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‘ग्रीन’ कंपनियां किस तरह से जलवायु को प्रभावित कर रही हैं

क व्यापक जांच ने ‘ग्रीन’ फॉरेस्ट्री लेबल की तमाम खामियों को उजागर किया है. विभिन्न देशों में चली इस पड़ताल से पता चला है कि पर्यावरण ऑडिटर्स ‘टिकाऊ’ कंपनियों द्वारा होने वाले नुकसान की अनदेखी करते हैं.

‘ग्रीन’ कंपनियां किस तरह से जलवायु को प्रभावित कर रही हैं
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इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) और डीडब्ल्यू समेत 39 मीडिया भागीदारों द्वारा सामूहिक रूप से की गई एक नई जांच ‘डिफोरेस्टशन इंक' से पता चलता है कि स्वदेशी अधिकारों के दुरुपयोग, अवैध लॉगिंग और वनों की निरंतर कटाई से जुड़े वन उत्पादों को मान्यता देने के लिए किस तरह से ग्रीन सर्टिफिकेट पाए लोगों और संस्थाओं का उपयोग किया जाता है.

वनों का विनाश जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कृषि या निर्माण कार्यों के लिए की जाने वाली वनों की कटाई 10 फीसद से ज्यादा वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है.

फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (FSC) जैसी प्रमाणन संस्थाओं ने मानकों और दिशानिर्देशों को निर्धारित किया है कि किस तरह से जिम्मेदारी के साथ वनों का प्रबंधन किया जाना चाहिए. इनका दावा है कि लकड़ी, कागज और ताड़ के तेल जैसे जिन उत्पादों को वे प्रमाणित करते हैं, उन्हें जिम्मेदारी से प्रबंधित वनों से प्राप्त किया जा सकता है.

उनका कहना है कि इसका उद्देश्य ‘पर्यावरण की दृष्टि से स्वस्थ, सामाजिक रूप से लाभकारी और दुनिया के जंगलों के आर्थिक रूप से समृद्ध प्रबंधन को बढ़ावा देना है.' लेकिन 'डिफोरेस्टशन इंक' ने अपनी पड़ताल में दिखाया है कि अक्सर, यह मिशन अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाता है.

स्थाई प्रमाणपत्र, अकल्पनीय क्षति

नौ महीने लंबी जांच के दौरान, पत्रकारों ने दुनिया भर में लकड़ी काटने वालों के पदचिन्हों का पता लगाया, सैकड़ों स्टेकहोल्डर्स यानी हितधारकों के साथ बात की और कई भाषाओं में सैकड़ों दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया.

उन्होंने पाया कि इंडोनेशिया में कम से कम 160 कंपनियों ने पिछले एक दशक में पर्यावरण नियमों की अवहेलना की है. इंडोनेशिया दुनिया के सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय लकड़ी निर्यातकों में से एक है. इन कंपनियों ने झूठे परमिट के तहत अपने व्यापार का संचालन और अवैध कटाई करने से लेकर कई दुर्लभ जंगली जानवरों को प्राकृतिक

आवास को भी नष्ट किया है. इन जंगली जानवरों में हाथियों से लेकर गंभीर रूप से विलुप्तप्राय श्रेणी में रखा गया सुमात्रन टाइगर भी शामिल है. इन सबके बावजूद, उन ऑडिटिंग फर्म्स ने नियमों की अवहेलना करने वाली इन कंपनियों की कोई शिकायत नहीं की जिन्हें स्थिरता प्रमाण पत्र की मांग करने वाले लॉगिंग व्यवसाय की जांच की जिम्मेदारी दी गई है. इसका नतीजा यह हुआ कि इन कंपनियों ने अपने ग्रीन लेबल बनाए हुए हैं जिससे उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा रहा है.

ब्राजील में भी इसी तरह की गड़बड़ी सामने आई थी. लकड़ी के उत्पाद बनाने वाली और अमेजन वर्षावनों के करीब पांच लाख हेक्टेअर वनों का प्रबंधन करने वाली कंपनी मिल मदिरास प्रेकोसियास ने अपनी वेबसाइट पर ‘भरी अंकों के साथ प्रमाणित करने' का दावा किया है. यह दावा इस कंपनी ने तब किया है जबकि 1998 से लेकर अब तक पर्यावरणीय उल्लंघन के लिए उस पर 36 बार जुर्माना लगाया जा चुका है.

