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अब भी राहुल सख्त नहीं हुए तो गुडबाय, टाटा!

कांग्रेस बिना डंडे के नहीं मान सकती। भाजपा को चाहे जितनी आलोचना कांग्रेस करे

अब भी राहुल सख्त नहीं हुए तो गुडबाय, टाटा!
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- शकील अख्तर

कांग्रेस बिना डंडे के नहीं मान सकती। भाजपा को चाहे जितनी आलोचना कांग्रेस करे। मगर आंख खोलकर यह देख ले कि वहां मोदी जी ने कैसा सबको सतर कर रखा है। एक हफ्ते से ज्यादा वक्त तक तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री पर माथापच्ची होती रही। मगर क्या मजाल कि कोई चूं भी कर जाए। जब देश की सत्ताधारी पार्टी का हाल ऐसा है तो कांग्रेस का अतिउदारवाद जो दरअसल ढीलापन है कैसे चलेगा!

कहानी मत सुनो इनकी कहानी मालूम करो। तीन जीते हुए राज्यों को हारने के बाद कांग्रेस ने फटाफट इनकी समीक्षा बैठक कर ली। क्या नया निकला उसमें से? कुछ नहीं। जो खुद हार के जिम्मेदार हों वे क्या बताएंगे?

हम पहले भी कई बार लिख चुके हैं फिर लिख रहे हैं कि राहुल के पास नई कांग्रेस बनाने का मौका था। अब भी है। मगर वे खाली रिपेयर से काम चला रहे हैं। कांग्रेस के पास वह माध्यम ही खत्म हो गए हैं जिसके द्वारा वह अपनी बात लोगों तक पहुंचा पाए। जब मीडिया आपका साथ नहीं दे रहा। बल्कि यह कहना चाहिए कि पूरी तरह आपके खिलाफ है तो उसमें जाकर रोज अपना चेहरा दिखाने वाले पदाधिकारियों के खिलाफ तुरंत प्रभाव से कार्रवाई करना चाहिए। यह प्राइवेट एजेन्सियां कांग्रेस इतना हायर करती है और पता नहीं कितना करोड़ों लेकर कांग्रेस को वह उतना ही हरवाती हैं जितना वह उनके बिना हार रही होती है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि यह उम्मीदवारों का सर्वें, विज्ञापन, प्रचार करने का ठेका लेने वाले अगर नहीं होते तो कांग्रेस के कुछ उम्मीदवार ज्यादा ही जीतते। ये जीताने वाले चुनाव विशेषज्ञ नहीं होते पैसा कमाने वाले धंधेबाज होते हैं।

अगर इनके सर्वें के हिसाब से ही टिकट मिले तो फिर टिकट बेचने की शिकायतें कहां से आ गईं? इनके लड़के और लड़कियां जो फील्ड में जाते हैं वे कौन होते हैं। दूसरे समय में वे सेल के काउंटरों पर सेल्समेन और सेल्स गर्ल का काम करते हैं। उन्हें किसी प्रोडक्ट की क्वालिटी के बारे में मालूम नहीं होता वह तो जिस चीज को आप उठाकर देखने लगो उसको कहने लगते हैं कि हां अच्छी है। ऐसे ही यह सर्वें वाले क्षेत्र में जाकर जो उनसे मिल लेता है। सेवा सत्कार कर देता है उसे सबसे लोकप्रिय उम्मीदवार बता देते हैं।

मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा सर्वे का हल्ला था। और कांग्रेस सबसे ज्यादा बुरी तरह मध्य प्रदेश में ही हारी है। छत्तीसगढ़ में तो कोई कह ही नहीं रहा था कि कांग्रेस हार भी सकती है। मगर अब वहां के अख़बार टिकट बेचने की खबरों से भरे पड़े हैं। कांग्रेस के नेता खुलेआम टिकट बेचने के आरोप लगा रहे हैं। राजस्थान मध्य प्रदेश में ऐसे ही आरोप लग रहे हैं।

कांग्रेस में यह तो पुरानी शिकायत है कि जितना पैसा उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए भेजा जाता है उसमें से बड़ा हिस्सा कमीशन के नाम पर काट लिया जाता है। लेकिन इस बार एक नई शिकायत और सुनने को मिली। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की सभा के इंतजाम के लिए 25-25 लाख रुपए हर जगह भेजे गए थे। उसमें से आधे खर्च किए जाते थे और आधे बांट लिए जाते थे। कांग्रेसी पार्टी अध्यक्ष को भी नहीं छोड़ते!

राहुल को यह सब चीजें मालूम करना चाहिए। जैसे उम्मीदवारों के सर्वे के लिए कहते हैं तीन-तीन एजेन्सियों से करवाया गया। वैसे ही हर राज्य के लिए दो या तीन लोगों को पहुंचाना चाहिए। पार्टी के। इसके अलावा राहुल को अपने आफिस के लोगों से भी थोड़ा काम लेना चाहिए। उन्हें भी फील्ड में भेजना चाहिए कि क्या हुआ, क्या हो रहा है मालूम करके आएं। और तीसरे उन प्राइवेट एजेन्सियों से पूछना चाहिए जिन्हें इतना पैसा दिया है कि लिखित में बताओ कि क्यों हारे?

