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अमेजॉन और फ्यूचर ग्रुप की लड़ाई की असली कहानी क्या है?

अमेजॉन और फ्यूचर ग्रुप के बीच सालभर से जारी लड़ाई में सबसे बड़े खिलाड़ी भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी हैं.

अमेजॉन और फ्यूचर ग्रुप की लड़ाई की असली कहानी क्या है?
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पिछले करीब एक साल से अमेरिका की अमेजॉन डॉट कॉम और भारत के फ्यूचर ग्रुप के बीच जटिल कानूनी लड़ाई चल रही है. इस कारण फ्यूचर ग्रुप की 3.4 अरब डॉलर संपत्ति की रिलायंस को बिक्री अटकी हुई है. इस लड़ाई का कोई अंत नजर नहीं आ रहा है.

कैसे शुरू हुआ विवाद?
2019 में अमेजॉन और फ्यूचर ने एक समझौता किया था. अमेरिकी कंपनी ने फ्यूचर में 20 करोड़ डॉलर (लगभग 15 अरब रुपये) का निवेश किया और साझीदार बन गए. फ्यूचर भारत के रिटेल बाजार में रिलायंस के बाद दूसरे नंबर पर है.

अमेजॉन का कहना है कि 2019 में जो समझौता हुआ था उसमें यह शर्त थी कि फ्यूचर को कुछ प्रतिस्पर्धी कंपनियों जैसे कि रिलायंस को नहीं बेचा जा सकता. इस समझौते में यह शर्त भी है कि कोई विवाद होता है तो उसका फैसला सिंगापुर स्थित इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर में होगा.

2020 में फ्यूचर ग्रुप पर कोरोनावायरस महामारी की मार पड़ी और उसने अपनी सारी संपत्ति रिलायंस को बेचने का फैसला किया. इसके विरोध में अमेजॉन ने सिंगापुर की अदालत में अपील की और बिक्री को रोकने में सफल रही. दोनों पक्षों ने एक दूसरे को भारतीय अदालतों में भी चुनौती दी क्योंकि आर्बिट्रेशन की बेंच दिल्ली में है और भारतीय कानून से चलती है.

क्या कहती हैं दोनों कंपनियां?
अमेजॉन का तर्क है कि 2019 के समझौते के तहत उसे फ्यूचर की संपत्ति पर विशेष अधिकार मिले हैं. उसे उम्मीद थी कि भारत में विदेशी निवेशकों के लिए नियम ढीले हुए तो वह इन्हें खरीद लेगी. फ्यूचर और रिलायंस का समझौता इस संभावना को खत्म कर देता है.

फ्यूचर का दावा है कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है और अमेजॉन अवैध रूप से फ्यूचर के रिटेल बिजनेस पर दावा कर रही है. फ्यूचर ग्रुप की एक कंपनी फ्यूचर रिटेल का कहना है कि वह दीवालिया होने के कगार पर है और अगर रिलायंस से उसका समझौता नहीं हुआ तो 27,000 कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे.

दोनों ही पक्षों ने वकीलों की विशाल टीमें इस लड़ाई में झोंकी हुई हैं. भारत में सॉलिसिटर जनरल रह चुके वकील दोनों कंपनियों की लड़ाई अदालतों में लड़ रहे हैं.

पूरी तस्वीर क्या है?
बड़ा सवाल है ये है कि भारत के 900 अरब डॉलर (66,418,15 करोड़ रुपये) के रिटेल बाजार में बड़ा खिलाड़ी कौन बनेगा, रिलायंस या अमेजॉन. जिस देश में 1.3 अरब उपभोक्ता हों, वहां कोई भी कंपनी सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहेगी.

फिलहाल बड़ा खिलाड़ी होने का यह तमगा रिलायंस को हासिल है जिसके 1,100 सुपरमार्केट हैं. दूसरे नंबर पर फ्यूचर ग्रुप है जबकि उसकी दुकानों की संख्या (1,500) रिलायंस से ज्यादा है. दोनों ही कंपनिया ई-कॉमर्स में भी तेजी से पांव पसार रही हैं. अगर रिलायंस को फ्यूचर की संपत्ति मिल जाती है तो उसका आकार इतना बड़ा हो जाएगा कि उससे बड़ा होना लगभग असंभव हो जाएगा. इसी आधार पर रिलायंस में कई विदेशी निवेशक भारी निवेश कर रहे हैं.

अमेजॉन ने भारत में 6.5 अरब डॉलर का निवेश किया है क्योंकि कंपनी भारत में विशाल संभावनाएं देख रही है. अमेजॉन यूं भी दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी है और भारत में भी वह ई-कॉमर्स में पहले नंबर पर है. फ्यूचर ग्रुप के साथ हुए समझौते ने अमेजॉन का प्रसार घर के सामान की डिलीवरी जैसे क्षेत्र में कर दिया था.

फ्यूचर को रिलायंस के हाथों में जाने से रोकने की अमेजॉन की सारी कोशिश बस ये है कि भारत के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अंबानी को रिटेल बाजार का बादशाह बनने से रोका जा सके. अदालत में अपनी एक दलील में अमेजॉन ने कहा था कि रिलायंस का फ्यूचर के साथ मिल जाना "भारत के रिटेल बाजार में प्रतिस्पर्धा में और ज्यादा बाधक होगा.”

सरकार बीच में कहां से आई?
भारत सरकार की संस्था भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने हाल ही में अमेजॉन के खिलाफ फैसले लिए जिन्हें अमेजॉन ने अन्यायपूर्ण बताया. दरअसल, फ्यूचर ग्रुप ने सीसीआई में अमेजॉन की शिकायत कर दी कि 2019 के समझौते को लेकर वह विरोधाभासी और गलत बातें कह रही है.

अमेजॉन ने कहा कि उसने कभी कोई जानकारी नहीं छिपाई लेकिन बीते दिसंबर में आयोग ने 2019 के समझौते को दी अपनी मंजूरी को रद्द कर दिया. आयोग ने कहा, "अमेजॉन ने समझौते की असली संभावनाओं को छिपाने की कोशिश की.”

अमेजॉन का कहना है कि आयोग ने अपनी सीमाओं से बाहर जाकर फैसला दिया है जबकि फ्यूचर अब कह रही है कि समझौता रद्द हो जाने के बाद अमेजॉन का उसकी संपत्तियों पर बोलने का अधिकार खत्म हो गया है. अमेजॉन को इसी महीने दिल्ली हाई कोर्ट में उस वक्त बड़ा झटका लगा जब अदालत ने आयोग के फैसले के आधार पर सिंगापुर आर्बिट्रेशन में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी. अमेजॉन ने इस फैसले के खिलाफ भी अपील कर रखी है.


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