संकरे रास्ते से गुजरते हैं सैकड़ों बच्चे
संसद भवन से महज चन्द किलोमीटर दूर सौ साल से ज्यादा पुराने स्कूल के आसपास विकास क्या हुआ बच्चों की जान पर बन आई

नई दिल्ली। संसद भवन से महज चन्द किलोमीटर दूर सौ साल से ज्यादा पुराने स्कूल के आसपास विकास क्या हुआ बच्चों की जान पर बन आई।
पुरानी दिल्ली स्टेशन के समीप 1912 से चलाए जा रहे धर्मार्थ संस्था द्वारा रजिस्टर्ड स्कूल के 300 से अधिक गरीब परिवार के बच्चे सरकार से मिलने वाली सहायता राशि से पढ़ रहे हैं लेकिन विकास ने उनके जीवन को ही दांव पर लगा दिया है।
सरकारी एजेंसियों की अनदेखी के चलते यह बच्चे भूकंप, आग जैसे किसी भी हादसे के शिकार हो सकते हैं और अपने जीवन के लिए ही अब यह बच्चे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से राहत की गुहार लगा रहे हैं।
चांदनी चौक के कूंचा नटवा का यह स्कूल हेरिटेज इमारत बन चुका है और इसे रामजस-3 के नाम से पहचाना जाता है। स्कूल से पढ़ कर निकले बच्चों में कई कामयाब नेता, उद्योगपतियों की लंबी चौड़ी सूची है। इन कामयाब शखिसयतों की जिंदगी तो बदल गई लेकिन स्कूल आज भी उसी सादगी से शिक्षण कार्य को बढ़ाते हुए भविष्य के कामयाब चेहरे बनाने में जुट हुआ है। यहां 20 प्रतिशत बच्चे तो ऐसे पढ़ रहे हैं जिनके सिर पर एक निर्धारित छत तक नही हैं और वे रेन बसेरों में गुजर कर रहे हैं। चूंकि यह इलाका व्यापार के लिए देश भर के व्यापारियों का केंद्र है तो यहां तिल रखने के लिए स्थान नही मिलता। ''यहां भू-माफिया चाहता है कि स्कूल को इस हालत में पहुंचा दिया जाए कि उस पर ताला जड़ जाए।
स्कूल का मुख्य रास्ता संकरा है और उस पर भी दुकानदारो का सामान बाहर रखा होता है।स्कूल प्रबंधक अरविंद अग्रवाल यह बताते हुए कहते हैं कि एक अन्य रास्ता जो कि पार्क से था और बच्चे इसका इस्तेमाल करीबन 40-50 साल से कर रहे थे इसे उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने बन्द कर दिया है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार हालात ये हैं कि कभी आसपास की किसी गोदाम या दुकान में आग की घटना हुई तो ये बच्चे लाक्षागृह में सैकड़ों की तादाद में जान गंवा सकते हैं। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त मधुप व्यास से जब इस बाबत बात की तो उन्होंने चांदनी चौक की उपायुक्त रुचिका कात्याल से रिपोर्ट तलब कर दी।
उपायुक्त रूचिका ने देशबन्धु से बातचीत में बताया कि हां यहां अवैध कब्जे हटाए हैं और जो गेट बंद किया गया है यदि स्कूल के पास दस्तावेज, नक्शे में वह है तो हम खोल सकते हैं। प्रबन्धक अरविंद अग्रवाल ने बताया कि जब निगम अस्तित्व में नहीं था तब से स्कूल है। ऐसे में नक्शे या दस्तावेज की बात अधिकारियों का टालने की युक्ति मात्र दिखती है।
इस तरह सरकारी एजेंसियों के नियमों के हवाले से स्कूल को बंद करवा कर इन बच्चों से स्कूल छिन जाएगा या भारी नुकसान के बाद प्रशासन सुध लेगा। स्कूल के बच्चे मानते हैं अब उन्हें प्रधानमंत्री से उम्मीद है इसीलिए उनसे पत्र द्वारा गुहार लगा रहे हैं। प्रबन्धक इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं मानव संसाधन मंत्री, दिल्ली के उपराज्यपाल से भी आग्रह किया है और यदि बच्चों की ओर हमारी प्रार्थना पर जल्द कार्रवाई करते पार्क से रास्ता नहीं खुला तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा लेकिन किसी हादसे का इंतजार नहीं कर सकते हैं।


