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बिहार में चुनाव आयोग कामयाब तो भाजपा कामयाब !

राहुल गांधी की यह बात लोगों के दिलों में घर कर गई। बीजेपी इस बात को समझ गई है। इसलिए उसने बिहार चुनाव के लिए नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है।

बिहार में चुनाव आयोग कामयाब तो भाजपा कामयाब !
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शकील अख्तर

राहुल गांधी की यह बात लोगों के दिलों में घर कर गई। बीजेपी इस बात को समझ गई है। इसलिए उसने बिहार चुनाव के लिए नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। हालांकि अलग-अलग तरीकों से वह हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली हर जगह यह काम कर चुकी थी कि वोटर लिस्ट में फर्जी वोट जोड़ना और अल्पसंख्यक वोट कटवाना। राहुल इस मुद्दे पर लगातार चुनाव आयोग को घेर रहे हैं।

कभी मतदाता जोड़ने का काम होता था। अब मतदाता काटने की मुहिम चलाई जा रही है। क्या बिहार में भाजपा को अपनी हार के संकेत मिल रहे हैं? 2014 के बाद से हर चुनाव भाजपा ने मोदी के नाम से जीता है। और मोदी के भी राष्ट्रवाद नाम के मुद्दे पर। मगर पहलगाम के बाद मोदी का राष्ट्रवाद का मुद्दा कमजोर हुआ। और फिर अचानक सीज फायर को स्वीकार कर लेने के बाद मोदी का कोर वोटर भी उनसे निराश हो गया।

हमेशा से यह अपने समर्थकों को यह सिखाते रहे थे कि कांग्रेस पाकिस्तान से पीओके नहीं ले पाई। समर्थक जो अब भक्त बन गए हैं वह यह मानकर चल रहे थे कि अब उनके पास मोदी जैसा मजबूत प्रधानमंत्री है वह पीओके वापस ले आएंगे। सेना ने वैसे हालात पैदा भी कर दिए थे। उसके सटीक हमलों से पाकिस्तान घबरा गया था। पेनिक रिएक्शन ( घबराहट भरी प्रतिक्रिया) में पुंछ राजौरी के नागरिक क्षेत्रों पर हमला करने लगा था। ऐसे में अचानक अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा स्टाप! शाम पांच बजे से बंद। और हमने कर दिया। पाकिस्तान जिसे सीज फायर की जरूरत थी उसने हमले जारी रखे। इसिलिए नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा कि नरेन्द्र सरेंडर!

राहुल गांधी की यह बात लोगों के दिलों में घर कर गई। बीजेपी इस बात को समझ गई है। इसलिए उसने बिहार चुनाव के लिए नई रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। हालांकि अलग-अलग तरीकों से वह हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली हर जगह यह काम कर चुकी थी कि वोटर लिस्ट में फर्जी वोट जोड़ना और अल्पसंख्यक वोट कटवाना। राहुल इस मुद्दे पर लगातार चुनाव आयोग को घेर रहे हैं। उनके किसी सवाल का जवाब चुनाव आयोग के पास नहीं है। उल्टा उसने चुनाव के सीसीटीवी फुटेज का रिकार्ड 45 दिन बाद नष्ट करने का फैसला और कर लिया है। राहुल ने इसे सबूत नष्ट करना बताया है। क्रिमिनल ला में सबूत नष्ट करना गंभीर अपराध है।

अब चुनाव आयोग ने एक नई चाल चली है। उसने बिहार चुनाव से तीन महीने पहले एक विशेष गहन पुनर्निरीक्षण अभियान शुरू किया है। सिर्फ एक महीने के अंदर 25 जून से 26 जुलाई तक वह 243 विधानसभा क्षेत्रों में लगभग 8 करोड़ मतदाताओं का वेरिफिकेशन करेगा। सोचिए 8 करोड़ वोटर का सत्यापन केवल एक महीने में! क्या संभव है? इसके लिए उसने क्या किया है? लोगों को मोबाइल पर मैसेज भेजे जा रहे हैं।

इसमें दो प्रमुख मुद्दे हैं। पहला क्या बिहार में 8 करोड़ मोबाइल हैं? क्या वोटर लिस्ट या वोटर आईडी में मोबाइल नंबर होता है? दूसरा मुद्दा। इन दिनों चल रहे फोन पर फ्राड के बाद सरकारी सरकारी एजेन्सियां और पुलिस साइबर क्राइम वाले सब कहते हैं कि फोन पर कोई जानकारी न दें। यहां फोन पर ही वेरिफिकेशन हो रहा है। क्या यह साइबर क्राइम को बढ़ावा नहीं देगा?

