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विमान यात्राओं को हम कैसे पर्यावरण अनुकूल बना सकते हैं

जैव ईंधन, वैकल्पिक हवाई मार्ग और ग्रीन एयक्राफ्ट टेक्नोलॉजी के जरिए हम अपनी हवाई यात्राओं को पर्यावरण के अनुकूल बना सकते हैं. पर्यावरण-अनुकूल इन वैकल्पिक रास्तों को तैयार करने के हम कितने करीब हैं?

विमान यात्राओं को हम कैसे पर्यावरण अनुकूल बना सकते हैं
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कोविड-19 के संक्रमण से पहले, 2019 तक दुनिया भर में विमानन क्षेत्र तेजी से प्रगति कर रहा था. इसका असर यह हुआ कि तब तक वायुमंडल में कुल ग्रीनहाउस गैसों में 6 फीसदी का योगदान इसी क्षेत्र का रहा. एक साल बाद, जब कोविड की चपेट में आने के बाद दुनिया भर में उड़ानें रद्द होने लगीं तो यह आंकड़ा 43 फीसदी तक कम हो गया और अभी भी यह 37 फीसद तक कम है.

हालांकि इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के मुताबिक अब एअर ट्रैफिक लगातार बढ़ रहा है. इसके साथ ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ रहा है. इसे देखते हुए यूरोपीय संसद ने घोषणा की है कि 2025 से हवाई यात्राओं पर पर्यावरणीय लेबल लगाने का प्रस्ताव लाया जाएगा. यह सिस्टम हवाई यात्रा करने वालों को उनकी उड़ानों के क्लाइमेट फुटप्रिंट की जानकारी देगा.

हवाई यात्रा के दौरान ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार गैसों का एक तिहाई हिस्सा कार्बन डाइऑक्साइड का होता है. दो तिहाई हिस्से के लिए दूसरे कारक जिम्मेदार होते हैं, खासकर कंडेंसेशन ट्रेल्स या कॉन्ट्रेल्स जो विमान के उड़ने के बाद गैस के गुबार के रूप में पीछे रह जाते हैं.

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वैकल्पिक हवाई रास्ते कॉन्ट्रेल्स को रोक सकते हैं

कॉन्ट्रेल्स तब बनते हैं जब जेट विमानों के ईंधन जलते हैं. इनमें केरोसीन तेल मिला होता है. करीब 8-12 किमी की ऊंचाई पर कम तापमान की वजह से जेट विमान द्वारा छोड़ी गई कालिख के चारों ओर जलवाष्प संघनित हो जाते हैं. बर्फ के ये क्रिस्टल्स हवा में घंटों बने रह सकते हैं.

ये कॉन्ट्रेल्स भी ग्रीनहाउस गैसों की तरह वायुमंडल में गर्मी को रोकते हैं और इससे जलवायु पर उड़ान का दुष्प्रभाव बढ़ता है. हाल के अध्ययन बताते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग के संदर्भ में देखें तो ये कॉन्ट्रेल्स कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की तुलना में 1.7 गुना ज्यादा विनाशकारी होते हैं.

इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि कॉन्ट्रेल्स को नजरअंदाज करना अपेक्षाकृत आसान होता है. उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों के जरिए फ्लाइट प्लानर्स उन रास्तों को छोड़ सकते हैं जहां मौसम कॉन्ट्रेल्स के निर्माण में सहायक हो. पायलट भी अपने जेट विमान को 500-1000 मीटर नीचे उड़ा सकते हैं जहां तापमान ज्यादा कम ना हो.

जर्मन एयरोस्पेस सेंटर के डिविजनल डायरेक्टर मार्कस फिशर कहते हैं, "यह सब करने में कोई बहुत मेहनत नहीं लगती. हां, इसमें सिर्फ 1-5 फीसद ज्यादा ईंधन लग सकता है और उड़ान का समय थोड़ा बढ़ सकता है. लेकिन इसका असर यह होगा कि कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार अन्य चीजों में 30-80 फीसदी की कमी आ सकती है.”

