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हाई कोर्ट: न्यूड होने का मतलब हमेशा अश्लीलता नहीं

केरल हाई कोर्ट ने बच्चों से अपने शरीर पर पेंटिंग का वीडियो पोस्ट करने वाली मां के खिलाफ पॉक्सो का मामला खारिज कर दिया है और महिला को राहत दी है.

हाई कोर्ट: न्यूड होने का मतलब हमेशा अश्लीलता नहीं
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केरल हाई कोर्ट ने एक महिला अधिकार कार्यकर्ता को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम से जुड़े केस में आरोप-मुक्त कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि नग्नता को अश्लीलता करार देना गलत है.

दरअसल यह मामला महिला अधिकार कार्यकर्ता रेहाना फातिमा का है. फातिमा का एक वीडियो बहुत तेजी से वायरल हुआ था जिसमें वह अपने दो नाबालिग बच्चों से अपने अर्ध-नग्न शरीर पर पेंटिंग करा रही थीं.

यह वीडियो साल 2020 में बनाया गया था. पेंटिंग करने वालों में 14 साल का बेटा और आठ साल की बेटी थी.

हाई कोर्ट ने क्या कहा

हाई कोर्ट ने कहा कि नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते हैं और याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के लिए यौन मंशा एक आवश्यक घटक है. यहीं नहीं हाईकोर्ट ने खुली अदालत में वीडियो देखा और कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने वीडियो के नीचे एक विस्तृत संदेश दिया था, जहां उसने तर्क दिया कि नग्न शरीर एक नियंत्रित, यौन कुंठित समाज की प्रतिक्रिया स्वरूप था.

हाई कोर्ट ने कहा कि नग्नता को सेक्स के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए. रेहाना फातिमा ने निचली अदालत द्वारा उन्हें आरोप-मुक्त करने वाली याचिका खारिज किए जाने पर इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.

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कोर्ट-महिला को अपने शरीर पर पूरा अधिकार

जस्टिस कौसर एदाप्पागथ ने कहा कि 33 साल की फातिमा के खिलाफ लगाए गए आरोपों के आधार पर किसी के लिए यह तय करना संभव नहीं है कि बच्चों का किसी भी रूप से यौन संतुष्टि के लिए इस्तेमाल हुआ हो.

जस्टिस एदाप्पागथ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का पितृसत्ता से जूझने का एक लंबा इतिहास रहा है और वह नैतिक पुलिसिंग के खिलाफ कोच्चि में एक आंदोलन का हिस्सा थीं.

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "हर माता-पिता अपने बच्चों को जीवन के बारे में सब कुछ सिखाने की पूरी कोशिश करते हैं. हर माता-पिता को अपने बच्चों को अपनी इच्छानुसार पालने का अधिकार है. बच्चे स्वाभाविक रूप से यह सोचकर बड़े नहीं होते हैं कि कोई भी कार्य सही या गलत है जब तक कि उनके मन पर ऐसी छाप ने पड़े."

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महिला अधिकारों के लिए काम करतीं हैं फातिमा

अभियोजन पक्ष ने अपनी दलील में इसे अश्लील और असभ्य बताया था. हाई कोर्ट ने कहा कि नग्नता को अनिवार्य रूप से अश्लील या असभ्य या अनैतिक करार देना गलत है. हाई कोर्ट ने कहा कि अपने शरीर के बारे में फैसला लेने का अधिकार महिलाओं की समानता और निजता के मौलिक अधिकार के मूल में हैं.

कोर्ट ने आगे कहा कि एक मां अपने शरीर को अपने बच्चों द्वारा कैनवास के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति देती है, ताकि उन्हें नग्न शरीर को सामान्य रूप से देखने की अवधारणा के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके और वे उसे केवल यौन वस्तु से कहीं ज्यादा समझें, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. ऐसे कृत्य के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि यह यौन मंशा से किया गया है.

फातिमा ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वीडियो पोस्ट किया था, जिस पर कई लोगों ने वीडियो को लेकर गुस्सा जाहिर किया था, लोगों का आरोप था कि फातिमा ने अपने बच्चों से अशलील कृत्य करवाया है.


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