद कर रहा है? यह सवाल अमेरिकी दूतावास से दिल्ली में कोई नहीं पूछता। आप जी-20 के हवाले से जो बाइडेन का गुणगान और गुडी-गुडी करते रहिए लेकिन अतिवाद के आका के बारे में अमेरिकी प्रशासन से सवाल करने की हिमाक़त मत कीजिए। इसी आतंक के आका गुरपतवंत सिंह पन्नू ने वीडियो जारी किया है कि जो प्रवासी भारतीय खालिस्तान का समर्थन नहीं करते, वो कनाडा छोड़ दें। दो दिन बाद कनाडा का सुरक्षा विभाग जगा, और बयान दिया कि कनाडा में नफरत या डर पैदा करने वाले बर्दाश्त नहीं किये जाएंगे।
सबसे दिलचस्प है कि न्यूयार्क के कोर्ट में आरएसएस को आतंकी संगठन घोषित करने का एक मुकदमा 'सिख फॉर जस्टिस' नामक संगठन ने दायर कर रखा था। अब मोदी सरकार के पास रीढ़ ही नहीं है कि जो बाइडेन प्रशासन से कहकर गुरपतवंत सिंह पन्नू का प्रत्यर्पण भारत कराये, तो हम-आप क्या कर सकते हैं? हिंदू स्वयंसेवक संघ भी शेर का प्रतीक चिह्न लगाकर प्रसन्न होता रहे। जस्टिन ट्रूडो ने अपने इस खेल में जो बाइडेन प्रशासन को भरोसे में ले लिया है, जो उल्टा भारत को सहयोग देने की नसीहत दे रहे हैं। 18 जून को सिख चरमपंथी निज्जर की हत्या हुई। कोई खुफि या इनपुट नहीं। सब कुछ हवा-हवाई। क्या यह संभव नहीं कि स्वयं जस्टिन ट्रूडो ने इस हाई प्रोफाइल खेल को रचा हो?
[email protected]


