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आईआईटी तक में अमेरिकी कंपनियों के ऑफर में भारी गिरावट

हर साल भारत के सर्वश्रेष्ठ तकनीकी संस्थानों में छात्रों को मिलने वाले करोड़ों के जॉब ऑफर खबरों में रहते थे. लेकिन मंदी और भारी छंटनी के मौजूदा दौर में बड़ी अमेरिकी कंपनियों ने जैसे आईआईटी से भी मुंह मोड़ लिया.

आईआईटी तक में अमेरिकी कंपनियों के ऑफर में भारी गिरावट
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आईआईटी में दाखिले को अमेजन, गूगल, मेटा, माइक्रोसाफ्ट और ट्विटर जैसी अमेरिकी कंपनियों में नौकरी पाकर सात समंदर पार जाने का सबसे आसान रास्ता माना जाता था. इस साल ऐसी ज्यादातर कंपनियों ने या तो प्लेसमेंट में हिस्सा ही नहीं लिया या फिर अंगुली पर गिने जाने लायक नौकरी के ऑफर दिए. दिसंबर से शुरू हुए प्लेसमेंट सीजन में तमाम आईआईटी में तस्वीर कमोबेश एक जैसी ही है.

वैश्विक मंदी और बड़े पैमाने पर जारी छंटनी के बीच भारतीय तकनीकी संस्थानों (आईआईटी) में वर्ष 2022-23 प्लेसमेंट सीजन में अमेरिका की दिग्गज तकनीकी कंपनियों की ओर से मिलने वाले नौकरी के प्रस्तावों में भारी गिरावट दर्ज की गई है. अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और मेटा जैसी कंपनियों ने इस बार आईआईटी से कैंपस प्लेसमेंट के जरिए छात्रों को या तो नौकरियां नहीं दी हैं या फिर खानापूर्ति के नाम पर बहुत कम छात्रों को ऑफर दिया है.

ज्यादातर बड़ी अमेरिकी कंपनियों ने हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर छंटनी का एलान किया है. गूगल ने हाल में करीब छह फीसदी यानी 12 हजार कर्मचारियों की छंटनी का फैसला किया है. इसी तरह माइक्रोसॉफ्ट ने 10 हजार कर्मचारी घटाने का फैसला किया है. अमेजन पहले ही 18 हजार नौकरियां घटाने का फैसला कर चुका है. यह किसी भी अमेरिकी तकनीकी कंपनी की ओर से सबसे बड़ी छंटनी है. पहले यह तादाद 10 हजार होने का अनुमान था. इससे एक ओर जहां तकनीकी विशेषज्ञों के सामने बेरोजगारी की समस्या पैदा हो गई हैं, वहीं आईआईटी में प्लेसमेंट पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा है.

भारतीय तकनीकी संस्थानों में अमूमन दो चरणों में प्लेसमेंट होता है. इसका पहला चरण दिसंबर में और दूसरा जनवरी और जून के बीच आयोजित किया जाता है. पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्थित आईआईटी में अब तक महज 45 अंतरराष्ट्रीय ऑफर मिले हैं. लेकिन इनमें से अमेरिकी कंपनियों की ओर से महज तीन ऑफर मिले हैं. जापान, ताइवान और सिंगापुर की कंपनियों ने क्रमशः 28, नौ और दो छात्रों को नौकरी दी है.

आईआईटी, मद्रास के सलाहकार (प्लेसमेंट) सथ्यन सुब्बैया कहते हैं, "इस साल अमेजन तो प्लेसमेंट के लिए आई ही नहीं. गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जरूर आए थे. लेकिन उनके ऑफर बीते साल के मुकाबले बहुत सीमित रहे.” आईआईटी, दिल्ली की तस्वीर भी एक जैसी ही है. संस्थान की करियर सेवा के प्रमुख ए. मदान के मुताबिक, अमेजन ने प्राथमिक टेस्ट के बाद प्लेसमेंट प्रक्रिया में हिस्सा ही नहीं लिया. गूगल और अमेजन ने बीते साल आईआईटी, रूड़की में नौकरियों और प्री-प्लेसमेंट (पीपीओ) के कई ऑफर दिए थे. लेकिन इस साल दोनों नदारद रहीं. आईआईटी, मंडी में बीते साल गूगल ने तीन छात्रों को नौकरी दी थी. लेकिन इस साल उसने खाता भी नहीं खोला. माइक्रोसाफ्ट ने जरूर 11 छात्रों को नौकरियां दी हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 के बाद अचानक काम बढ़ने पर ज्यादातर कंपनियों ने बड़े पैमाने पर भर्तियां की थी. लेकिन अब स्थिति सामान्य होने के बाद उनको खर्चों में कटौती के लिए मजबूरन छंटनी का रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है.

आईआईटी, गुवाहाटी के एक छात्र नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "वैश्विक मंदी और छंटनी का असर प्लेसमेंट पर साफ नजर आ रहा है. बीते साल कुछ छात्रों को विदेशी स्टार्टअप कंपनियों में नौकरियों के ऑफर मिले थे. लेकिन आर्थिक मंदी के चलते उनको अब तक ज्वाइन करने की तारीख नहीं बताई गई है. इसी तरह कुछ कंपनियों ने अपने ऑफर वापस ले लिए हैं. लेकिन कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने न तो ऑफर वापस लिया है और न ही ज्वाइनिंग की तारीख बताई है.”

आईआईटी, मंडी की प्लेसमेंट सेल के प्रोफेसर तुषार जैन कहते हैं, "मंदी के कारण इस साल स्टार्टअप कंपनियों की प्लेसमेंट में भागीदारी काफी कम रही है.”

कोलकाता में एक प्रबंधन संस्थान में प्रोफेसर डॉ. सुमन घोष बताते हैं, "महामारी के दौरान पूरी दुनिया में लोग घर से काम कर रहे थे. इससे आनलाइन गतिविधियां तेजी से बढ़ी. लेकिन अब हालात सामान्य होने के बाद ऑनलाइन गतिविधियों में तेजी से गिरावट आ रही है. नतीजतन आनलाइन प्लेटफार्म पर काम घटा है और नुकसान बढ़ा है. इस नुकसान की भरपाई के लिए ज्यादातर कंपनियां छंटनी का सहारा ले रही हैं.”

क्या आने वाले दिनों में हालात में सुधार की कोई संभावना है? इस सवाल पर डा. घोष कहते हैं, "फिलहाल यह कहना मुश्किल है. यह इस बात पर निर्भर है कि वैश्विक मंदी से दिग्गज कंपनियों का कामकाज कितना प्रभावित होता है और बड़े पैमाने पर छंटनी के बावजूद ऐसी कंपनियां मुनाफे की राह पर बढ़ती हैं या नहीं."

अमेरिकी कंपनियों के मुकाबले आईआईटी के छात्रों को एशियाई देशों के ऑफर ज्यादा मिले हैं. वहीं कुछ छात्रों को घरेलू कंपनियोंने भी करोड़ से ज्यादा का सालाना पैकेज दिया है. लेकिन हर हाल में उनका 'अमेरिकन-ड्रीम' तो धुंधलाने ही लगा है.


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