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प्रमाण पत्र के लिए दिव्यांग लगा रहे अस्पताल के चक्कर

अम्बिकापुर का जिला अस्पताल जिसे अब मेडिकल कॉलेज की मान्याता प्राप्त जो चुकी है लेकिन यहां काम कर रहे चिकित्सकों में संवेदनाये मर चुकी है।

प्रमाण पत्र के लिए दिव्यांग लगा रहे अस्पताल के चक्कर
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अम्बिकापुर। अम्बिकापुर का जिला अस्पताल जिसे अब मेडिकल कॉलेज की मान्याता प्राप्त जो चुकी है लेकिन यहां काम कर रहे चिकित्सकों में संवेदनाये मर चुकी है। अस्पताल प्रबंधन ने ऐसे लोगों को नेत्र विभाग की जिम्मेदारी दी है जो धृतराष्ट्र बनकर यहां बैठे हैं। यहां दिव्यांगों को भी मेडिलकल प्रमाण पत्र के लिए तारीख पर तारीख दी जाती है। एक दिव्यांग अपने छोटे से भतीजे की आंख खराब होने के कारण उसकी शिक्षा के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट लेने अस्पताल के चक्कर लगा रहा है लेकिन अस्पताल के नेत्र विभाग के चिकित्सक बच्चे का मेडिकल सर्टिफिकेट देने के बजाय उसे बार बार अस्पताल के चक्कर लगवा रहे है।

यहीं नहीं अस्पताल के नेत्र विभाग में मरीजों की लम्बी लाईन का निपटारा वहां के नेत्र सहायकों द्वारा किया जाता है। अमूमन इस अस्पताल में ऐसा ही होता है लेकिन आज अम्बिकापुर मेडिकल कालेज का घिनौना मजाक तब सामने आया जब अपने बच्चे के नेत्र विभाग के चिकित्सक बच्चे का मेडिकल सर्टिफिकेट चाचा ने अपनी आप बीती शहर के निशक्त जन सेवा समिति से बताई और समिति ने सूचना देकर अस्पताल बुलाया और अस्पताल प्रबंधन की करतूत उजागर करने का निवेदन किया।

शहर से लगभग दस किलोमीटर दूर स्थित दरिमा क्षेत्र के मोतीपुर गांव से अपने भतीजे को दिव्यांगो की स्कूल में शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाने पहुंचे दिव्यांग चाचा ने आप बीती बताई की उनके बेटे की एक आंख बिलकुल खराब है और दूसरी आंख में भी जलन होती है और उसके मेडिकल सर्टिफिकेट के लिए कई बार अस्पताल के चक्कर लगा चुके है लेकिन इस अस्पताल में मेडिकल सर्टिफिकेट देने की जगह हर बार टालमटोल किया जाता है और एक पैर के सहारे अपनी लाचारी और बेबसी के साथ अपने भतीजे की शिक्षा के लिए दिव्यांग चाचा अस्पताल के काउंटरो के चक्कर लगा रहा है। वहीं अस्पताल के नेत्र विभाग में धृतराष्ट्र की भूमिका निभा रही एक मात्र चिकित्सक मीडिया के सवालों के जवाब देने की जगह बच्चे के प्रति संवेदना व्यक्त करने की जगह ठिठोली कर बचती हुई नजर आई। ज्ञात हो कि अस्तपाल के नेत्र विभाग में प्रभारी के पद पर नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ एसपी वैश्य, डॉ श्रीमती रजत टोप्पो व कमलेश जैन जरूर पदस्थ हैं, परंतु आज मात्र डॉ श्रीमती रजत टोप्पो ही ड्यूटी पर नजर आईं। विभाग की विडम्बना यह देखी गई कि वहां के नेत्र सहायक मरीजों को जांच करता नजर आया। समझा जा सकता है कि अस्पताल के नेत्र विभाग की जिम्मेदारी किस प्रकार के धृतराष्ट्रों को देकर रखी गई है।

नेत्र विभाग में पदस्थ डॉ श्रीमती रजत टोप्पो ने इस संबंध में कहा कि दरिमा से आये उक्त बालक को सीनियर डॉक्टर देखेंगे और वे ही बता पायेेंगे कि उसका मेडिकल सर्टिफिकेट बन सकता है या नहीं। फिलहाल सीनियर डॉक्टर किसी बैठक में गये हैं।


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