तकनीक के कारण ऐसे बदलने वाली हैं यात्राएं

यूरोपीय संघ का मकसद है कि इन गैर-कॉर्बन डाइऑक्साइड प्रभावों को भी भविष्य में होने वाले यूरोपियन एमिशंस ट्रेडिंग एग्रीमेंट्स में शामिल किया जाए. यूरोपीय संसद के एक शुरुआती समझौते के अनुसार, 2025 के बाद से हवाई कंपनियों को इन प्रदूषकों के बारे में जानकारी देनी होगी

ई-केरोसीन के साथ ग्रीन एनर्जी का उत्पादन

पेट्रोलियम से मिलने वाले केरोसीन को जलाने पर बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, ज्यादा ऊंचाई पर इसके साथ ओजोन जैसी दूसरी ग्रीन हाउस गैसें भी निकलती हैं. कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त विकल्प है- ई-केरोसीन

ई-केरोसीन का उत्पादन, ग्रीन इलेक्ट्रिसिटी, पानी और हवा से मिली कार्बन डाइऑक्साइड से क्लाइमेट-न्यूट्रल तरीके से किया जा सकता है. सबसे पहले, इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए हाइड्रोजन पैदा की जाती है और उसके बाद सिंथेटिक ई-केरोसीन बनाने के लिए उसमें कार्बन डाइऑक्साइड मिलाई जाती है.

हालांकि समस्या यह है कि इसे कैसे सस्ता रखा जाए. इसके लिए ई-केरोसीन को सौर और पवन ऊर्जा की अधिकता में बनाने की जरूरत है जो अब तक इस नवीकरणीय ऊर्जा के लिए पर्याप्त नहीं है. ग्रीन हाइड्रोजन बनाने वाले, हवा से सीधे कार्बन डाइ ऑक्साइड सोखने वाले और सिंथेटिक ईंधन बनाने वाले नये संयंत्रों भी बनाने की जरूरत है.

क्या विमानों को खाद्य तेल से भी उड़ाया जा सकता है?

विमानों के लिए एक और विकल्प है बायोकेरोसीन का, जिसे रेपसीड, जेट्रोफा के बीजों से या फिर पुराने खाद्य तेलों से बनाया जा सकता है. इसके लिए छोटे पैमाने पर उत्पादन यूनिट्स पहले से ही हैं, लेकिन ज्यादा मांग की पूर्ति के लिए इसके विस्तार की जरूरत पड़ेगी. बायोकेरोसीन के ज्यादा उत्पादन के लिए कृषि योग्य भूमि की भी काफी जरूरत होगी, जिसकी बहुत कमी है. दूसरे, ऐसी जमीन खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए ही पर्याप्त नहीं हैं.

यूरोपीय आयोग के एक प्रस्ताव के तहत, 2025 तक बायोफ्यूल्स और ई-केरोसीन को परंपरागत फॉसिल केरोसीन तेल के साथ मिलाया जा सकता है. इस मिश्रण में बायोफ्यूल्स की मात्रा हर साल 2 फीसदी तक बढ़ाई जा सकेगी जो 2050 तक बढ़कर 70 फीसदी तक की जा सकती है. हालांकि यह प्रस्ताव अभी पारित होने का इंतजार कर रहा है.

बैटरी-चालित छोटी उड़ानें

इलेक्ट्रिक इंजन और बैटरी के जरिए, हवाई उड़ानें सीधे तौर पर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और कॉन्ट्रेल्स से बच सकती हैं. हालांकि मौजूदा समय में जो बैटरी हैं वो बहुत भारी हैं और उनमें स्टोरेज क्षमता भी बहुत कम है. यदि इन बैटरीज का इस्तेमाल विमानों में होता है तो वो कम दूरी की यात्राएं ही तय कर पाएंगे, मुश्किल में कुछ सौ किलोमीटर की.

कई कंपनियां बैटरी और एयरक्राफ्ट ऑप्टिमाइजेशन की मिक्सिंग की प्रक्रिया में हैं. इस्राएल की कंपनी एवियेशन एयरक्राफ्ट पूरी तरह से बिजली आधारित विमान बना रहा है. इसमें 9 सीटें होंगी. यह निजी विमान 445 किमी तक की हवाई उड़ान कर सकेगा और इसकी अधिकतम रफ्तार 400 किमी प्रति घंटा होगी.

नॉर्वे भी तीन साल के भीतर नियमित इलेक्ट्रिक फ्लाइट सेवा शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है. नॉर्वे 2026 तक अपने दो तटीय शहरों- बर्गेन और स्टेवेंगर के बीच बैटरी आधारित विमान सेवा से जोड़ने की योजना पर काम कर रहा है. इन दोनों शहरों के बीच की दूरी 160 किमी है और यह विमान 12 यात्रियों को ले जाने में सक्षम होगा.

