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बांध की तबाही में बहती इंसानियत

येबात बार-बार कही जाती है कि दुनिया में तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा

बांध की तबाही में बहती इंसानियत
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- सर्वमित्रा सुरजन

रूस और यूक्रेन में जंग छिड़े साल भर से अधिक का वक्त बीत चुका है। जिस तरह से घोषित-अघोषित तौर पर इसमें दुनिया के कई देश भी किसी न किसी तरह से जुड़ गए हैं, या इस युद्ध का जितना व्यापक असर दुनिया पर पड़ रहा है, उसके बाद यह विश्वयुद्ध जितना ही विनाशकारी नजर आ रहा है। फरवरी 2022 में जब युद्ध शुरु हुआ था, तब ऐसा लग रहा था कि तबाही और तनाव का यह माहौल अधिक वक्त तक नहीं रहेगा।

येबात बार-बार कही जाती है कि दुनिया में तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा। लेकिन ये किसने सोचा था कि युद्ध में पानी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाएगा। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में भारी तबाही का मंजर उस वक्त देखने मिला, जब यूक्रेन का नोवा कखोवका बांध एक विस्फोट की वजह से टूट गया। नीपर नदी पर बने इस बांध के टूटने की वजह से 4.8 अरब गैलन पानी चारों ओर फैल गया। बांध के करीब स्थित 80 गांव पूरी तरह से बह गए हैं। करीब 17,000 लोगों को निकालने की कोशिश की जा रही है। हजारों शरणार्थियों को ओडेसा और मायकोलाइव ले जाया जा रहा है। लोग अपने जरूरी सामान और पालतू पशुओं के साथ इधर-उधर भटकने पर मजबूर हो गए हैं। धमाके के कारण करीब 150 टन इंजन का तेल नदी में मिल गया है, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।

यह बांध एक पनबिजली संयंत्र का हिस्सा था और इस बांध से जैपसोरिजिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र को भी पानी मुहैया कराया जाता था। 30 मीटर लंबा और 3.2 किमी इलाके में फैला हुआ यह बांध सोवियत शासन के दौरान 1956 में बनाया गया था। नीपर नदी पर सोवियत काल में छह बांध बनाए गए थे, यह उनमें से एक था। यह इतना विशाल बांध था कि यूक्रेन के उत्तरी से दक्षिणी इलाके तक फैला था। बताया जा रहा है कि दुनिया की सबसे बड़ी झीलों में से एक अमेरिका की ग्रेट सॉल्ट लेक जितना पानी इस बांध में है। इसलिए आशंका जताई जा रही है कि बांध के पानी से बड़े पैमाने पर तबाही का ख़तरा है। 29 अगस्त 1941 को भी नीपर नदी पर बने बांध को तबाह कर दिया गया था ताकि नाजियों को रोका जा सके। बांध तबाह कर सोवियत संघ ने जर्मन सेना को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश भी की थी। कखोवका बांध को सोवियत संघ ने अपनी पहली पंच वर्षीय योजना के तहत बनाया था। इसे बनने में 8 साल लगे थे। इससे नीपर नदी के दोनों तरफ पानी की आपूर्ति की जाती थी। निश्चित ही बांध बनाने के पीछे नागरिकों को सुविधा पहुंचाने का मकसद था। लेकिन अब यही बांध घातक साबित हो रहा है।

यूक्रेन ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में बांध में विस्फोट के मामले को उठाया है। यूक्रेन के प्रतिनिधि ने रूस को 'आतंकी राज्य' बताते हुए कहा कि इस घटना के कारण बड़ी संख्या में लोगों को बाहर निकालना पड़ रहा है और पर्यावरण को भी बहुत नुकसान पहुंचा है। वहीं जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने कहा है कि बांध पर किया गया हमला, रूसी राष्ट्रपति पुतिन की हिंसा बढ़ाने और नागरिक सुविधाओं से जुड़े ढांचे को निशाना बनाने की रणनीति के मुताबिक है। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं के मद्देनजर यह और जरूरी हो जाता है कि जब तक जरूरी हो, जर्मनी यूक्रेन की मदद करे। नाटो के महासचिव येंस स्टॉल्टेनबर्ग ने इस घटना की निंदा करते हुए एक ट्वीट में लिखा, 'कखोवका बांध की तबाही से हजारों नागरिकों के लिए जोखिम पैदा हो गया है और गंभीर पर्यावरणीय नुकसान हुआ है. यह क्रूर कार्य है, जो एक बार फिर यूक्रेन में रूसी युद्ध की क्रूरता दिखलाती है।'

ये एकतरफा प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि रूस को गलत साबित करने की कितनी हड़बड़ी में पश्चिमी देश हैं। अभी यह साबित नहीं हुआ है कि बांध में विस्फोट रूस ने ही किया है। क्योंकि यूक्रेन रूस पर आरोप लगा रहा है, तो वहीं रूस का कहना है कि इसके पीछे यूक्रेन की सेना का हाथ है। नोवा कखोवका में रूस की ओर से नियुक्त मेयर व्लादीमीर लियोनतेव ने बताया कि बिजलीघर पर हुए कई हमलों से उसके वॉल्व क्षतिग्रस्त हुए और बांध का पानी बेकाबू होकर नीचे की ओर बहने लगा। लियोनतेव ने बांध पर हुए हमले को बेहद गंभीर आतंकवादी गतिविधि बताया है। रूस यूक्रेन पर इल्जाम लगा रहा है, लेकिन अमेरिका के पीछे चलने वाले देश पहले ही रूस को अपराधी करार दे रहे हैं।