दरअसल भारत में लोकतंत्र आने के बाद यह सबसे बड़ा फ्राड होने जा रहा है। समय रहते अगर विपक्ष इसे रोकने में सफल नहीं हुआ तो एक अगस्त, जो चुनाव आयोग ने नई मतदाता सूची जारी होने की तारीख रखी है, को लाखों लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काट दिए जाएंगे। विपक्ष को चाहे सुप्रीम कोर्ट जाना पड़े या कोई और बड़ा कदम उठाना पड़े तत्काल करना चाहिए। अगर चुनाव आयोग कामयाब हो गया तो भाजपा भी कामयाब हो गई।

विपक्ष या जो वहां महागठबंधन कहा जा रहा है, के लिए सीट बंटवारे से बड़ा पहला काम यह होना चाहिए कि वोटर लिस्ट पुनर्निरीक्षण के नाम पर लोगों के नाम कटने को रोका जाए। चुनाव आयोग ने वहां नए मतदाता पहचान पत्र बनाने पर रोक लगा दी। साथ ही कहा है कि जिनका वैरिफिकेशन नहीं होगा उनके वोटर आई डी अवैध माने जाएंगे।

वैरिफिकेशन कितना मुश्किल है यह इससे समझें कि जिनका जन्म एक जुलाई 1987 से पहले हुआ है उन्हें डेट आफ बर्थ सर्टिफिकेट देना होगा। मतलब जिनकी उम्र 38 साल या उससे ऊपर है और जो कई चुनावों में वोट डाल चुके हैं अब इस बार अगर वोट डालना चाहतें हैं तो जन्म प्रमाण पत्र लाएं। गांवों में गरीब कमजोर वर्ग में कितने लोगो के पास होगा?

पंचायत में जब वोट डाले जाते हैं तो वहां प्रत्याशी एक-एक वोटर को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। वही सूची सबसे अथेंटिक होती है। लेकिन अब उसे भी नहीं माना जाएगा। और विपक्षी दलों में अगर कोई यह समझ रहा है कि यह केवल मुस्लिम के वोट काटने के लिए ही किया जा रहा है तो वह भारी गलतफहमी में है। जिन भी पार्टियों के वोटर दलित पिछड़े हैं उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान होगा। मुस्लिम के वोट तो जितने वह काट सकते थे पहले ही काट दिए हैं। अब बारी दूसरे उन वोटों की है जिनका आरक्षण, संविधान, अंबेडकर जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा से अभी-अभी मोहभंग हुआ है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले तक तो दलित पिछड़ा भाजपा को खूब वोट दे रहा था। मगर जब भाजपा ने संविधान बदलने की बात की तो दलित आदिवासी वोट थम गया। भाजपा का लोकसभा से बहुमत भी छिन गया।

बहरहाल चुनाव आयोग का वैरिफिकेशन के लिए दूसरी शर्त देखिए युवा वोटरों के लिए। एक जुलाई 1987 के बाद और 2 दिसबंर 2004 से पहले जन्मे हुए लोगों के लिए। इन्हें अपना नाम वोटर लिस्ट में बचाने के लिए माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र देना होंगे। मतलब हम जन्मे थे यह बताना ही पर्याप्त नहीं होगा मां-बाप भी जन्में थे यह सिद्ध करना होगा। माता-पिता की संतति हैं-नान बायलोजिकल नहीं! वह तो एक ही हैं वन एंड ओनली मोदी जी!

बिहार के चुनाव बता रहे हैं कि चुनाव आयोग भाजपा को जीताने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। विपक्ष के लिए इसे रोकना ही सबसे बड़ी प्राथमिकता होना चाहिए। सीटों का बंटवारा और दूसरे काम विपक्ष बाद में भी कर सकता है। सबसे पहले उसे इसे रोकने के लिए कई स्तरों पर रणनीति बनानी होगी। एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भी जाना चाहिए। यह नया रिविजन ऐसा है जिसमें कई-कई बार अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके लोगों से पूछा जा रहा है आप वोट डालने के अधिकारी हैं या नहीं? मतलब पहले जो वोट डाल चुके और इस आधार पर जो सरकारें बनीं वह नल एंड वाइड ( अमान्य और शून्य) हैं। कानून के शब्दों में वह चुनाव रद्द हैं। अप्रभावी। बिहार सरकार भी और केन्द्र सरकार भी!

चुनाव से ठीक पहले ऐसा रिविजन कभी नहीं हुआ। लोकतंत्र पर यह बहुत बड़ा खतरा है। राहुल गांधी के यह आरोप सही साबित हो रहे हैं कि भाजपा को जीताने के लिए चुनाव आयोग हर स्तर पर धांधली कर रहा है। महाराष्ट्र के वोटर बढ़ाने के सारे सबूत वे दे चुके हैं। इससे पहले कांग्रेस हरियाणा में हुई धांधलियों के भी। राहुल महाराष्ट्र के वोटर लिस्ट की डिजिटल कापी मांग रहे हैं। उन्होंने इन चुनावों को मैच फिक्सिंग कहा है। कहा है यह लोकतंत्र के लिए जहर के समान है। चुनाव आयोग से भरोसा खत्म हो रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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