‘डिफोरेस्टशन इंक' ने यह भी पाया कि ब्राजील में FSC प्रमाणित 54 कंपनियों पर पर्यावरण उल्लंघन के लिए लाखों डॉलर का जुर्माना लगाया गया है. जब ICIJ और उनके सहयोगियों ने टिप्पणी के लिए FSC से संपर्क किया तो प्रमाणपत्र देने वाले ने कहा कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि कंपनियों की जांच की जा रही है और उन्हें दंडित किया जा रहा है.

उन्होंने बताया कि इन कंपनियों को इस आधार पर प्रमाणपत्र दिया गया कि इनके मानक ‘वानिकी संचालन पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इसके अलावा कई अन्य पर्यावरणीय मुद्दे भी हो सकते हैं जो कवर नहीं किए गए हैं.'

प्रमाणपत्र पाने के लिए क्या करती हैं कंपनियां

हालांकि कंपनियों के लिए FSC या अन्य किसी प्रमाणपत्र की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है, लेकिन ऐसा करना बड़ी कंपनियों के लिए एक औद्योगिक मानक सा बन गया है जो निवेशकों, शेयरधारकों और ग्राहकों को दिखाना चाहती हैं कि उनका ब्रांड ‘पर्यावरण, समाज और प्रशासन' (ESG) के दिशानिर्देशों के लिए प्रतिबद्ध है.

हाल के वर्षों में ESG निवेश फंड तेजी से बढ़े हैं और साल 2025 तक इसके 53 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है. यही वजह है कि इस बाजार में आने वाली कंपनियां मान्यता प्राप्त प्रमाणन के लिए ऑडिटरों को वार्षिक शुल्क का भुगतान करके अपनी प्रतिबद्धता दिखाती हैं.

ज्यादातर यह काम उत्तरी गोलार्ध के देशों की कंपनियां करती हैं जहाँ पर्यावरण संबंधी नियम पहले से ही बहुत सख्त हैं और जो प्रमाणपत्रों के लिए महंगी कीमत चुकाते हैं. इंडोनेशिया या ब्राजील जैसे देशों में इन चीजों की समझ कम है, जहां वनों की कटाई अधिक व्यापक है और ऑडिटर्स का काम बहुत जोखिम भरा भी है.

साओ पाउलो स्थित फॉरेस्ट्री ऑडिटर मार्कोस प्लानेलो ने आईसीआईजे को बताया, "इसे खेल का मैदान मत समझिए, यहां जंगल में लोग बंदूकें लेकर घूमते हैं. हम तो केवल उन क्षेत्रों की खोज करते हैं जहां कोई कंपनी स्वेच्छा से प्रमाणित होना चाहती है.”

वो कहते हैं कि प्रमाणन अस्थिर वानिकी और मानवाधिकारों के हनन के जोखिम को कम करने का एक वैध तरीका जरूर है, लेकिन ‘यदि कोई कंपनी कुछ गलत करना चाहती है, तो वो ऐसा बड़ी आसानी से कर सकती है.'

जांच की प्रक्रिया कैसे काम करती है?

कॉर्पोरेट जिम्मेदारी और जलवायु जोखिम मामलों के विशेषज्ञ और 'क्लाइंट अर्थ' संस्था के एक वकील जोनाथन व्हाइट कहते हैं कि पर्यावरणीय ऑडिटिंग की अनियमित स्थिति जवाबदेही की समस्या पैदा करती है.

वो कहते हैं, "यदि इस प्रकार के सत्यापन निकायों को एक तरह की मजबूत भूमिका को पूरा करना है, तो उन्हें संदेह करना चाहिए और कंपनियों द्वारा किए गए दावों की ठीक से जांच करनी चाहिए. उन्हें कंपनियों द्वारा प्रदान की जाने वाली जानकारी की तह में जाना चाहिए.”

वार्षिक प्रशासन शुल्क के अलावा, FSC को कई जगहों से अनुदान भी मिलता है. FSC US को होम डिपो, किम्बर्ली-क्लार्क, प्रॉक्टर एंड गैंबल, इंटरनेशनल पेपर जैसी वैश्विक कंपनियों से चंदा मिला है और ये सभी कंपनियां अपने उत्पादों का विपणन FSC-प्रमाणित के रूप में करती हैं. FSC-प्रमाणित मुहरें हजारों अन्य उत्पादों जैसे नोटबुक, पेपर कप, फर्नीचर और यहां तक कि वॉशिंग पाउडर समेत कई प्रकार की रोजमर्रा की वस्तुओं पर भी देखी जा सकती हैं.

आलोचकों का क्या कहना है?

दुनिया भर के तमाम गैर सरकारी संगठन जो शुरू से ही फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल यानी FSC से जुड़े थे, अब उसका साथ छोड़ चुके हैं. इनमें ग्रीनपीस इंटरनेशनल भी शामिल है.

