हिन्दी साहित्य परिषद की काव्यगोष्ठी
राज्य संस्कृत बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत महाविद्यालय रायपुर के सहायक प्राध्यापक, वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार डॉ. गणेष कौषिक के सम्मान में आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर के निवास पर काव्यगोष्ठी का आयोजन

अंबिकापुर। राज्य संस्कृत बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत महाविद्यालय रायपुर के सहायक प्राध्यापक, वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार डॉ. गणेष कौषिक के सम्मान में आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर के निवास पर काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सरगुजा के वरिष्ठ कवि यादव 'विकास' ने की। प्रारंभ में आचार्य तोमर द्वारा रचित भगवान परषुराम की स्तुति को पूनम दुबे ने मधुर स्वर में प्रस्तुत किया। तत्पष्चात रंजीत सारथी ने सरस्वती-वन्दना-घरी-घरी तोर पईया बन्दौ हमरो ले-ले जोहर दाई की मनभावन प्रस्तुति दी। उनका मेरा प्यार तू, मेरा यार तू, मेरी जिन्दगी की बहार तू गीत को भी श्रोताओं ने बहुत पसन्द किया। सुरेष प्रसाद जायसवाल की कविता- बहुतों के मन कसैले देखे है, विषधरों से आदमी विषैले देखे हैं में लोभी मनुष्यों के घिनौने कारनामों का प्रभावी चित्रण हुआ।
मीना वर्मा ने कोख में पलती वो बेटी कह रही है, देख तेरी लाडली क्यो रो रही है गीत में कन्याभ्रूण-हत्या का प्रबल विरोध करते हुए 'बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं' का समर्थन किया। प्रताप पाण्डेय ने अपनी कविता में युवाओं का आहवान किया-तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निषां, लिखते चलो तुम सदा प्रगति की कहानियां। आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर से प्रकृति की व्यथा देखी नहीं गई।
उन्होंने षक्तिस्वरूपा मां प्रकृति, पीड़ा उदर की सहती है, भूखी रहकर अधरों से नीर नयन के पीती है कविता की प्रस्तुति दी। षायरे षहर यादव ' विकास' ने-लोग आ गए आखिर रहनुमा की चालों में, खौफ था अंधेरों का, हम लुट गए उजालों में गजल सुनाकर महफिल में समां बांध दिया।
कृष्णकान्त पाठक द्वारा सद्भावना, प्रेम की करना बारिष, भक्ति की षक्ति सभी में बढ़ाना, गीत की पंक्तियों से सबकी सुख-समृद्धि की कामना नववर्ष संबंधी गीत में की गई। परिषद के सचिव मुकुन्दलाल साहू ने मुहब्बत और मुस्कान की महिमा पर षानदार दोहे सुनाए- जानां जीने में मजा, तब आएगा खूब, जब मेरी मुहब्बत में, तुम जाओगे डूब। इक तेरी मुस्कान से, गया स्वयं को भूल, मन-बगिया में खिल गए, रंग-बिरंगे फूल। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संस्कृत बोर्ड के पूर्व चेयरमेन गणेष कौषिक ने कविता के लिए भावना की आवष्यकता बताते हुए साहित्य, संस्कृति और संस्कार के प्रसार संबंधी अपने राज्यव्यापी अभियान की जानकारी सबसे साझा की और स्कूलों में जाकर बच्चों को सफलता के लिए मोटीवेट करने की बात कही। कार्यक्रम का संचालन आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर और आभार हिन्दी साहित्य परिषद के अध्यक्ष सुरेष प्रसाद जायसवाल ने की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में काव्यप्रेमियों की उपस्थिति रही।


