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नेता नहीं तो जिम्मा कौन स्वीकारेगा

बहुत तलाशने पर यह खबर मिली कि बालासोर हादसे के लिए सात लोगों को कसूरवार मानकर कार्रवाई शुरू हुई है जिसमें दो इंजीनियरों समेत एक टेक्नीशियन न्यायिक हिरासत में लिए गए हैं और चार अन्य छोटे लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू की गई है

नेता नहीं तो जिम्मा कौन स्वीकारेगा
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- अरविन्द मोहन

किस्सा सिर्फ एक लापरवाही या आपराधिक ढंग से जनता के पैसों की लूट और लोगों की जान से खिलवाड़ का नहीं है। अक्टूबर 2022 को गुजरात के मोरवी में नदी पर झूलते पुल वाले हादसे को याद करिये। वहां तो टिकट काटने वाले और पुल पर चढ़ने वालों का टिकट जांचने वाले कैजुअल सिपाही ही पकड़े गए।

बहुत तलाशने पर यह खबर मिली कि बालासोर हादसे के लिए सात लोगों को कसूरवार मानकर कार्रवाई शुरू हुई है जिसमें दो इंजीनियरों समेत एक टेक्नीशियन न्यायिक हिरासत में लिए गए हैं और चार अन्य छोटे लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू की गई है। संभवत: ये ठेके वाले छोटे कर्मचारी हैं और इनको भी निलंबित कर दिया गया है। इन बड़े तीन पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा शुरू हुआ है। यह तलाश भी पूरी नहीं हुई कि सभी मृतकों का अंतिम संस्कार हुआ या नहीं क्योंकि आखिरी जानकारी के अनुसार अभी भी कई लाशों की पहचान नहीं हो पाई है या वे क्षत-विक्षत हैं। दूसरी ओर अपने प्रियजनों को तलाशते फिरने वालों की खबर अभी तक आ रही है। कुल 293 लोगों की मौत की पुष्टि रेलवे भी कर रहा है और कई घायल अभी भी अस्पतालों में हैं। जो बचे हैं उनमें से कई जीवन भर काम करने लायक नहीं बचे हैं। यही संतोष रहेगा कि वे अपनों के साथ तो हैं। यह ब्यौरा इस हादसे के बाद की स्थिति की रिपोर्टिंग नहीं है। यह सिर्फ इतना बताने के लिए दिया गया है कि इतनी बड़ी दुर्घटना, इतनी लापरवाही, इसके पहले के रेल सुरक्षा के इतने दावे, इतने खर्चे और रेल के हर दिखाने वाले मामले में बड़े से बड़ा व्यक्ति के खुद हरी झंडी दिखाने के बावजूद यह सरकारी कार्रवाई की इतिश्री है। इतने से कोई अदालत इन तीन सामान्य और छोटे कर्मचारियों को दोषी मान ले तब भी उनके पास निचली से ऊपरी, ऊपरी से और ऊपरी और तारीख पर तारीख पाने का रास्ता बचा हुआ है। जाहिर है अभी उनका पक्ष दुनिया और अदालत के सामने आना बाकी है।

किस्सा सिर्फ एक लापरवाही या आपराधिक ढंग से जनता के पैसों की लूट और लोगों की जान से खिलवाड़ का नहीं है। अक्टूबर 2022 को गुजरात के मोरवी में नदी पर झूलते पुल वाले हादसे को याद करिये। वहां तो टिकट काटने वाले और पुल पर चढ़ने वालों का टिकट जांचने वाले कैजुअल सिपाही ही पकड़े गए। इलेक्ट्रानिक घड़ी बनाने वाली ऑरवा कंपनी के जिस पटेल साहब को पुल की मरम्मत और देखरेख का पंद्रह साल का ठेका बिना टेंडर, बिना अनिवार्य अनुभव के पकड़ा दिया गया था। वे तो दुर्घटना के काफी बाद तक गायब मिले और सरकार जांच-जांच का खेल करती रही। वह भी तब जबकि चुनाव सिर पर थे और विपक्ष इसे मुद्दा बना रहा था। खुद प्रधानमंत्री भागे-भागे आए जिसकी तैयारी के लिए स्थानीय प्रशासन ने रातोंरात अस्पताल की रंगाई-पुताई कराई। घड़ी बनाने के अनुभव वाले ने पुल की सिर्फ रंगाई -पुताई ही कराई थी लेकिन वह महसूल पूरा वसूल रहा था। उसे पहले भी इस तरह के लाभप्रद काम दिए गए थे और नगर प्रशासन वालों से उसके रिश्ते जगजाहिर थे। लेकिन वहां भी उस ठेकेदार भर का नाम आया और कार्रवाई का तो पता नहीं। लेकिन उसके राजनैतिक और प्रशासनिक आकाओं के बाल भी बांका नहीं हुए।