हाइड्रोजन ने भी उम्मीद जगाई है लेकिन अभी तैयार नहीं

हाइड्रोजन से चलने वाले छोटे विमानों ने हाल के दिनों में सुर्खियां बटोरीं. ये विमान ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का इस्तेमाल करते हैं जिससे बिजली पैदा होती है और उससे जहाज के प्रोपेलरों को ऊर्जा मिलती है. लंबी दूरी के विमानों के जेट इंजन में भी हाइड्रोजन का इस्तेमाल हो सकता है लेकिन उनमें ये कम प्रभावी होंगे.

यूरोपीय विमान निर्माता एयरबस 2035 तक हाइड्रोजन से चलने वाले यात्री विमान को लॉन्च करने की योजना बना रहा है. ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म मैककिन्से के एक अध्ययन के मुताबिक, 2050 तक वैश्विक हवाई यात्राओं में इन विमानों की हिस्सेदारी 30 फीसदी से भी ज्यादा हो सकती है.

हाइड्रोजन से चलने वाले विमानों के सामने कई चुनौतियां भी हैं. बेहद ज्वलनशील यह गैस -253 डिग्री सेल्सियस तापमान पर ही लिक्विड यानी द्रव में बदलती है और इसे उच्च दाब पर विशेष टैंकों में ही स्टोर करना पड़ेगा. इसके अलावा, हाइड्रोजन-चालित इन विमानों में ईंधन भरने के लिए हवाई अड्डों को भी नए तरीके से विकसित करने की जरूरत होगी.

उत्सर्जन घटाने के लिए हवाई यात्रा कम करो

अगर हम बहुत ज्यादा आशावादी हो जाएं, फिर भी साल 2050 तक तो हवाई यात्रा उत्सर्जन मुक्त नहीं हो सकती है. जानकारों का कहना है कि यदि विमानन उद्योग महत्वाकांक्षी पुनर्निर्माण योजनाओं को लागू करते हैं, जेट ईंधन से चलने वाले विमानों की बजाय ग्रीन हाइड्रोजन और ई-केरोसीन से चलने वाले विमान ले आते हैं और विमानों के रास्ते कुछ इस तरह से तय किए जाएं कि कॉन्ट्रेल्स ना बनने पाएं, तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 90 फीसदी तक कम किया जा सकता है.

विज्ञान पत्रिका नेचर में छपे एक लेख के मुताबिक विमानों को पूरी तरह से ई-केरोसीन की ओर शिफ्ट कर दिया जाए, फिर भी उसके कुछ नकारात्मक प्रभाव जलवायु पर रहेंगे ही. जर्मनी की फेडरल एनवॉयरनमेंट एजेंसी UBA का कहना है कि जरूरी उड़ानों को छोड़कर हवाई यात्रा से बचना और जलवायु के अनुकूल परिवहन साधनों को प्राथमिकता देना सबसे अच्छा तरीका होगा.

विमानन क्षेत्र के विशेषज्ञों ने भी नये और आधुनिक पंखों वाले हल्के विमानों, जेट इंजनों की बजाय प्रोपेलरों के इस्तेमाल और एयरस्पीड कम करने पर जोर दिया है. उनका कहना है कि इन उपायों से आज की तुलना में ईंधन की 50 फीसदी तक बचत की जा सकती है.

यूरोपियन क्लीन ट्रांसपोर्ट कैंपेन ग्रुप ट्रांसपोर्ट एंड एनवायरनमेंट यानी टी एंड ई का कहना है कि हवाई टिकटों के दामों में पर्यावरणीय कीमत को मिला दिया जाए तो इन उपायों पर अमल किया जा सकता है. जलवायु संकट से निपटने में अभी हवाई कंपनियां कोई योगदान नहीं देतीं. टी एंड ई का कहना है कि हवाई यात्रा के किराये में पर्यावरण कीमत जोड़कर किराया लेना विमानन क्षेत्र के पुनर्निर्माण को प्रोत्साहित करने का सही तरीका हो सकता है और इससे जलवायु-अनुकूल परिवहन के साधनों की ओर जाने में मदद मिलेगी.


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