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कब तक बढ़ती रहेगी रावण की ऊंचाई

जीएसटी के बाद सारे वस्तुओं के दाम बढ़ गए। बावजूद रावण पर अनूठे प्रयोग चल रहें हंै। बल्कि अब रावण की आंखे नाचेगी और मेघनाथ और कुंभकरण अंगार उगलेगा

कब तक बढ़ती रहेगी रावण की ऊंचाई
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जीएसटी के बाद सारे वस्तुओं के दाम बढ़ गए। बावजूद रावण पर अनूठे प्रयोग चल रहें हंै। बल्कि अब रावण की आंखे नाचेगी और मेघनाथ और कुंभकरण अंगार उगलेगा। तो क्या रावण को अब हम जिंदा कर रहें हैं? यह ताजा प्रयोग डब्ल्यूआरएस कॉलोनी रायपुर का है। जीएसटी लगने के बाद भी रावण की ऊंचाई कम नहीं हो रही है। कल दशहरा है और गांव से लेकर शहरों तक रावण की ऊंचाई बढ़ाने की होड़ लगी हुई है। कोई यह विचार करने तैयार नहीं कि आखिर रावण की ऊंचाई क्यों बढ़ाई जाए। इससे क्या होगा और क्या मिलेगा?

रावण का पुतला एक प्रतीकात्मक बोध है इसके पीछे लाखों रुपये बर्बाद करने से क्या फायदा। रायपुर के डब्ल्यूआरएस कॉलोनी में पिछले कई सालों से 100 फीट से ज्यादा ऊंचाई वाला रावण दहन किया जा रहा है। गांव कस्बों में भी 50-60 फीट ऊंचे रावण का चलन बढ़ गया है। आतिशबाजियां जो होती है वह तो होती ही है। बच्चों को इस आतिशबाजी से बहुत आनंद भी आता है। बच्चों की खुशी के लिए इसे अच्छा भी मान लें तो रावण के ऊंचे होने से क्या खुशी क्या गम।

तकलीफ तो इस बात की होती है कि अच्छे समाज के सुलझे समझदार लोगों की सभा समिति भी रावण की ऊंचाई बढ़ने से नहीं रोक पा रही हैं। रावण के साथ अब कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले का भी प्रचलन बढ़ गया है और इसकी भी ऊंचाई साल दर साल बढ़ती जा रही है। रावण की ऊंचाई बढ़ाकर समारोह को भव्य किया जा रहा है। राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्री ऐसे समारोहों के मुख्य अतिथि होते हैं।

रावण को ऊंचा करके आखिर फिजूल खर्ची बढ़ाया जा रहा है। सेठ, उद्योगपति, मंत्री, अफसर इसके लिए भारी राशि चंदा देते हैं। अभी चार दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें एक भाजपा मंत्री का भाई दशहरे उत्सव के लिए 25 लाख चंदा मांग रहा है. आवाज स्पष्ट है लेकिन इसे फर्जी कहकर झूठलाया जा सकता है। जो भी हो बिना चंदे के रावण की ऊंचाई नहीं बढ़ सकती।

जितना धन रावण को बढ़ाकर बर्बाद किया जा रहा है उतनी राशि से गरीबों का घर बसाया जा सकता है। एक अखबार में सचित्र समाचार पढ़ने को मिला कि कोलकाता में एक दुर्गा पंडाल 10 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया। रायपुर-दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर में भी 50 लाख एक करोड़ तक दुर्गा पंडाल बन रहें हैं। गणेश दुर्गा पंडालों की सजावट अब भक्ति से परे जाकर प्रतियोगिता में तब्दील हो गई है। गणेश दुर्गा मूर्तियां भी बड़ी-बड़ी बनने लगीहैं जिनके विसर्जन के लिए तकलीफ होती है। हम सोचते हैं यह फिजूलखर्ची है, दिखावा है इसे रोका जाए और इतने पैसों का सही इस्तेमाल किया जाए।

गरीबों के जीवन को बेहतर करने में ऐसे पैसे बहुत मददगार होंगे। सरकार गरीबों की योजना लांच करती है पर उस पैसे से गरीबों की गरीबी दूर नहीं होती अलबत्ता अमीरों के घर और भी पैसे से भरते हैं। मंत्री, अफसर, नौकरशाह सब जनता के पैसों का बेजा इस्तेमाल करके सुख भोग रहें हैं। गरीबों का पैसा अमीर खा रहें हैं और सरकार ऐसे समारोहों का मुख्य आतिथ्य स्वीकार करती है। अब यह तय होना चाहिए कि रावण की अधिकतम ऊंचाई कितनी हो।

उससे कहीं खतरे न हो। दो साल पहले रायपुर का डब्ल्यूआरएस का रावण ऊंचाई के बोझ से मेघनाथ सहित गिर गया। यह अच्छा हुआ कि किसी की जान नहीं गई। पैसा भी जाए और जान भी जाए ऐसे आयोजन से क्या फायदा। इससे बचा जा सकता है। लोग जैसे सफाई स्वच्छता के लिए शपथ ले रहें हैं ठीक वैसा ही यह शपथ लें कि रावण की ऊंचाई न बढ़ाएं बल्कि पैसे बचाएं और उससे गरीबों की सेवा करें। करोड़ों के तामझाम से हम गरीबों का हक छिन रहें हैं। ऐसी भक्ति से मुक्ति नहीं होगी।


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