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पाप और पुण्य का फल मनुष्य को भोगना पड़ता है- श्री श्री रितेश्वर महाराज

जिला पंचायत गरियाबंद की अध्यक्ष डॉ श्वेता शर्मा द्वारा राजिम के मेला मैदान में आयोजित श्रीराम कथा मर्म के आखिरी दिवस श्रोताओं की भीड़ से भरे पंडाल में श्रीश्री रितेश्वर जी महाराज ने धर्म, अर्थ, काम और

पाप और पुण्य का फल मनुष्य को भोगना पड़ता है- श्री श्री रितेश्वर महाराज
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राजिम। जिला पंचायत गरियाबंद की अध्यक्ष डॉ श्वेता शर्मा द्वारा राजिम के मेला मैदान में आयोजित श्रीराम कथा मर्म के आखिरी दिवस श्रोताओं की भीड़ से भरे पंडाल में श्रीश्री रितेश्वर जी महाराज ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का वर्णन बहुत ही सुंदर अंदाज में करते हुए बताया कि चारों भाईयों में राम मोक्ष, लक्ष्मण काम, भरत धर्म और शत्रुघ्न अर्थ है। कहा कि धर्म ही इस जगत का पोषण करता है।

पर अर्थ के बगैर सब व्यर्थ है। धर्म के पीछे अर्थ को खड़े होना चाहिए। मगर अर्थ प्रथम है, धर्म पीछे है। यह रामराज्य के खिलाफ है। महाराज जी ने कहा कि रामकथा का यह व्यास पीठ 2 करोड़ का नहीं है और कथा भी मनोरंजन का विषय नहीं है। कहा कि राम कथा मार्मिक कथा हैं। मनुष्य जब दुखी होता है, तभी भगवान को याद करता है। बिना ज्ञान के भक्ति नहीं टिकती। कहा कि अयोध्या में जन्में चारों भाई के जन्म में केवल मिनट भर का अंतर था, लेकिन चारों में एक दूसरे के प्रति बेहद सम्मान और प्रेम इतना अगाध था कि जिसका वर्णन कर पाना संभव नहीं है। आज के परिवेश में लोग यह सब भूल गए हैं। संत्सग रूपी तालाब में डुबे रहो, तो राम अवश्य मिलेगा। भगवान का नाम जाने-अनजाने में लोगे, तब भी तरोगे। राम के नाम लेने से सारी इच्छाएं पूरी हो जाएगी।

उन्होंने कहा कि मर्यादा पुरूषोत्तम राम का नाम लेने के साथ ही उनके चरित्र को अपने जीवन में उतारो, तब बात बनेगी। कहा कि वाल्मीकी जैसे लोग सुधर जाते हैं। एक से बढ़कर एक पाप करने वाले ठाकुर जी के निकट आने से पार हो जाते हैं। पंडितजी ने यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने पुरूषार्थ से सफल नहीं हो सकता, जब तक कि रामकृपा न हो। श्री श्री रितेश्वर महाराज ने कहा कि पाप और पुण्य दोनों का फल मनुष्य को मिलता है। पाप करोगे तो उसे भोगना पड़ेगा और पुण्य करोगे तो उसका फल भी आपको अच्छा मिलेगा। कहा कि मनुष्य की सहज वृत्ति है पाप करना।

रह-रहकर उनका मन पाप की ओर जाता है। एक पाप का प्रायश्चित कर नहीं पाते हैं कि दूसरा पाप हो जाता है। लोग अहंकार पूर्वक यह बताते फिरते हैं कि हमने द्वादश ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर लिया। परंतु सुधरे नहीं, तो दर्शन का क्या मतलब? वास्तव में सुख, शांति और आनंद चाहिए तो बस इतना ही कह देना मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। रोचक अंदाज में उन्होंने यह बताया कि बड़े लोग सदैव कुलीन होते हैं। परंतु जो नए-नए बड़े बने होते हैं, वे कुछ ज्यादा ही दिखाते हैं। पंडितजी ने कहा कि बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ संस्कारित भी करें। शुद्ध जल पिलाएं, शुद्ध अन्न खिलाएं।

अंत में अपने चिर-परिचित कोटेशन के माध्यम से भरे पंडाल में कहा कि जरा मुस्कुराईए, मंथरा को दूर भगाईए और न भागे तो खुद ही भाग जाईए। रामकथा के समापन अवसर पर श्री श्री रितेश्वर महाराज जी ने संगीतमय हनुमान चालीसा के पाठ में उपस्थित श्रोताओं को खूब झुमाया। पंडाल में श्रोता ताली बजा-बजाकर झूमते रहे। इस दौरान होली गीत रंग-रसिया का भी आनंद लोगों ने फूल बरसाकर लिया।


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