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'त्याग से गर्म लू भी ठंडी बन जाती है

श्री सकल दिगम्बर जैन मंदिर दशलक्षण महापर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म धूम धाम से मनाया गया

त्याग से गर्म लू भी ठंडी बन जाती है
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भाटापारा। श्री सकल दिगम्बर जैन मंदिर दशलक्षण महापर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म धूम धाम से मनाया गया। सुबह श्री जी का मंगल अभिषेक, शांतिधारा व पूजन किया गया। श्री 1008 महावीर भगवान जी की प्रतिमा को मस्तक में विराजमानकर पाण्डुकशिला पर विराजमान कर सभी श्रावकों ने अभिषेक क्रिया सम्पन्न की।

सकल जैन समाज के श्रावक श्राविकाओं ने अभिषेक का लाभ लिया। शांतिधारा व प्रथम आरती का सौभाग्य श्री जीवनलाल-राजमती, संतोष-रीना, विनय-अंजू, अभय-संगीता, सौरव, वैभव,सोनिका सिंघई व समस्त सिंघई परिवार को प्राप्त हुआ।तत्पश्चात संगीतकार पतीक जैन, घंसौर द्वारा कैसी महिमा प्रभु जी की गायी, गणधर मन हर्षे गीत पर सबने झूम-झूम कर सभी भक्तों ने धूमधाम से आरती व भक्ति की। आरती पश्चात समुच्चय पूजा, सोलहकारण पूजा, दशलक्षण पूजा, आचार्य श्री जी की पूजा व विपिन भैया जी द्वारा कराया गया।

धर्मसभा को संबोधित करते हुए विपिन भैया जी (जयपुर) ने कहा कि-जिनेन्द्र भगवान् ने कहा है कि जो जीव सारे परद्रव्यों के मोह को छोड़कर संसार, देह और भोगों से उदासीन परिणाम रखता है, उसके त्याग धर्म होता है। उत्तम त्याग की बात है। दान और त्याग-ये दो शब्द आते हैं। दोनों में थोड़ा सा अन्तर है। रागद्वेष से अपने को छुड़ाने का नाम त्याग है। वस्तुओं के प्रति रागद्वेष के अभाव को 'त्याग कहा गया है। दान में भी रागभाव हटाया जाता है किन्तु जिस वस्तु का दान किया जाता है, उसके साथ किसी दूसरे के लिए देने का भाव भी रहता है।

दान पर के निमित्त को लेकर किया जाता है किन्तु त्याग में पर की कोई अपेक्षा नहीं रहती। किसी को देना नहीं है, मात्र छोड़ देना है। त्याग 'स्व को निमित्त बनाकर किया जाता है। त्याग और दान का सही-सही प्रयोजन तो तभी सिद्ध होता है, जब हम जिस चीज का त्याग कर रहे हैं या दान कर रहे हैं, उसके प्रति हमारे मन में किसी प्रकार का मोह या मान-सम्मान पाने का लोभ न हो। क्योंकि जिस वस्तु के प्रति मोह के सद्भाव में कर्मों का बंध होता है, वही वस्तु मोह के अभाव में निर्जरा का कारण बन जाती है।

बंधन से मुक्ति की ओर जाने की सरलतम उपाय यदि कोई है तो वह यही त्याग धर्म और दान है। अपने आप के पास आना ही त्याग है। अपने आप पर अधिकार करने के लिए त्याग की जरूरत है। जिन वस्तुओं के द्वारा दुख का अनुभव हो रहा है उनको छोड़ना ही सुख की प्राप्ति है। आपको किसी ने भी नहीं पकड़ा है, बल्कि आपने ही अन्य को पकड़ रखा है। त्याग में शांति, सुख है। यह भी एक माध्यम है जिसके द्वारा सुख शांति तक पहुँचा जा सकता है। त्याग में आकुलताएँ नहीं होनी चाहिए।

कार्यक्रम में मनोज जैन अध्यक्ष जैन समाज भाटापारा, संतोष जैन(अरिहंत), कैलाशचंद जैन, संतोष सिंघई, सुनील छाबड़ा, शीलचंद जैन, फूलचंद जैन,नितिन जैन,मनीष जैन,सतीश भंसाली, विकास भंसाली,गौरव गदिया, सौरव गदिया, वैभव गदिया, सुधीर जैन, वीना गदिया, नंदिनी जैन, अंजू जैन, सुनीता जैन, अलका जैन, मुस्कान जैन, आदि जैन, संगीता जैन, सारिका जैन,उषा गदिया,विमला भंसाली,रेखा छाबड़ा,स्वीटी गदिया, रश्मि गदिया,प्रिंसी गदिया, निधि गदिया खुशबू जैन , छाया जैन, संदीप जैन, पंकज जैन,अभय सिंघई, हिमांशु जैन, प्रदीप जैन, धीरज गदिया, अरविंद जैन, संजय जैन, प्रमोद जैन,संतोष जैन, आदि उपश्थित थे। उपरोक्त जानकारी भाटापारा सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष मनोज जैन ने दी।


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