हिंडनबर्ग : मोदी जी पर एक और नया संकट
हिंडनबर्ग के नए खुलासे के बाद ऐसा ही लग रहा है कि मोदी जी का कवच बना मीडिया थोड़ा सहमा हुआ है

- शकील अख्तर
हिंडनबर्ग के नए खुलासे के बाद ऐसा ही लग रहा है कि मोदी जी का कवच बना मीडिया थोड़ा सहमा हुआ है। टीवी चैनलों पर खबर चल रही है। डेढ़ साल पहले जब हिंडनबर्ग का पहला खुलासा आया था तो मोदी जी लोकसभा में 303 सांसदों वाली पार्टी के नेता थे। राहुल ने लोकसभा में सवाल उठाया तो उन्हें लोकसभा से ही निकाल दिया गया था। मगर उसी सत्रहवीं लोकसभा में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वापस भेजा।
प्रधानमंत्री मोदी कई संकटों में घिरे मगर बचे रहे। उनके पास मीडिया है जो उनके खिलाफ जाने वाली हर बात को दबा देता है। उनके पक्ष में रोज नई कहानियां पेश करता है। जनता को हिन्दू-मुसलमान में उलझाए रखता है। अगर यह सेफ गार्ड एक दिन को भी हट जाए तो मोदी जी के लिए अपना विकेट बचाना मुश्किल होगा।
अभी हिंडनबर्ग के नए खुलासे के बाद ऐसा ही लग रहा है कि मोदी जी का कवच बना मीडिया थोड़ा सहमा हुआ है। टीवी चैनलों पर खबर चल रही है। डेढ़ साल पहले जब हिंडनबर्ग का पहला खुलासा आया था तो मोदी जी लोकसभा में 303 सांसदों वाली पार्टी के नेता थे। राहुल ने लोकसभा में सवाल उठाया तो उन्हें लोकसभा से ही निकाल दिया गया था। मगर उसी सत्रहवीं लोकसभा में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वापस भेजा। और अब 18 वीं लोकसभा में जनता ने उन्हें न केवल दो जगह से जीता कर वापस भेजा बल्कि मोदी जी की 303 सीटों को 240 भी कर दिया।
240 मतलब अल्पमत! 543 की लोकसभा में साधारण बहुमत के लिए भी 272 सीटें चाहिए। मोदी जी तीसरी बार जरूर प्रधानमंत्री बन गए। नेहरू से बराबरी का खूब प्रचार भी करवा लिया मगर पिछली दोनों बार की सीटों से बहुत कम ला पाए। 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनते समय भी 282 सीटें जीते थे।
तो इस बार अल्पमत में आते ही डर भी खत्म हो गया। पिछले दस साल खुद भाजपा आरएसएस भी डर में ही रहे। बाकी संवैधानिक इंस्टिट्यूशन और ज्यादा डरे हुए। और मीडिया सबसे ज्यादा डरा हुआ।
एक ही आदमी नहीं डरा। पूरा इंस्टिट्यूशन बन गया वह निकल पड़ा सड़कों पर। उस समय 303 सीटों का गुमान था। और 400 पार के ख्वाब थे। तो राहुल के खिलाफ हर कार्रवाई की गई। एसपीजी की सुरक्षा हटाई। 55-56 घंटे ईडी ने पूछताछ की। मगर कुछ नहीं निकला। लोकसभा की सदस्यता छीनी। घर छीना। बीस से ज्यादा मुकदमे चला रखे हैं। जिन्हें एक जगह नहीं कर रहे। सड़क पर गिराया तक गया। जब हाथरस जा रहे थे दलित परिवार से मिलने जिनकी लड़की सामूहिक बलात्कार में मारी गई थी तो पुलिस ने धक्के मारकर गिराया। क्या नहीं किया? किसी एक नेता के खिलाफ आजादी के बाद इतनी कार्रवाइयां करने का और कोई उदाहरण तो बताइए!
मगर उसका जवाब इस नेता ने दो तरह से दिया। एक-दो बार पूरा हिन्दुस्तान नाप दिया। दूसरे पूरे हिन्दुस्तान के विपक्षी दलों को एक कर दिया। परिणाम सामने है। मोदी जी अल्पमत में और राहुल पूरे दम के साथ नेता प्रतिपक्ष। बाकी सब इसके फाल आउट हैं।
कमजोर का साथ कोई नहीं देता। मोदी जी को अच्छी तरह समझ में आ रहा होगा। जिस मीडिया पर इतना भरोसा था वह भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर सवाल कर रहा है। करे भी क्यों नहीं?