साइमन काउंसेल ने FSC को स्थापित करने में मदद की थी लेकिन इस संस्था को लेकर उनकी निराशा बढ़ती ही गई और फिर उन्होंने FSC-watch.com की स्थापना की जो एक ऐसा मंच है जहां वो और उनकी टीम प्रमाणन संस्थाओं की गतिविधियों से संबंधित खबरें प्रकाशित करते हैं.

काउंसेल कहते हैं, "सिस्टम में हितों को लेकर संरचनात्मक संघर्ष हैं. मुख्य बात यह है कि फॉरेस्ट्री उत्पादों के ग्राहक ऑडिटर्स को भुगतान करते हैं. FSC द्वारा इसका कोई निरीक्षण नहीं किया गया है, कभी नहीं किया गया है. FSC की इसमें निगरानी रखने वाली भूमिका ही नहीं है.”

काउंसेल कहते हैं कि चूंकि एक ऑडिटर एक ही ग्राहक का कई साल तक निरीक्षण कर सकता है, इसलिए पिछले तीन दशक से (जब से FSC की स्थापना हुई है) ऑडिटर्स और ग्राहकों के बीच ‘अच्छे' रिश्ते बने हुए हैं.

वो कहते हैं, "ऑडिटर्स खानापूर्ति के लिए साइटों पर जाते हैं और हर बार उसी तरह से दस्तावेजों को भरकर चले आते हैं. कंपनियों को प्रमाणित करने और समस्याओं को खोजने में उनकी रुचि ही नहीं रहती है.”

दुनिया भर में जैसे-जैसे ‘ग्रीन' लेबल खरीदने वाले बड़े ब्रांडों की संख्या बढ़ती गई, दुनिया भर में एक दर्जन से ज्यादा ऐसे प्रमाणन निकाय और कई संबद्ध कार्यक्रम दुनिया भर में अपने खुद के लेबल और स्थिरता मानदंड के साथ उभर आए.

लेकिन FSC और प्रोग्राम फॉर द एंडोर्समेंट ऑफ फॉरेस्ट सर्टिफिकेशन (PEFC) जैसी संस्थाएं अभी भी प्रमाणन के लिए प्रभावशाली बने हुए हैं. दोनों संगठनों का कहना है कि उन्होंने 474 मिलियन हेक्टेयर से ज्यादा वनों को प्रमाणित किया है, जो कि भारत के आकार से भी ज्यादा है.

आखिर इसका निदान क्या है?

काउंसेल कहते हैं कि ‘प्रमाणन मानकों में नीचे गिरने की जैसे होड़ सी लगी हो' और ‘प्रमाणक जितने कमजोर होंगे, ग्राहक के लिए उतना ही बेहतर होगा.' हालांकि, ICIJ को दिए एक जवाब में PEFC ने बताया कि उसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्यों और जैव विविधता समझौते की दिशा में एक प्रगति संकेतक के रूप में मान्यता दी गई थी.

और FSC का कहना था कि वो एक स्वैच्छिक संस्था है और ‘यह दावा नहीं करता कि यह केवल वनों की कटाई जैसी बहुस्तरीय समस्याओं को हल कर सकता है.'

लेकिन काउंसेल FSC सचिवालय द्वारा प्रमाणन प्राप्त करने वाली कंपनियों को ऑडिटर आवंटित करने का जिक्र करते हैं. वो कहते हैं, "वे सबसे मजबूत ऑडिट के लिए प्रतिस्पर्धा को संरचनात्मक रूप से प्रोत्साहित कर सकते हैं.”

जर्मनी के सार्वजनिक प्रसारक WDR के साथ हाल ही में एक साक्षात्कार में, FSC के महानिदेशक किम कार्स्टेंसन किम कार्रस्टेन्सेन ने कहा था, "एक आदर्श दुनिया में, सरकारों को वन सुरक्षा के मामले में एक बड़ी भूमिका को निभाना होगा.”

यूरोपीय आयोग अब वनों की कटाई यानी ग्रीनवॉशिंग पर ध्यान देने के लिए एक कानून पर विचार कर रहा है. एक लीक हुए दस्तावेज़ में स्वतंत्र सत्यापन की एक प्रणाली और असमर्थित पर्यावरणीय दावे करने वाली कंपनियों के लिए दंड का प्रस्ताव है. इस महीने के अंत में इस संबंध में पहला आधिकारिक मसौदा आने की उम्मीद है.

हालांकि यह अभी भी अनिश्चित है कि इसके बाद क्या ऑडिटर्स की अनुचित प्रथाओं को ग्रीनवॉशिंग माना जाएगा और क्या उन्हें इसके लिए दंड दिया जाएगा.


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