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पूर्वोत्तर में महिलाओं की तस्करी पर कैसे लगेगा अंकुश?

अरुणाचल प्रदेश में नाबालिग लड़कियों और बच्चों की तस्करी का दुखद इतिहास दशकों पुराना है. गरीबी और सामाजिक परिस्थितियों के जाल में फंसी लड़कियां इसका शिकार बनती रही हैं

पूर्वोत्तर में महिलाओं की तस्करी पर कैसे लगेगा अंकुश?
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अरुणाचल प्रदेश में नाबालिग लड़कियों और बच्चों की तस्करी का दुखद इतिहास दशकों पुराना है. गरीबी और सामाजिक परिस्थितियों के जाल में फंसी लड़कियां इसका शिकार बनती रही हैं.

पूर्वोत्तर में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे सामरिक रूप से अहम अरुणाचल प्रदेश में इस हफ्ते लड़कियों की तस्करी के आरोप में 21 लोगों को गिरफ्तारी ने इस प्रदेश की उस बेहद भयावह तस्वीर दिखाई है जो मीडिया की सुर्खियां में नहीं आती. ताजा गिरफ्तारियां पूर्वोत्तर में महिलाओं की तस्करी के धंधे की एक झलक भर है, जिसकी जड़ें काफी गहरी हैं. खासकर तब जब इस बात पर नजर डाली जाए कि मामले में गिरफ्तार लोगों में एक पुलिस उपाधीक्षक समेत पांच सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं.

2019 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने अरुणाचल प्रदेश के दो जिलों में परिवारों के बीच रिसर्च करके तस्करी के कारणों और परिस्थतियों को समझने की कोशिश की. अध्य्यन में प्राकृतिक और सामाजिक कारणों से गरीबी और मजबूरी का जीवन जी रहे परिवारों की लड़कियों और बच्चों की तस्करी की संभावनाएं प्रबल होने की बात कही गई. साथ ही यह भी रेखांकित किया गया कि गरीबी के चलते स्कूल छूटने, कम उम्र में शादी या शादी के बाद छोड़ दिए जाने जैसे कारणों के चलते लड़कियां तस्करी का सबसे ज्यादा शिकार बनती हैं जिन्हें यौन शोषण के लिए बेचा जाता है.

महिलाओं की ट्रैफिकिंग से जुड़ा कोई ठोस आंकड़ा ढूंढ पाना मुश्किल है. लेकिन गैर-सरकारी संगठनों की मानें तो हर साल तस्करी की जाने वाली महिलाओं की तादादहजारों में रहती है. 2019 की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अरुणाचल प्रदेश में तस्करी से जुड़े कोई स्थाई ठिकाने नहीं हैं बल्कि होटल, लॉज, ब्यूटी पार्लर यहां तक कि पार्कों से जुड़े कर्मचारी भी शामिल रहते हैं.

क्या है ताजा मामला

अरुणाचल प्रदेश पुलिस ने हाल में राजधानी ईटानगर में नाबालिग लड़कियों की तस्करी और उनको वेश्यावृत्ति में धकेलने से जुड़े एक अंतरराज्यीय गिरोह का भंडाफोड़ करते हुए पांच लड़कियों को बचाया. उन सबकी उम्र 10 से 15 साल के बीच है. पुलिस ने इन नाबालिग बच्चियों के यौन शोषण में शामिल पाया है उनमें सरकारी विभागों में तैनात पुलिस अधिकारी, डॉक्टर और इंजीनियर शामिल हैं.

ईटानगर के पुलिस अधीक्षक रोहित राजबीर सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया कि इन युवतियों को असम के धेमाजी जिले से यहां ले आया गया था. इसके पीछे यहां ब्यूटी पार्लर चलाने वाली दो बहनों का हाथ था.

इस घटना के सामने आने के बाद अरुणाचल प्रदेश महिला कल्याण सोसाइटी ने नाबालिग लड़कियों की तस्करी में शामिल होटलों और ब्यूटी पार्लर के लाइसेंस रद्द करने की मांग की है. सोसाइटी की अध्यक्ष कानी नादा मलिंग डीडब्ल्यू से कहती हैं, इस मामले में पुलिस व प्रशासन को त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके.

इससे पहले राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने इसी साल फरवरी में असम में मानव तस्करी के एक मामले में 24 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था. उनमें चार बांग्लादेश और एक म्यांमारी मूल का रोहिंग्या भी शामिल था. यह लोग मानव तस्करी के एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह से जुड़े थे.

तस्करी के आर्थिक-सामाजिक पहलू

दरअसल, प्राकृतिक संसाधनों से भरपूरहोने के बावजूद इलाके की आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों की वजह से मानव तस्करी का धंधा तेजी से फला-फूला है. इलाके से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा ने इस धंधे में शामिल तस्कर गिरोहों को और सहूलियत दी है. लंबे अरसे से पूर्वोत्तर की युवतियों को बेहतर रोजगार और जीवन का लालच देकर देश के दूसरे शहरों में यौन शोषण के लिए बेचा जाता रहा है. इनमें से कुछ विवाह के नाम पर बेच दी जाती हैं. खासकर चाय बागान और दूसरे इलाकों में रहने वाले आदिवासी तबके पर इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ी है.

बीते साल अप्रैल में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ)) ने रेलवे पुलिस और कुछ गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से वर्ष 2023-24 के दौरान साढ़े छह सौ से ज्यादा लोगों को मानव तस्करों के चंगुल से बचाया है. इनमें करीब 250 युवतियों और 69 महिलाओं के अलावा 400 से ज्यादा बच्चे भी शामिल थे. इन सबको ट्रेन के जरिए देश के दूसरे शहरों में ले जाया जा रहा था. इस दौरान एक दर्जन से ज्यादा तस्करों को भी गिरफ्तार किया गया. इससे उन मामलों का अनुमान लगाया जा सकता है जो सुरक्षा बलों की निगाह से बच गए.

