हाईकोर्ट ने सहकारी सोसायटी केभंग करने पर लगाई रोक
गत 27 जुलाई 2019 को छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने प्राथमिक सहकारी सोसायटी को पुनर्गठन के नाम पर समय से पहले भंग कर दिया था

गरियाबंद। गत 27 जुलाई 2019 को छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने प्राथमिक सहकारी सोसायटी को पुनर्गठन के नाम पर समय से पहले भंग कर दिया था। जिसे अब उच्च न्यायालय बिलासपुर (हाईकोर्ट) ने तगड़ा झटका दिया है और सरकार के निर्णय पर स्थगन लगाते हुए एक माह में सम्पूर्ण दस्तावेज के साथ प्रस्तुत करने का निर्देश दिए है।
इस संबंध में भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश मंत्री एवं प्राथमिक सहकारी समिति गरियाबंद के संचालक मुरलीधर सिन्हा ने बताया कि राज्य की पूर्व ग्रसित सरकार ने छतीसगढ़ के 1333 प्राथमिक कृषि सहकारी सोसायटियों को पुनर्गठन के नाम पर छ.ग. सहकारी अधिनियम 1960 की धारा 16 (ग) का दुरूपयोग करते हुए बचे हुए तीन वर्ष कार्यकाल से पहले भंग कर दिया और प्राधिकृत अधिकारी बिठा दिया। यह लोकतंत्र की हत्या है, एक निर्वाचित संस्थओं को समय से पहले भंग नहीं किये जा सकता है।
राज्य सरकार उक्त अधिनियम की धारा 16 (ग) में पुनर्गठन कर सकती है भंग नहीं कर सकती। इसी बात को लेकर समिति के पदाधिकारियों ने हाईकोर्ट में सरकार के निर्णय के विरूद्ध चुनौती दी थी। जिसे हाईकोर्टने स्वीकार करते हुए स्थगन दिया है। कोर्ट ने कहा है कि निर्वाचित निकायों को भंग नहीं किया जा सकता हैं। श्री सिन्हा ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस सरकार अनुचित निर्णय लेकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को बदलने का प्रयास ना करे।
यह लोकहित में उचित नही होगा। ज्ञात हो कि जिले से गरियाबंद एवं परसुली सोसायटी से मुरलीधर सिन्हा, चन्द्रभूषण चौहान, त्रिलोक सिन्हा, जितेश्वर साहू, नोहरलाल साहू, नंदकुमार सिन्हा, पूरन दीवान, प्रेमलाल सहित संस्था के पदाधिकारियों ने हाईकोर्ट में सरकार के निर्णय के विरूध्द स्थगन हेतु याचिका दायर की थी। जिसमें यह निर्णय आया है।