पश्चिमी देशों की रूस को लेकर यह चिढ़ शीतयुद्ध के पहले से चली आ रही है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका एकमात्र शक्ति बनना चाहता था, लेकिन रूस के कारण उसके एकाधिपत्य को हमेशा चुनौती मिलती रही। सोवियत संघ जब तक अस्तित्व में रहा, तब तक अमेरिका के इरादे पूरे नहीं हो पाए। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद उसे फिर से अपना दबदबा कायम करने का मौका मिला। बोरिस येल्तसिन के दौर में रूस में आंतरिक उथल-पुथल मचती रही, कई बार आर्थिक मोर्चे पर संकट आए। मगर जब से देश की कमान व्लादिमीर पुतिन के हाथ में आई, रूस फिर से पहले वाली मजबूती दिखाने लगा। दुनिया में इस बीच आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण का जोर बढ़ गया, कई देशों के दरवाजे मुक्त व्यापार के लिए खुल गए।

अमेरिका के इशारों पर विश्वबैंक और आईएमएफ की थोपी शर्तों पर वैश्विक कारोबार चलने लगा। लेकिन रूस को इन शर्तों पर झुकाना आसान नहीं रहा। लिहाजा यूक्रेन जैसे देशों के कंधों पर बाजारवाद और साम्राज्यवाद की बंदूक चलाई जा रही है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरु होने की बड़ी वजह यही है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की कोशिश की जा रही है, जिससे पश्चिमी ताकतों को रूस की सीमा तक पहुंचने का मौका मिल जाए। अगर ऐसा होता है तो फिर यूक्रेन की प्राकृतिक संपदा, खासकर लीथियम के भंडार पर कब्जा करने में आसानी हो जाएगी। विद्युत वाहनों की बैटरी के लिए लीथियम उपयोगी है और व्यापारी शक्तियां दुनिया भर में ऐसे खजाने को कब्जे में लेना चाहती हैं।

रूस और यूक्रेन में जंग छिड़े साल भर से अधिक का वक्त बीत चुका है। जिस तरह से घोषित-अघोषित तौर पर इसमें दुनिया के कई देश भी किसी न किसी तरह से जुड़ गए हैं, या इस युद्ध का जितना व्यापक असर दुनिया पर पड़ रहा है, उसके बाद यह विश्वयुद्ध जितना ही विनाशकारी नजर आ रहा है। फरवरी 2022 में जब युद्ध शुरु हुआ था, तब ऐसा लग रहा था कि तबाही और तनाव का यह माहौल अधिक वक्त तक नहीं रहेगा। लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजरते गए, यह स्पष्ट होने लगा कि युद्ध को बढ़ाने की कोशिशें की जा रही हैं, क्योंकि युद्ध के चलने से ही कुछ लोगों की स्वार्थपूर्ति हो रही है। डेढ़ साल के इस अंतराल में न जाने कितनी बर्बादी हो चुकी है। जान-माल को हुए नुकसान की न कोई गिनती है, न कोई भरपाई। यूक्रेन और रूस, दोनों देशों में आम जनता एक बार फिर समूची पीढ़ी के अस्तित्व पर मंडराते खतरे को देख रही है। सोवियत रूस के विघटन से पहले रूस और यूक्रेन एक थे और दोनों ने हिटलर के छेड़े गए द्वितीय विश्वयुद्ध में एक पूरी पीढ़ी को बारूद के धमाकों में उड़ते देखा है। अब एक नहीं कई हिटलर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रक्तबीज की तरह उग आए हैं। जो लोकतंत्र, मानवाधिकार, विश्वशांति, धर्म, मानवता की रक्षा ऐसे कई कामों की आड़ में अपने नापाक इरादों को पूरा कर रहे हैं। नदी पर बने बांध को उड़ाना ऐसा ही एक महापाप है।

दूसरे विश्वयुद्ध में हिरोशिमा-नागासाकी पर अणुबम गिराने की घटना ने मानवता को भीतर तक झकझोर कर रख दिया था। दैत्य, दानव, असुर चाहे जो नाम दे दें, लेकिन ये किरदार पौराणिक या काल्पनिक कथाओं में नहीं असल जीवन में किस तरह के होते हैं, इसका उदाहरण हिरोशिमा-नागासाकी में देखने मिला था। तब दो शहर ही बर्बाद नहीं हुए थे, इंसानियत बर्बाद हो गई थी। अणुबम से मिले जख्मों को आज तक उन शहरों की नयी पीढ़ी सहन कर रही है। अब रूस और यूक्रेन में वही इतिहास दोहराया जा रहा है। अणुबम ने अगर एक झटके में वक्त के पहिए को रोक दिया था और चारों ओर मौत का सन्नाटा पसर गया था, तो अब बांध को तोड़कर पानी के उफान में दया, धर्म, नैतिकता, शांति जैसे तमाम मूल्यों को बहा दिया गया है। इस कृत्य के नुकसान तुरंत समझ नहीं आ रहे हैं, लेकिन इतना तय है कि यह भविष्य में बहुत घातक होने वाला है। ऐसा लग रहा है कि बेकाबू आग की तरह सब कुछ राख करके ही युद्ध खत्म होगा। जब कुछ नहीं बचेगा, तब गिद्धों का काम आसान हो जाएगा।


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