मेघालय हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश याकूब मोहम्मद मीर ने वर्ष 2018 में मानव तस्करी उन्मूलनसे संबंधित एक कार्यक्रम यह कहते हुए गहरी चिंता जताई थी कि पूर्वोत्तर मानव तस्करी का गढ़ बन गया है. उनका कहना था कि बेरोजगारी, गरीबी और नौकरी की तलाश में देश के दूसरे हिस्सों में जाना ही इस समस्या की सबसे बड़ी वजहें हैं.

न्यायमूर्ति मीर का कथन एकदम सही था. पूर्वोत्तर का कोई भी राज्य इससे अछूता नहीं है. असम के अलावा मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और त्रिपुरा से भी अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती रही हैं. म्यांमार की सीमा से सटा मणिपुर का मोरे कस्बा महिलाओं की तस्करी के लए कुख्यात रहा है. मणिपुर और मिजोरम की युवतियों को इस रास्ते दक्षिण एशियाई देशों में भेजा जाता रहा है. म्यांमार में सैन्य तख्तापलट और कोविड के कारण लंबे अरसे से इस सीमा के बंद रहने के कारण इस रूट से महिलाओं की तस्करी कुछ कम हुई है. लेकिन जानकारों का कहना है कि मानव तस्करों ने कई दूसरे रास्ते भी तलाश लिए हैं. पूर्वोत्तर के कई राज्यों की सीमाएं तिब्बत, म्यांमार और बांग्लादेश से सटी हैं.

कैसे लगेगा अंकुश

आखिर हाल के वर्षों में इलाके में महिलाओं की तस्करी की समस्या इतनी गंभीर क्यों हुई है? सामाजिक संगठनों का कहना है कि कोविड के बाद आर्थिक मोर्चे पर पैदा होने वाली स्थिति ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है.

असम में धेमाजी स्थित मोरीढाल कॉलेज के सामाजिक विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. प्रदीप बोरा ने चार साल पहले असम के संदर्भ में इस समस्या पर एक अध्ययन किया था. डा. बोरा ने डीडब्ल्यू से कहा, "अंतरराष्ट्रीय सीमाओं ने इलाके में इस समस्या को और जटिल बना दिया है. जटिल भौगोलिक स्थिति के कारण अंतरराष्ट्रीय सीमा कई जगह खुली है और सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा की कमी है. तस्करों के चंगुल में फंस कर एक बार अवैध तरीके से सीमा पार करने वाली महिलाओं के बारे में कोई जानकारी हासिल करना या उनको बचाना लगभग असंभव है. गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा को ही इसकी मूल वजह कहा जा सकता है. इसकी सबसे ज्यादा शिकार चाय बागान इलाकों की आदिवासी युवतियां हो रही हैं."

आखिर इस पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है? डा. बोरा का कहना है कि सरकार को इस मुद्दे पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय लोगों के साथ मिल कर मानव तस्करों के खिलाफ अभियान छेड़ने के साथ ही उन इलाकों में जागरूकता अभियान भी चलाना होगा जो सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. उनके मुताबिक, इस समस्या पर अकेले एक राज्य की सरकार काबू नहीं पा सकती. इसके लिए इलाके के तमाम राज्यों को एकीकृत अभियान शुरू करना होगा. सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा बढ़ा कर इस समस्या पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है. इसके साथ ही ऐसे मामलों में गिरफ्तार लोगों को कड़ी से कड़ी सजा देनी होगी ताकि दूसरे इससे सबक ले सकें.

बहुआयामी कदमों की जरूरत

डा. बोरा कहते हैं, "इस समस्या से निपटने के लिए एक ठोस कार्य योजनाबनाना और उसे जमीनी स्तर पर लागू करना जरूरी है."

मेघालय के एक सामाजिक कार्यकर्ता डी. के. मावलांग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "इस समस्या की जड़ें सामाजिक और आर्थिक स्थिति में छिपी हैं. अगर अपने इलाके में ही रोजगार मिले तो कोई खतरा मोल लेकर देश के दूसरे राज्यो में जाने के लिए क्यों तैयार होगा. इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाको में साक्षरता को बढ़ावा देना और जागरूकता अभियान चलाना भी जरूरी है. इस दौरान लोगों को लापता महिलाओं के बारे में तत्काल थाने में सूचित करने को कहा जा सकता है. वैसी स्थिति में सैकड़ों महिलाओं को समय रहते बचाया जा सकता है."

असम के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नो नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू से कहा, "राज्य में मानव तस्करी की समस्या गंभीर है. इससे निपटने के लिए हमने राज्य के सभी जिलों में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स (एएचटीयू) का गठन किया है. फिलहाल ऐसी 35 यूनिट काम कर रही हैं. इनमें से दस का खर्च केंद्रीय गृह मंत्रालय उठा रहा है."

हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि इलाके के तमाम राज्यों के बीच इस मुद्दे पर आपसी तालमेल की जरूरत है. साथ ही सूचनाओं का आदान-प्रदान भी बढ़ाना होगा. इसमें असम की भूमिका अहम होगी. इसकी वजह यह है कि मानव तस्करी के शिकार ज्यादातर बच्चों और महिलाओं को असम की राजधानी गुवाहाटी के रास्ते ट्रेनों के जरिए ही देश के दूसरे राज्यों में भेजा जाता है.


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