Top
Begin typing your search above and press return to search.

भारत में विकलांग लोगों को जीवनसाथी ढूंढ़ने में कैसे मदद कर रहे हैं डेटिंग ऐप्स

भारत में विकलांग लोगों को अक्सर भेदभाव और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, डेटिंग साइट्स भी इसका अपवाद नहीं हैं. लेकिन एक डेटिंग ऐप ने ऐसे ही लोगों पर ध्यान केंद्रित किया है और यह गेमचेंजर साबित हो सकता है.

भारत में विकलांग लोगों को जीवनसाथी ढूंढ़ने में कैसे मदद कर रहे हैं डेटिंग ऐप्स
X

श्वेता महावर करीब 25 साल की रही होंगी जब उनके मां-बाप ने उनकी प्रोफाइल एक मैट्रीमोनियल वेबसाइट पर इस उम्मीद में डाली की श्वेता को कोई उपयुक्त जीवनसाथी मिल जाएगा. कई साल बीत गए लेकिन उन्हें कोई अच्छा साथी नहीं मिला.

यूपी के सीतापुर जिले की रहने वाली श्वेता बचपन में ही पोलियो का शिकार हो गई थीं और तब से व्हील चेयर पर हैं.

डीडब्ल्यू से बातचीत में 43 वर्षीया श्वेता कहती हैं, "मैं अपने घर में ही पढ़-लिखकर बड़ी हुई हूं और बड़े होने के दौरान बाहर की दुनिया से मेरा बहुत कम वास्ता रहा. तमाम दिक्कतों के बावजूद, मैं हमेशा इस बात को लेकर आशान्वित रही कि मुझे कोई अच्छा जीवनसाथी मिल ही जाएगा, लेकिन जब मैं तीस साल से ज्यादा की हो गई तो मैं वास्तव में यह सोचकर हताश हो गई कि शायद मेरी शादी अब कभी नहीं हो पाएगी, मैं अपने घर से बाहर नहीं जा पाऊंगी और अपनी शर्तों पर जीवन जीने के अनुभव नहीं प्राप्त कर सकूंगी.”

डेटिंग में विकलांग लोगों की चुनौतियां

2011 की जनगणना से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि भारत में उस वक्त तक करीब दो करोड़ 68 लाख विकलांग लोग थे. इनमें से 40 फीसद लोगों की शादी नहीं हुई थी. हालांकि डेटिंग करना और रोमांटिक रिश्तों को निभाना किसी के लिए भी मुश्किल हो सकता है, विकलांग लोगों के लिए तो यह सब इसलिए भी बहुत कठिन हो जाता है कि उन्हें बहिष्कार, भेदभाव और पूर्वाग्रह का सामना भी करना पड़ता है.

दिल्ली में विकलांगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता निपुण मल्होत्रा कहते हैं, "डेटिंग के समय विकलांगों को जिस सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है वो ये कि अक्सर लोग यह समझ बैठते हैं कि ये लोग अलैंगिक मनुष्य हैं.”

श्वेता मैट्रीमोनियल साइट्स के अपने दुर्भाग्यपूर्ण अनुभवों को याद करती हैं जहां उनसे बहुत ज्यादा दहेज की मांग की गई.

वो कहती हैं, "मेरे मां-बाप के पास इतनी जमा-पूंजी नहीं थी कि इतना दहेज दे पाते क्योंकि उन्होंने अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा मेरे इलाज पर खर्च कर दिया था. इसलिए लोगों की दहेज की मांगों को पूरा करने का सवाल ही नहीं था.”

अभिषेक शुक्ला को ऑस्टियोजेनेसिस यानी ब्रिटल बोन डिजीज हो गया था. मैट्रीमोनियल साइट्स के बुरे अनुभवों से वो भी गुजर चुके हैं.

अभिषेक शुक्ल की हालत ज्यादा खराब होने के बाद उन्हें एक भारतीय मल्टीनेशनल कंपनी की अच्छी नौकरी छोड़नी पड़ी थी. वो कहते हैं, "मैट्रीमोनियल साइट्स विकलांग लोगों के किसी काम की नहीं हैं. वे अपनी सेवा देने के एवज में पैसे तो पूरा लेती हैं लेकिन हमारे लिए उनके पास बहुत कम विकल्प हैं.”

डीडब्ल्यू से बातचीत में 35 वर्षीय अभिषेक कहते हैं कि वो अभी भी एक अच्छे जीवनसाथी की तलाश में हैं, "जब मैं कॉलेज से ग्रेजुएशन करके निकला और नौकरी पा गया तो उस वक्त मेरे पास कई प्रस्ताव थे. लेकिन बाद में जब लोगों को मेरे बारे में पता चला तो वो मुझसे दूर होने लगे.”

इनक्लोव ऐप ने डेटिंग को कैसे बदल दिया

साल 2017 में महावर इनक्लोव ऐप के संपर्क में आईं जो कि विकलांग लोगों के लिए एक डेटिंग ऐप है. और इस तरह से उनके जीवन में एक उम्मीद जगी.