यह तीनों राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान हारने के नहीं थे। कांग्रेस जीती हुई बाजी हारी है। दोषी कौन है? वही जो जीत जाते तो इसका श्रेय लेते। मध्य प्रदेश में कमलनाथ, राजस्थान में गहलोत और पायलट एवं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव। यही तो गाल बजाते। 2018 में यही तो किया था। राहुल को एक रत्ती जीत का श्रेय नहीं दिया था। अब हारे हैं तो मानें अपनी गलतियां। क्या किसी ने कहा कि मैं इस्तीफा देता हूं?

मैं अपना अहंकार, गुटबाजी में लगे रहना, आत्ममुग्धता स्वीकार करता हूं? तीनों राज्यों की रिव्यू मीटिंग हो गई। कहीं पश्चाताप के स्वर सुनाई दिए। दिग्विजय ने 2003 की हार के बाद दस साल तक कोई पद नहीं लिया था। क्या इनमें से कोई ऐसा है जो एक साल भी बिना पद के रह सके?

कांग्रेस बिना डंडे के नहीं मान सकती। भाजपा को चाहे जितनी आलोचना कांग्रेस करे। मगर आंख खोलकर यह देख ले कि वहां मोदी जी ने कैसा सबको सतर कर रखा है। एक हफ्ते से ज्यादा वक्त तक तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री पर माथापच्ची होती रही। मगर क्या मजाल कि कोई चूं भी कर जाए। जब देश की सत्ताधारी पार्टी का हाल ऐसा है तो कांग्रेस का अतिउदारवाद जो दरअसल ढीलापन है कैसे चलेगा! महाजन येन गत:स पंथा:। इस समय का मार्ग यह ही है। और कांग्रेस भाजपा का क्यों माने? खुद उसकी नेता इन्दिरा गांधी सत्ता की मजबूत केन्द्र थीं। जिस राजस्थान में गहलोत और पायलट लड़ते रहे और राहुल कोई फैसला नहीं कर पाए। वहां इन्दिरा गांधी ने मोहनलाल सुखाडिया और हरिदेव जोशी जैसे नेताओं के बीच में से बरकतउल्लाह खान जैसे सामान्य कांग्रेसी को मुख्यमंत्री बना दिया था। और ऐसे ही जोशी और शिवचरण माथुर के झगड़े के बीच में से दलित जगन्नाथ पहाड़िया को मुख्यमंत्री बनाया था।

तो इन्दिरा ऐसे सख्त फैसले लेकर ही कांग्रेस की नेता बनी रह पाईं। हम उससे पहले 1969 का जिक्र नहीं कर रहे जहां इन्दिरा ने और कठिन फैसले लिए थे। इन्दिरा के टाइम में टिकट बेचने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था। जैसे आज मोदी के समय में कोई सोच भी नहीं सकता। इतनी सख्ती तो जरूरी है। यूपी और बिहार में टिकट बेचने की हर बार कहानी आती है। और वहां कांग्रेस की हार का यह एक प्रमुख कारण है। मगर आज तक वह दलाल पकड़े नहीं गए।

क्या राहुल और प्रियंका को मालूम है कि कांग्रेस मुख्यालय में उनके बारे में कैसी बातें की जाती हैं। बाहर सोशल मीडिया, गोदी मीडिया और भाजपा के आईटी सेल में जो बातें आती हैं उनका उद्गम कांग्रेस से ही होता है। राहुल और प्रियंका की यह क्या मजबूरी है जो वे उपहास करने वाले चरित्रहनन करने वाले कांग्रेस के स्टाफ से लेकर पदाधिकारियों तक को सह रहे हैं? यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष खरगे जी के साथ लगा दिए गए किस आदमी की निष्ठा कहां है यह किसी को क्या मालूम है? कुछ हजारों पर बिक जाने वाले लोग करोड़ों तो छोड़िए लाखों पर क्या-क्या कर सकते हैं इसकी क्या कांग्रेस नेतृत्व को खबर है?

आज राज्यसभा सदस्य धीरज साहू की चर्चा है। कांग्रेस कहती है हमसे कोई मतलब नहीं। अच्छा तो फिऱ इसे राज्यसभा सदस्य किसने बनाया था? राहुल सिर्फ यही पूछ लें कि 2008 में किसके कहने से इसे राज्यसभा दी गई थी? सीधा मैसेज चला जाएगा कि राहुल सब जानना चाहते हैं। सब लाइन में आ जाएंगे।

बाकी कांग्रेस स्वतंत्र है। जैसे 2012 के बाद से एडाकहिज्म ( तदर्थवाद) पर चल रही है। वैसे अपने खत्म होने तक चल सकती है। राजनीति में शून्य (वैक्यूम) तो होता नहीं। कोई दूसरी पार्टी जगह भर देगी। लेकिन अगर कांग्रेस नहीं सुधरी तो उसे 2024 लोकसभा में भी कोई उम्मीद नहीं रखना चाहिए। आधे अधूरे मन से राजनीति करने का अब समय नहीं है। यह सोनिया गांधी और वाजपेयी के दौर में चल गया। अब मोदी का समय है। कठिन समय। अव्यवस्थित, अनुशासनहीन, निजी स्वार्थों में घिरी फौज के सहारे राहुल मोदी के एकछत्र नेतृत्व से नहीं लड़ सकते।

सख्ती करना होगी। सख्त दिखना होगा। अंग्रेजी का मुहावरा है हेड्स विल रोल! सिर लुढ़कते हुए दिखना चाहिए। मतलब शाब्दिक नहीं। मतलब यह है कि गुनाहगार सज़ा पाते हुए दिखना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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