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हिंदुत्व, अल्पसंख्यक और चुनावी राजनीति

धर्मनिरपेक्ष भारत में संविधान सभी को अपने धर्म के पालन की आजादी देता है और नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे अपने धर्म के पालन के साथ, दूसरे के धर्म और धार्मिक आजादी का सम्मान करें

हिंदुत्व, अल्पसंख्यक और चुनावी राजनीति
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धर्मनिरपेक्ष भारत में संविधान सभी को अपने धर्म के पालन की आजादी देता है और नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे अपने धर्म के पालन के साथ, दूसरे के धर्म और धार्मिक आजादी का सम्मान करें। लेकिन सत्ता में आने के लिए अब धार्मिक ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई जा रही है। देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का अनुचित आह्वान बार-बार किया जा रहा है और इस वजह से भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। अमेरिका के एक सरकारी पैनल ने भी इस ओर ध्यान दिलाया है और यह पहली बार नहीं है, बल्कि लगातार चौथी बार अमेरिकी पैनल ने भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चिंता जतलाई है। यूनाइटेड स्टेट्स ऑन इंटरनेशनल रीलीजिसयस फ्रीडम ने अपनी रिपोर्ट में भारत में धार्मिक आजादी पर सवाल उठाए हैं। इस पैनल ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत में धार्मिक आजादी 'ब्लैकलिस्ट' कर दी गई है। पैनल ने अमेरिका के विदेश मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वह भारत को एक खास चिंता वाले देश के तौर पर चिन्हित करे।

पैनल के मुताबिक भारत सरकार ने साल 2022 में राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर धार्मिक रूप से भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया और लागू किया। इनमें धर्म परिवर्तन को निशाना बनाने वाले कानून, अंतरधर्म संबंध, हिजाब पहनने और गोहत्या जैसे मुद्दे शामिल हैं, जो मुसलमानों, ईसाईयों, सिखों, दलितों और आदिवासियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। पैनल ने यह दावा भी किया है कि प्रधानमंत्री मोदी की भाजपा के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने 'आलोचनात्मक आवाजों' - विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनकी ओर से वकालत करने वालों को दबाना जारी रखा है।

इस रिपोर्ट पर भारत सरकार चाहे तो अमेरिका को उसकी हदों में रहने की नसीहत दे दे, इसे भारत का आंतरिक मसला बताए या अमेरिका में नस्लभेद के उदाहरण देते हुए कह दे कि शीशे के घरों में रहने वाले दूसरों पर पत्थर नहीं उछाला करते। इसके अलावा जिस तरह भुखमरी के आंकड़ों, प्रेस की स्वतंत्रता, हैप्पीनेस इंडेक्स या लोकतंत्र की स्थिति पर आई कई रिपोर्ट्स को भारत सरकार ने खारिज कर दिया है, इसे भारत के खिलाफ साजिश बताया है, उसी तरह सरकार इस रिपोर्ट को भी खारिज कर सकती है। देश की कमान जिन लोगों के हाथों में है, आखिर में तो उन्हीं के मन की बात चलेगी। लेकिन अमेरिकी रिपोर्ट पर त्योरियां चढ़ाने से पहले एक बार अपनी स्थिति का जायजा ले लेना उचित होगा। देश में धर्मांतरण के आरोपों पर अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने की घटनाएं चल रही हैं, इसका ताजा उदाहरण इस रविवार को देखा गया। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के पाटन शहर में 30 अप्रैल को रविवार की प्रार्थना के लिए एकत्रित हुए ईसाई समुदाय के सदस्यों पर कथित तौर पर बजरंग दल के सदस्यों द्वारा हमला किए जाने का मामला सामने आया है। पाटन मुख्यमंत्री श्री बघेल का निर्वाचन क्षेत्र भी है।

खबर के मुताबिक एक घर के बाहर कुछ हमलावरों ने 'जय श्री राम' के नारे लगाते हुए ईसाई समुदाय की प्रार्थना में बाधा डाली। हमलावर बजरंग दल के बताए जा रहे हैं, उनका आरोप था कि वहां लोगों को ईसाई धर्म स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा रहा था। इस घटना पर पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए छत्तीसगढ़ ईसाई मंच के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने आरोप लगाया कि पुलिस ने हमारे समुदाय के सदस्यों को हिरासत में लेते हुए बजरंग दल के सदस्यों को छोड़ दिया। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है। घटना का सच विस्तृत जांच के बाद ही सामने आएगा। लेकिन ये एक चौंकाने वाला तथ्य है कि उत्तरप्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ राज्य में ईसाइयों पर सबसे ज्यादा हमले हुए हैं। यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा के मामलों में बीते आठ सालों में 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2014 में यह संख्या 147 थी, जो 2022 में बढ़कर 598 हो गई है।

2014 में ही भाजपा सरकार केंद्र में आई है और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर लगातार दूसरी बार बैठे हैं। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात में भयावह दंगे हुए, जिसमें कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। पिछले महीने श्री मोदी ईस्टर के मौके पर दिल्ली के सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल चर्च पहुंचे और वहां प्रार्थना में शामिल भी हुए। उन्होंने ईस्टर की शुभकामनाएं देते हुए ट्वीट किया था कि यह विशेष अवसर हमारे समाज में सद्भाव की भावना को गहरा करेगा। प्रधानमंत्री इस बात को समझते ही होंगे कि समाज में सद्भाव अवसरों से अधिक सरकार, प्रशासन और समाज के सम्मिलित प्रयासों से कायम हो सकता है। इसके लिए सबसे पहले धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति को छोड़ना होगा। लेकिन श्री मोदी ने चुनावी रैली में झारखंड में कपड़ों से दंगाइयों की पहचान की बात की थी, उत्तरप्रदेश में कब्रिस्तान बनाम श्मशान का जिक्र छेड़ा था और अब कर्नाटक में उन्होंने कांग्रेस के घोषणापत्र को लेकर गलतबयानी की।

कांग्रेस ने सत्ता में आने पर बजरंग दल और पीएफआई जैसी संस्थाओं पर प्रतिबंध की घोषणा की है, कांग्रेस ने कहा कि हमारी पार्टी जाति या धर्म के आधार पर समुदायों के बीच नफरत फैलाने वाले व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ कड़ी और निर्णायक कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन प्रधानमंत्री ने विजय नगर जनसभा में कहा कि, आज हनुमान जी की इस पवित्र भूमि को नमन करना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है और दुर्भाग्य देखिए, मैं आज जब यहां हनुमान जी को नमन करने आया हूं उसी समय कांग्रेस पार्टी ने अपने मेनिफेस्टो में बजरंगबली को ताले में बंद करने का निर्णय लिया है। पहले श्री राम को ताले में बंद किया और अब जय बजरंगबली बोलने वालों को ताले में बंद करने का संकल्प लिया है।

चंद वोट हासिल करने के लिए श्री मोदी बजरंग दल और बजरंगबली की जय बोलने वालों को एक पलड़े पर दिखा रहे हैं, जो साफ तौर पर चुनावी चालाकी है। क्योंकि देश में करोड़ों हनुमान भक्त हैं और वे बजरंग दल के सदस्य नहीं हैं। ठोस मुद्दों पर कांग्रेस की आलोचना करने की जगह श्री मोदी शाब्दिक खिलवाड़ दिखा रहे हैं। चुनाव में राम और हनुमान का जिक्र कर हिंदुत्व की धार को पैना कर रहे हैं। इससे समाज में सद्भाव के ताने-बाने को नुकसान होगा। अमेरिकी पैनल ने इसी ओर ध्यान दिलाया है।


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