अपना पूरा जीवन मां-बाप की देख-रेख में बिताने के बाद, जिज्ञासा ने महावर को स्मार्टफोन खरीदने के लिए प्रेरित किया और 38 साल की उम्र में उन्होंने इनक्लोव ऐप को अपने मोबाइल में इंस्टाल किया. ऐप का उपयोग शुरू करने के तुरंत बाद, वो अपने जीवनसाथी से मिलीं और साल 2018 में दोनों ने शादी कर ली.

वो कहती हैं, "मैं ऐसे लोगों से मिली जो सिर्फ मेरे साथ समय काटना चाहते थे, ऐसे लोगों से मिली जो अपनी उम्मीदों को लेकर बहुत स्पष्ट थे और मेरी उन लोगों से अभी भी दोस्ती है और ऐप के माध्यम से मैं अपने पति से भी मिली.”

महावर अपने पति आलोक कुमार के साथ सीतापुर में रहती हैं जहां उनके पति एक ट्यूशन सेंटर चलाते हैं.

हालांकि इन्क्लोव ऐप ने साल 2019 में अपना काम बंद कर दिया, लेकिन अपने चरम पर इस ऐप पर करीब पचास हजार विकलांग लोगों उपयोगकर्ता के तौर पर रजिस्ट्रेशन करा रखा था. डीडब्ल्यू से बातचीत में इन्क्लोव ऐप की फाउंडर कल्याणी खोना कहती हैं, "इन्क्लोव ऐप के माध्यम से मिलने वाले कई जोड़ों के तो अब बच्चे भी हो चुके हैं.”

हालांकि विकलांग लोगों के पास अभी भी बम्बल और टिंडर जैसे कई डेटिंग ऐप्स के विकल्प हैं लेकिन खोना कहती हैं कि उनके अनुभव बहुत अलग थे. वो कहती हैं, "इन्क्लोव ऐप का इस्तेमाल करने वालों ने जो सबसे महत्वपूर्ण फर्क अनुभव किया वो था हमारा व्यवहार. उपयोगकर्ताओं ने विकलांग लोगों के साथ सहानुभूति जताई.”

ऐप लॉन्च करने के अलावा, खोना विकलांग लोगों के लिए सामुदायिक मिलन कार्यक्रमों का भी आयोजन करती हैं. खोना कहती हैं कि विकलांग लोगों के लिए डेटिंग समाज में अभी भी एक कलंक जैसा है और ऐप के जरिए सिर्फ जीवनसाथी की तलाश वाली समस्या हल की जा सकती है, लेकिन इसे जीवनसाथी में बदलने की प्रक्रिया अभी भी बहुत जटिल है.

डेटिंग ऐप्स को ‘और समावेशी' होना चाहिए

हालांकि ऐप्स ने विकलांग लोगों के लिए डेट करना और जीवनसाथी को ऑनलाइन ढूंढना आसान बना दिया है, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता मल्होत्रा कहते हैं कि मुख्यधारा के ऐप्स को भी अधिक समावेशी होना चाहिए.

वो कहते हैं, "सेक्सुअल ओरिएंटेशन, शौक और अभिरुचिय संबंधी सवालों की तरह, डेटिंग ऐप्स में भी ऐसे प्रश्न शामिल होने चाहिए कि क्या कोई व्यक्ति विकलांग लोगों के साथ डेटिंग करने के लिए तैयार है या नहीं? इससे और अधिक ईमानदारी के साथ बातचीत हो सकती है.”

उन्होंने इस बात का भी उल्लेख करते हैं कि डेटिंग ऐप्स कैसे विकलांग लोगों को बाहर कर देते हैं. वो कहते हैं, "कई ऐप्स चाहते हैं कि उपयोगकर्ता अपने हाथों के मेल की तस्वीर डाले जो मेरे जैसे चल-फिर न पाने वाले विकलांग व्यक्ति के लिए संभव नहीं है.”

सितंबर 2022 में मीनल सेठी ने भारत में अपना ऐप मैचेबल लॉन्च किया. अपने शुरुआती चरण में होने और सीमित उपयोगकर्ताओं के बावजूद, ऐप का उद्देश्य विकलांग लोगों को जोड़ने और ऑनलाइन तरीके से सामाजिक होने का मौका दे रहा है.

सेठी कहती हैं कि वह ऐप लॉन्च के अगले चरण में विकलांग लोगों के साथ रहने वाले उपयोगकर्ताओं को शामिल करने की भी सुविधा देना चाहती हैं. वो कहती हैं, "ऐप के माध्यम से, हम वास्तविक संपर्क को सक्षम बनाना चाहते हैं और विकलांग लोगों के लिए उन लोगों को ढूंढना आसान बनाना चाहते हैं जो उन्हें समझते हैं.”


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it