शेयर बाजार और बैंक इन दोनों चीजों पर झूठ चल नहीं सकता। सारा कारोबार ही इन पर टिका है। मध्यमवर्ग का सारा पैसा इन्हीं दोनों जगह है। बाकी सब जगह झूठ बोलने से आर्थिक नुकसान नहीं होता। मगर यहां अगर शेयर बाजार और बैंकों में कोई बड़ा कांड हुआ तो मध्यम वर्ग तो मिटेगा ही यह मीडिया भी बच नहीं सकेगा।
अभी एक उद्योगपति के चैनल से सैकड़ों लोग नौकरी से निकाले गए। इस उद्योगपति ने चालीस साल पहले भी एक बड़ा अंग्रेजी अख़बार निकाला था। बड़ी-बड़ी तनखाओं पर पत्रकारों को लाया था। मगर जब लगा कि अपना अख़बार चलाने से सस्ता दूसरे अखबारों के जरिए काम करना है तो फिर अचानक सब पत्रकारों और दूसरे स्टाफ को मंझघार में छोड़कर अख़बार बंद कर दिया। अब आधे से ज्यादा मीडिया खरीद लिया है। लेकिन उसके लिए सम्मान या प्रोफेशनल माहौल देने का सवाल ही नहीं। जैसे लाला के यहां लोग काम करते हैं वैसी स्थिति कर दी। उधर मोदी जी तो सम्मान करते नहीं है। दस साल से ज्यादा हो गए एक प्रेस कान्फ्रेंस तक नहीं की। ले दे के बस कांग्रेस के प्रचारप्रिय नेता ही इस मीडिया को पूछते हैं। बाकी राहुल तो मौका मिलने पर कह देते हैं कि भाजपा का बिल्ला लगाकर सवाल करो!
मगर जैसा कि हम पहले भी कई बार लिख चुके हैं। फिर लिखने में हमें कोई परेशानी नहीं है कि कांग्रेस दो हैं। एक कांग्रेस है जो राहुल हैं।
विपक्ष के नेता जो इक_ा हुए वह राहुल की वजह से ही हुए। बाकी इन गुटबाज अवसरवादी और केवल अपने स्वार्थ के लिए काम करने वाले टीवी पर चेहरा चमकाने के लिए गोदी मीडिया के आगे पीछे घूमने वाले कांग्रेसी नेताओं को विपक्ष के बाकी नेता कोई पसंद नहीं करते हैं। तो अब दूसरी कांग्रेस बताने की जरूरत नहीं। लिख ही दिया हमने कि दूसरी कांग्रेस केवल अपने और अपने बारे में सोचने वाले नेताओं की है।
उदाहरण भी बता देते हैं। अभी राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस को इस गुटबाजी ने ही हराया। फिर लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बताया कि राजस्थान में कांग्रेस कितनी मजबूत है। 25 में 11 सीटें जीती। क्योंकि यहां मुख्यमंत्री के लिए लड़ रहे दोनों गुटों का कुछ भी दांव पर नहीं था। अभी हरियाणा में विधानसभा चुनाव होना हैं। आंख बंद करके सब कह रहे हैं कि कांग्रेस आएगी। मगर कांग्रेसियों को छोड़कर। कांग्रेसी कह रहे है कि हमें कमजोर मत समझना। जनता चाहे जितना जोर लगा दे। हम अपनी गुटबाजी और हम से बड़ा नेता कौन की टेक नहीं छोड़ेंगे। सोनिया गांधी को कहना पड़ा कांग्रेस संसदीय दल की मीटिंग में कि अगर मिलकर लड़ लिए तो जीत जाओगे।
मगर वह कांग्रेसी ही क्या जो सोनिया की या राहुल की बात सुन लें! ऐसी बातें तो सोनिया गांधी यूपीए की सरकार के समय कई बार कहती रहीं। अगर मान जाते तो 2014 में हारते थोड़ी। 2014 में मोदी जी नहीं जीते थे। कांग्रेसियों ने कांग्रेस को हराया था।
मगर अब गंगा-जमुना में बहुत पानी बह गया है। राहुल बड़ी ताकत बन गए हैं। और वह जो एक डायलाग है ना! राहुल उसको इस तरह बोल सकते हैं कि मेरे पास जनता है। और सच यह है कि जनता के साथ विपक्षी दल और उनके नेता भी राहुल के साथ हैं। कांग्रेस के कार्यकर्ता भी हैं। अब इन अवसरवादी निहित स्वार्थी कांग्रेसी नेताओं के भरोसे मोदी जी राहुल को कमजोर नहीं कर सकते। मीडिया भी खिसक रहा है।
हिंडनबर्ग की इस नई रिपोर्ट का असर क्या होता है यह सोमवार सुबह शेयर मार्केंट खुलने के बाद पता चलेगा। सरकार की मजबूती भी। पहले अरुण जेटली थे। ऐसी उठापटक को मैनेज कर लेते थे। मगर उन्हें तो मोदी जी कभी याद भी नहीं करते। कल जब मार्केट अपनी प्रतिक्रिया देगा तो शायद जेटली याद आएं। बहुत तनाव झेलकर गए हैं। समय से पहले। अगर मोदी जो को दिल्ली लाने और प्रधानमंत्री बनाने के लिए किसी एक व्यक्ति का नाम लेना हो तो वह जेटली के अलावा और किसी का नहीं हो सकता।
खैर मोदी जी को अपने किसी नेता की परवाह नहीं है। आडवानी से लेकर जेटली तक बहुत लंबी लिस्ट है जिन्हें उपयोग किया और भूल गए। उन्हें तो कांग्रेस के नेता याद रहते हैं। किस कांग्रेस के नेता ने क्या किया? क्या नहीं किया ?
मगर अब इन सबसे कुछ होने वाला नहीं है। दस साल कट गए। अब सहयोगी दलों की बैसाखियों पर सरकार है। जिसने अभी लोकसभा में वक्फ बिल भी पास नहीं होने दिया। और राज्यसभा में कह रहे हैं कि अगर सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया तो देखेंगे!
आज सभापति के लिए यह जवाब है कल प्रधानमंत्री के लिए भी हो सकता है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


