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स्पेनी द्वीप पर कैसे कर रहे हैं अंतरिक्ष यात्री चांद पर जाने की ट्रेनिंग

कैनेरी द्वीप लांसारोते में अंतरिक्ष यात्री चांद पर जाने की ट्रेनिंग कर रहे हैं. अटलांटिक सागर में ज्वालामुखी के फटने से बने इस स्पेनी द्वीप का लैंडस्केप चांद की सतह से बहुत मिलता जुलता है और ट्रेनिंग के लिए मुफीद है.

स्पेनी द्वीप पर कैसे कर रहे हैं अंतरिक्ष यात्री चांद पर जाने की ट्रेनिंग
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हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अपने नए चंद्र मिशन आर्टेमिस वन का पहला चरण पूरा किया. अब यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) भी अपना चंद्र मिशन लॉन्च करने की तैयारी में जुटा है. इस मिशन का मकसद चंद्रमा पर पीने लायक पानी और सांस लेने के लिए ऑक्सीजन पैदा करना है. इसके अलावा चंद्रमा की सतह से नमूने जुटाकर धरती पर लाने की भी योजना है. लेकिन चंद्रमा पर भेजे जाने वाले ऐसे मिशन की तैयारी कैसे की जा रही है?

यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने इसके लिए एक ऐसी जगह का चुनाव किया है जो चंद्रमा के लैंडस्केप से मिलता जुलता है. यह है अटलांटिक सागर में स्थित स्पेन के कैनेरी द्वीपों का सबसे पूर्व का द्वीप लांसारोते. दरअसल यहां का ज्वालामुखी के फटने से पैदा हुआ लैंडस्केप चंद्रमा की सतह से मेल खाता है.

चांद पर जाने के लिए यूरोप में ट्रेनिंग कैंप

यहां यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी मानव प्रशिक्षण और तकनीक जांचने के लिए प्रशिक्षण चला रही है. पिछले दिनों छह दिनों के एक ट्रेनिंग कैंप में जर्मन अंतरिक्ष यात्री अलेक्सांडर गैर्स्ट ने भी हिस्सा लिया. उनके मुताबिक, "हम चंद्रमा पर जा रहे हैं. शायद अगले 3-4 साल में." गैर्स्ट ने बताया कि यहां लगातार कुछ चट्टानों को खोजने का अभ्यास किया जा रहा है. ऐसी चट्टानें, जो इतिहास की परतें खोल सकती हैं.

अंतरिक्ष में बनेगी बिजली और सीधे घरों तक पहुंचेगी

इस दौरान अंतरिक्ष यात्री धरती पर मौजूद वैज्ञानिकों से रेडियो संपर्क के जरिये जुड़े रहेंगे. करीब 50 साल पहले चंद्रमा पर पहुंचे अपोलो मिशन के मुकाबले, इस बार कुछ खास चट्टानें ढूंढने में धरती से मदद कर पाना आसान होगा.

चंद्रमा पर लैंड करने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को क्या खोजना है, लांसारोते में यह अभ्यास बार-बार किया जा रहा है. यहां वे उपकरण भी टेस्ट किए जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल चंद्रमा पर एक-दूसरे से संपर्क करने के लिए करना होगा. जर्मन अंतरिक्ष यात्री गैर्स्ट कहते हैं, "हमें इसकी आदत हो गई है. धरती पर हमारे पास हर तरफ सैटेलाइट रिसीवर हैं, हर तरफ संपर्क के साधन हैं. लेकिन चंद्रमा पर हमारे पास वो सब नहीं है. हमें अपना नेविगेशन सिस्टम ले जाना होगा, अपने संपर्क के साधन ले जाने होंगे. और उन्हें टेस्ट किया जाना जरूरी है. और यहां पर पूरे सिस्टम को टेस्ट करने के लिए आदर्श परिस्थितियां हैं."

जर्मन अंतरिक्ष यात्री गैर्स्ट ने भी किए प्रयोग

अलेक्सांडर गैर्स्ट के लिए अंतरिक्ष नया नहीं है. वे अंतरिक्ष में करीब 1 साल बिता चुके हैं. हाल ही में वह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र आईएसएस पर कमांडर की जिम्मेदारी में थे. इस दौरान उन्होंने वहां करीब 100 प्रयोग किये. अब इस फेहरिस्त में एक और बड़ा प्रयोग जुड़ सकता है, चंद्रमा पर एक शोध केंद्र स्थापित करना.

हालांकि गैर्स्ट इसे एक चुनौती मानते हैं. वह कहते हैं, "अंटार्कटिक की तरह ही चंद्रमा पर शोध केंद्र स्थापित करना चुनौतीपूर्ण होने वाला है क्योंकि अंतरिक्ष यात्री अपने साथ बहुत कुछ नहीं ले जा सकते." वे कहते हैं कि अंतरिक्ष यात्री को चंद्रमा पर सस्टेनेबल तरीके से जीना सीखना होगा. उन्हें चंद्रमा पर मौजूद संसाधनों का इस्तेमाल करना सीखना होगा और इसके लिए शायद पानी को हवा और ईंधन में तोड़ना भी होगा.

अंतरिक्ष से दुनिया भर के पानी का पहला सर्वेक्षण करेगी नासा

लांसारोते में प्रशिक्षण में भाग ले रहे अंतरिक्ष यात्री इसी की तैयारी कर रहे हैं. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी को उम्मीद है कि 2028 तक वह चंद्रमा पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवा सकते हैं.


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