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शहजादा छवि के कोकून से बाहर आता एक लोकनायक.
शहजादा शब्द यदि भारतीय राजनीति के सन्दर्भ में बोला जाए तो हो सकता है कि आप पाठकों के सामने भी राहुल गांधी की छवि बन जाए।
गजेन्द्र इंगले
शहजादा शब्द यदि भारतीय राजनीति के सन्दर्भ में बोला जाए तो हो सकता है कि आप पाठकों के सामने भी राहुल गांधी की छवि बन जाए। बात 2013 की है लोकसभा चुनाव का माहौल था और शायद सम्भवत पहली बार नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के लिए शहजादा शब्द प्रयोग किया था। नरेंद्र मोदी द्वारा राहुल गांधी को शहजादा कह कर तंज किए जाने पर उस समय भाजपा कांग्रेस में वार पलटवार का लंबा संघर्ष चला था। और हकीकत यह है कि इस संघर्ष में कहीं न कहीं कांग्रेस पीछे रह गई और भाजपा ने राहुल को लगभग शहजादा छवि में ढाल ही दिया और जनता के सामने भी भाजपा यह साबित करने में कामयाब रही। और हकीकत तो यह रही कि राहुल गांधी ने भी इस छवि को तोड़ने के लिए कोई संघर्ष नहीं किया।
नरेंद्र मोदी ने राहुल के शहजादा कहे जाने पर कांग्रेस के पलटवार पर कहा था, ''कांग्रेस के मित्र बहुत परेशान हैं कि मोदी शहज़ादा क्यों कह रहे हैं...उन्हें नींद नहीं आती. लेकिन मैं पूछता हूं कि शहज़ादा कहने की नौबत क्यों आई. अगर कांग्रेस विरासतवादी राजनीति बंद कर देगी तो मैं उन्हें शहज़ादा कहना बंद कर दूंगा.' उस समय देश का माहौल कुछ एसा था कि देश की जनता नरेंद्र मोदी को गम्भीरता से लेना शुरू कर चुकी थी और देश में एक बदलाव की राह तक रही थी। और हां उस समय तक मोदी के ऐसे कोई बयान नहीं आए थे के उन्हें जुमलेबाज की संज्ञा दे दी गई हो। लेकिन मोदी और पूरी भाजपा उस समय राहुल गांधी को शहजादा छवि में बांधने में कुछ हद तक कामयाब रहे। राहुल गांधी भी किसी बड़े आंदोलन के माध्यम से जनता के बीच नहीं आए थे। इसलिए जनता के बीच में भी उनकी बहुत ज्यादा पकड़ नहीं थी। शायद यही कारण रहा कि वह अमेठी से चुनाव भी हार गए।
2013 से 2022 में बहुत कुछ बदल चुका है। राहुल गांधी ने अपनी कार्यशैली बदली है। अब राहुल गांधी के बयान पहले के मुकाबले काफी परिपक्व होते हैं। भारत जोड़ो यात्रा राहुल गांधी के जीवन में बहुत बड़ा क्रांति कारी परिवर्तन लाने वाली है। देश के कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानकर चल रहे थे कि इतनी लंबी भारत जोड़ो यात्रा का ऐलान तो राहुल गांधी ने कर दिया लेकिन शायद वह इस यात्रा का पूरा न करते हुए बीच में ही छोड़ देंगे। साथ ही इन विश्लेषकों का यह भी मानना था कि यदि राहुल गांधी इस यात्रा को पूरा करते हैं तो वह न केवल पूरे देश में कांग्रेस को मजबूत करने में कामयाब होंगे बल्कि जनता के बीच एक जन नेता बनकर उभरेंगे। वर्तमान में भारत जोड़ो यात्रा अपनी आधी दूरी तय कर मध्यप्रदेश में है। और मध्यप्रदेश में राहुल गांधी ने जिस अंदाज में अपनी ऊर्जा को परिचय देते हुए कहा कि सुबह 6 बजे से पैदल चलते हैं और शाम सात बजे भी भाषण देते समय उनके चेहरे पर थकान नहीं है। इस बात से यह तो साफ है कि यह यात्रा पूरी अवश्य होगी। और साथ ही राहुल गांधी एक जन नेता के रूप में उभर कर आएंगे।
यात्रा में प्रतिदिन राहुल गांधी लगभग 25 किलोमीटर पैदल चलते हैं, केरल में महिलाओं व किसानों से बिल्कुल आम आदमी की तरह मिलते हैं और उनका जन मानस के दिल में उतरने का यह सिलसिला तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटका, महाराष्ट्र से लेकर मध्यप्रदेश तक अनवरत चलता आ रहा है। हर वर्ग जाति व्यवसाय का आदमी उनकी इस यात्रा से जुड़ रहा है। उन्हें एक आम नागरिक की तरह सरल और सहज अपने सामने ही देख रहा है। लंबे समय से भारत में कोई बड़ा जन आंदोलन नहीं हुआ जिसने आम जन के हृदय को छुआ हो। लोकनायक जप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति ने एक समय भारतीय राजनीति को बदल दिया था और कई युवा नेता देश को दिए थे। भारत छोड़ो यात्रा भी उसी तरह का राजनीतिक परिवर्तन लाने की दिशा में अग्रसर है। यह बात तय है कि इस यात्रा के बाद शहजादा राहुल गांधी युग का अंत और लोकनायक राहुल गांधी युग का प्रारम्भ होगा।
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