गैर जिम्मेदारी की पराकाष्ठा
मेवात दंगों में झुलस रहे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के उस बयान को गैरजिम्मेदारी की पराकाष्ठा ही माना जायेगा जिसमें उन्होंने कहा है कि 'सरकार सभी लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले सकती

मेवात दंगों में झुलस रहे हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के उस बयान को गैरजिम्मेदारी की पराकाष्ठा ही माना जायेगा जिसमें उन्होंने कहा है कि 'सरकार सभी लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले सकती।' प्रदेश की कानून-व्यवस्था के मामले में नाकाम और लाचार दिखलाई पड़ रहे श्री खट्टर का बयान उनकी जनसुरक्षा के प्रति घोर लापरवाही को भी दर्शाता है जो राज्य के नागरिकों के प्रति बुनियादी कर्तव्य है।
मुख्यमंत्री खट्टर ने बुधवार को साफ कहा कि 'इसके लिए हमें माहौल को सुधारना पड़ेगा। हर व्यक्ति की सुरक्षा न पुलिस कर सकती है, न ही सेना कर सकती है। इसके लिए सामाजिक सद्भाव ठीक करना पड़ेगा।'वे तो यहां तक कह गये कि 'किसी भी देश में आप चले जाएं हर आदमी की सुरक्षा वहां की पुलिस नहीं कर सकती पर इसके लिए वैसा माहौल बनाना पड़ता है।' वैसे वे यह भूल गये कि सामाजिक सद्भाव को ठीक करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी होती है।
मुख्यमंत्री का बयान स्तब्धकारी तो है लेकिन वह भारतीय जनता पार्टी की प्रशासन पद्धति के अनुरूप है जो हर अच्छी बात का श्रेय लेने में तो पीछे नहीं रहती परन्तु किसी भी असफलता से पल्ला झाड़ लेती है। पिछले 9 वर्षों से अधिक समय तक केन्द्र में सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सम्भवत: भाजपा प्रशासित सारे राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिये प्रेरणा स्रोत हैं। देश के अपूर्ण लक्ष्यों के लिये अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों को सभा-सम्मेलनों में दोषी ठहराने वाले मोदी अपनी नाकामियों पर या तो चुप्पी साध लेते हैं अथवा उनका ठीकरा विपक्ष पर फोड़ते हैं।
भाजपा सरकार का एक दशक का इतिहास अनेकानेक असफलताओं की जिम्मेदारियों से भागने या उनका दोषी दूसरों को बताने का रहा है। इसी का अनुसरण भाजपा की राज्य सरकारें करती हैं। नोटबन्दी और जीएसटी जैसे अविवेकपूर्ण निर्णयों से हुई देश की बदहाली का उत्तरदायी कोई नहीं है। यहां तक कि यह निर्णय किस प्रक्रिया के तहत लिया गया, यह भी अब तक अज्ञात है। कोरोना काल में ऑक्सीजन, दवाओं, बिस्तरों के अभाव में हुई लाखों लोगों की मौत का उत्तरदायी कौन है, यह सवाल भी अब तक अनुत्तरित है।
भाजपा की जिन राज्यों में सरकारें हैं वहां टूटती सड़कें और गिरते पुलों का जिम्मेदार कौन है, इसका जवाब ढूंढ़े से भी नहीं मिलेगा। उन राज्यों में होने वाली भगदड़ों से मरने वालों का जिम्मेदार भी कोई नहीं होता। भरी गर्मी में होने वाली आम सभाओं में दर्जनों लू से मर जाएं या बीमार हो जायें तो भी किसी व्यक्ति, अफसर, विधायक मंत्री या सरकार को दोषी नहीं ढहराया जा सकता क्योंकि यदि ऐसा किया भी गया तो बचाव में पूरी ट्रोल आर्मी उतर आती है। एक नहीं, सैकड़ों ऐसे मामले हो चुके हैं जिनमें दोषी या अपराधी सामने दिखता है परन्तु वह महफूज़ रहता है। इसका कारण यही है- उत्तरदायित्वहीनता।
हाल की कुछ घटनाएं भी इसी गैर जिम्मेदाराना रवैये की मिसालें हैं। मणिपुर की बात करें तो यहां पिछले कुछ वर्षों से आग सुलग रही थी। कुकी एवं मैतेइयों के बीच चल रही हिंसक झड़पों को पूरी तरह से वहां की सरकार और केन्द्र ने नज़रंदाज़ ही नहीं किया वरन एक पक्ष के साथ खड़े होकर आग को भड़कने दिया। वहां अल्पसंख्यक कुकी लोगों को मारा गया, चर्च जलाये गये परन्तु डबल इंजन की सरकार चुप रही। मामला पहले तो विदेश तक पहुंचा और जब अमेरिका में बड़ी मजबूरी में प्रेस के सामने गये मोदी से इस बाबत प्रश्न किये गये तो उन्होंने यह बताने की बजाय कि उनकी सरकार स्थिति को सुधारने के लिये क्या कर रही है, यह समझाते रहे कि 'लोकतंत्र भारत के डीएनए में है।' उन्हें तो यह बतलाना चाहिये था कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा व विकास के लिये क्या कर रहा है।
देश के इतिहास के भीषणतम दंगों में से एक कहे जाने वाले घटनाक्रम के दौरान का 4 मई का वह वीभत्स वीडियो जब देश-दुनिया के सामने आया तो भी राज्य या सरकार का कोई व्यक्ति सामने नहीं आया। वहां के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने वैसे ही दिखावे का प्रकटीकरण करते हुए सार्वजनिक तौर पर अपना इस्तीफा दिया व प्रायोजित तरीके से एक समर्थक द्वारा फड़वाकर जेब में रख लिया, जैसे मोदी जी ने चलते सत्र में संसद के भीतर बयान देने की बजाय बाहर आकर 36 सेकंड का वक्तव्य दिया जिसमें उन्होंने अपने क्रोध व पीड़ा का इज़हार किया था। उसके बाद से आज तक संसद बार-बार विपक्ष की इस मांग को लेकर ठहर रही है कि पूरे घटनाक्रम पर विस्तृत चर्चा हो, लेकिन सत्ता दल इंकार कर रहा है और प्रधानमंत्री राजस्थान में सभाएं कर रहे हैं। तो गृह मंत्री अमित शाह भी बराबरी के जिम्मेदार हैं वे कानून-व्यवस्था सुधारने की बजाय मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में अगले चुनाव की तैयारी बैठकें कर रहे हैं। उलटे, संसद में गतिरोध के लिये भी वे मानते हैं कि विपक्ष ही जिम्मेदार है।
अलबत्ता, जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं वहां एक चींटी भी मरे तो पूरी भाजपा, उनके समर्थक, मीडिया को क्षण भर में पता चल जाता है। तभी तो मणिपुर की घटनाओं की तुलना जब अन्य राज्यों से की गई तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने केन्द्र को जमकर फटकार लगाई। वैसे केन्द्र की हो या भाजपा की राज्य सरकारें- उन्हें इन सबका रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता। इसलिये आश्चर्य नहीं होना चाहिये जब खट्टर जैसे सीएम साफ कर देते हैं कि सभी लोगों को सुरक्षा नहीं दी जा सकती। यह दीगर बात है कि ये उन्हीं मोदी के सबसे विश्वासपात्र लोगों में से एक हैं जो पीएम बनने के पहले कहते थे कि 'मैं हर बात के लिये एकाउंटेबल रहूंगा। एक बच्चा भी मुझसे सवाल कर सकता है और मैं जवाब दूंगा'