इससे भी कमाल का किस्सा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद का है। जनवरी 2021 की भीषण ठंड में नगर के शमशान में जब लोग भरे थे तो बारिश होने लगी। सभी वहां बने नए लंबे बरामदे के नीचे जमा हुए और श्रद्धांजलि देने लगे तभी बरामदा भरभरा कर गिर गया जिसमें पचासेक लोग दब गए। इनमें से 23 की मौत हो गई और बीस गंभीर रूप से घायल हुए। प्रशासन फिर 'सक्रिय' हुआ और उसने जूनियर इंजीनियर और सुपरवाइजर समेत कई छोटे कर्मचारियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या, लापरवाही और भ्रष्टाचार आदि के मुकदमे दर्ज कराए। ठेकेदार फरार रहा। जब वह पकड़ा गया तो उसने जो कुछ बताया वह काफी दिलचस्प था। उसने कहा कि मुझे तो अभी तक इस काम का भुगतान भी नहीं हुआ है पर मुझसे चालीस फीसदी 'कट' लिया जा चुका है और जिस प्रोजेक्ट का चालीस फीसदी पैसा मुझे पहले ही पहुंचाना पड़ा हो उसमें मटेरियल और दूसरे खर्चों में कटौती करनी ही थी। अब लोग उस निर्माण के नीचे आ गए तो मेरा क्या कसूर है। बाद में वह भी पकड़ा गया पर केस, सुनवाई, सजा का पता नहीं है। इस बीच उत्तर प्रदेश में बहुत घरों पर बुलडोजर चले हैं, बहुत एनकाउंटर हुए हैं, अपराधी थर-थर कांप रहे हैं, या कोर्ट कचहरी परिसर में सुनवाई के लिए आए अपराधियों को कुछ बिगड़े बच्चे मार दे रहे हैं पर इस अपराध वालों के कुछ होने की खबर नहीं है।

हमारे दौर के दो नायक, नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल भ्रष्टाचार के सवाल पर चुनाव जीते हैं-कभी वीपी सिंह ने यह चमत्कार किया था। बोफोर्स की दलाली वाले खातों का नंबर पास होने का नाटक किया, मोदी जी ने पंद्रह-पंद्रह लाख हर खाते में डालने लायक रकम बरामद कर लेने की घोषणा की। केजरीवाल लोकपाल लाकर सारा भ्रष्टाचार खत्म करने और अपना हर खर्च सार्वजनिक रखने की घोषणा के साथ आए। रेलवे या सड़क या रक्षा सौदों में क्या कुछ चल रहा है और पहले से क्या बदला है यह अनुमान सबको है।

रेल सुरक्षा उपकरण, पटरी के नया करने और सिंगनल प्रणाली के अत्याधुनिक करने के नाम पर हर साल बजट में जो प्रावधान हुए हैं और खर्च हो रहे हैं उनकी जवाबदेही तो किसी न किसी की है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव दुर्घटना के बाद बहुत चौकस लगे (दोषी और अपराधी पकड़ने में तो नहीं लगे हैं) पर उनकी असली जवाबदेही अस्पताल पहुंचे मरीजों से हालचाल पूछने की नहीं है। उनकी या उनके भी ऊपर बैठे लोगों की जवाबदेही जनता के पैसे के खर्चे पर नजर रखना, अच्छी योजनाएं लाना, उनकी निगरानी करना और जो लोग गड़बड़ करें उनको सजा देना है। उनका काम दुर्घटना का जिम्मा सिर्फ जूनियर इंजीनियर और कनिष्ठ या ठेके के कर्मचारियों के सिर मढ़ना नहीं है और भ्रष्टाचार से लड़ना सिर्फ भाषणों से नहीं होता। अपराध उन किसी चार आदमियों के घर पर बुलडोजर चलवा देने से नहीं खत्म होता जिनका राजनैतिक लाभ मिल जाए। रामराज्य मुख्यमंत्री के भगवा वस्त्र से नहीं आता और अगर ऐसे साफ अपराध और भ्रष्टाचार के मामलों में आपको जरूरी कार्रवाई करने में किसी किस्म की हिचक होती है तो बेहतर है आप माफ कर दें।


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