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मां वैष्णों के दर्शन करने रवाना हुए सैंकड़ों भक्त

देश में अमन, तरक्की और शहर के विकास में तेजी, भाईचारे की भावना विकसित हो, ऐसी कामना लेकर करीब चार सौ देवी भक्त आज वैष्णोदेवी के लिए कटरा रवाना हुए

मां वैष्णों के दर्शन करने रवाना हुए सैंकड़ों भक्त
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इटारसी। देश में अमन, तरक्की और शहर के विकास में तेजी, भाईचारे की भावना विकसित हो, ऐसी कामना लेकर करीब चार सौ देवी भक्त आज वैष्णोदेवी के लिए कटरा रवाना हुए। इस वर्ष जयंती जनता एक्सप्रेस से कटरा तक जाने वाले भक्तों का स्वागत करने सैंकड़ों की संख्या में भक्तों के परिजन और शहर के आमजन और समिति के सदस्या मोजूद थे। जो लोग नहीं जा सके, वे अपने साथियों को विदा करने रेलवे स्टेशन पहुंचे। माता वैष्णोदेवी यात्रा समिति के संस्थापक सतीश बतरा ने बताया कि देश में हालात ठीक नहीं हैं, अमन-शांति हो, सब भाईचारे से रहें और विकास के काम हों, ऐसी कामना लेकर हम लोग जा रहे हैं। अच्छी बारिश होने की कामना भी मां से की जाएगी।

हर वर्ष की तरह, इस वर्ष भी माता वैष्णो के दर्शन करने करीब 4 सौ भक्त मातारानी के दर्शन करने गए हैं। आज सुबह जयंती जनता एक्सप्रेस पर शहर के अनेक गणमान्य नागरिकों ने उन्हें तिलक लगाकर यहां से विदा किया। मां वैष्णों के भक्तों का जत्था इस वर्ष 38 वे वर्ष में दर्शन को निकला है। रेलवे स्टेशन पर सुबह से ही माता के भक्त पहुंच गए थे। ढोल पर नाचते हुए अनेक भक्त दुर्गा चौक मंदिर से मां का दरबार लेकर पहुंचे। ट्रेन रवाना होने से पहले प्लेटफार्म पर भक्त खूब नाचे।

पांच से हुई थी शुरुआत : जत्थे के आयोजक मां के भक्त सतीश बतरा ने बताया कि पहला जत्था वे अपने केवल पांच मित्रों के साथ 38 वर्ष पूर्व 1979 में लेकर गए थे। तब सोचा भी नहीं था कि माता की सेवा का सफर ऐसा होगा। पहले वर्ष ही माता की कृपा से अद्भुत उपलब्धि प्राप्ति हुई और यह स$फर निरंतर हो गया। दूसरे वर्ष कुछ परिवार और जुड़े और माता के भक्तों की संख्या 35 हो गई। तीसरे वर्ष से भक्तों की संख्या एक सैंकड़ा पार हुई और इन 38 वर्षों में हर वर्ष चार से पांच सौ भक्त माता रानी के दर्शन करने जुलाई माह में जाते हैं। इस वर्ष करीब दो दर्जन नए सदस्य भी जुड़े हैं जिसमें कुछ अन्य धर्मों के लोग भी हैं, जो अपने कारोबार और अमन की दुआ के साथ जा रहे हैं।

ऐसे होगा सफर आसान : माता के भक्त, एक बोगी के एक कूपे में माता का दरबार सजाते हैं, रास्ते भर भजन कीर्तन चलता है, जिससे भक्ति के साथ सफर आसान होता जाता है। रास्ते में भक्तों को सुबह की आरती के बाद नाश्ता दिया जाता है और जब दोपहर में बीना से ट्रेन आगे बढ़ती है तो भोजन का वक्त हो जाता है। यहां भक्तों को समिति के सदस्य भोजन के रूप में प्रसादी वितरित करते हैं। शाम को मथुरा में नाश्ता या मौसम अनुरूप जलपान चलता है। रात को दिल्ली में भोजन के बाद सारी रात भक्त आराम करते हैं और फिर सुबह पंजाब में सुबह होने के बाद माता के दर्शन की उत्सुकता बढ़ती जाती है। ट्रेन जब जम्मू स्टेशन पहुंचती है तो फिर भक्त पूरे उत्साह में लबरेज हो जाते हैं।

शाम को निकलते हैं भक्त : पहले ट्रेन जम्मू तक जाती थी, अब कटरा तक ट्रेन चलने लगी है। माता के भक्त कटरा दोपहर में पहुंच जाते हैं और फिर शाम तक कुछ देर आराम के बाद शाम को पदयात्रा पर दर्शन करने निकलते हैं तो कुछ रातभर आराम के बाद दूसरे दिन सुबह से पहाड़ों की चढ़ाई प्रारंभ करते हैं। जो लोग पैदल चलने की बजाए हेलीकाफ्टर से दर्शन करने जाते हैं, वे भी दूसरे दिन सुबह से ही अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं। पैदल यात्री माता का दरबार अपने साथ लेकर चढ़ाई शुरु करते हैं और भजन-कीर्तन और ढोल की थाप पर नृत्य करते हुए माता के दर्शन को जाते हैं। भक्तों द्वारा यहां से माता का जो दरबार ले जाया जाता है, वह वहीं समर्पित करके आते हैं।

यहां भी जाते हैं भक्त : माता वैष्णो के दर्शन के बाद कई भक्त तो सीधे घर वापसी करते हैं और ज्यादातर के अन्य स्थानों के कार्यक्रम बन जाते हैं। ज्यादातर भक्तों की पसंद पंजाब और हिमाचल होती है। हिमाचल प्रदेश में मां के पांच मंदिर जिनमें ज्वाला जी, चिंतपूर्णि, नैनादेवी, बृजेश्वरी नागरकोट कांगड़ा और चामुंडा देवी के मंदिर में दर्शन करने भक्त जाते हैं। इसके साथ ही अमृतसर में स्वर्ण मंदिर, जलियांवाला बाग और भारत और पाकिस्तान की बार्डर बाघा पर शाम को होने वाली परेड देखने पहुंचते हैं। कुछ लोग हरिद्वार, मथुरा, वृंदावन होकर आते हैं तो बहुत कम लोग कश्मीर या हिमांचल में मनोरंजन के तौर पर जाते हैं। वापसी में लोग दिल्ली भी घूमने के लिए रुक जाते हैं।


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